Saturday, April 26, 2008

मणिपुर में राष्ट्रपतिशासन क्यों नहीं ?

राजीव कुमार
देश में मणिपुर एक एसा राज्य है जहां चुनी गई सरकार का नहीं,आंतकियों का शासन है।आंतकी जो चाहे कर सकते हैं।मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह की कांग्रेस सरकार इससे निपटने में अपने को लाचार पा रही है।स्थिति इतनी बेकाबू है कि यहां कभी का राष्ट्रपति शासन लग जाना चाहिए था।पर केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार को कैसे बर्खास्त कर दे।सो, इबोबी मणिपुर में बने हुए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर में देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा आंतकी संगठन हैं।इसके बाद असम और जम्मू कश्मीर का नबंर आता है।मणिपुर में 39,असम में 36 और जम्मू कश्मीर में 32 आंतकी संगठन सक्रिय हैं।राज्य में एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार है।फिर भी आंतकी संगठन सरकार के नाक तले अपहरण,रकम वसूली और हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं।
मार्च में 15 हिंदीभाषी मजदूरों की हत्या कर दी गई।सरकारी अधिकारियों का अपहरण कर आंतकी मोटी रकम वसूल कर रहे हैं।सरकारी अधिकारी अपनी जान बचाने आंतकियों को रकम अदा कर रहे हैं।आंतकियों को वे यह रकम गुवाहाटी और कोलकाता में आकर अदा कर रहे हैं।स्थिति बेकाबू होते देख मुख्यसचिव जरनैल सिंह ने फरमान जारी किया कि बिना अनुमति के सरकारी अधिकारी राज्य के बाहर नहीं जा सकते।इस आदेश के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ।कारण अधिकारी सरकार पर भरोसा करने के बजाए आंतकियों पर भरोसा कर अपने को ज्यादा महफूज समझ रहे हैं।
राज्य के हालात नवबंर 2007 के बाद ज्यादा बदतर हुए।मुख्यमंत्री इबोबी के खिलाफ कांग्रेस विधायकों ने विद्रोह किया।मामला कांग्रेस हाईकमान के पास दिल्ली पहुंचा।कुछ समय तक अराजकता की स्थिति बनी रही।आखिरकार हाईकमान ने इबोबी के ही बने रहने पर मुहर लगा दी।इसके बाद से ही स्थिति ज्यादा खराब हुई।राजधानी इंफाल में छह बजे बाद कर्फ्यू जैसा माहौल बन जाता है।
सरकार को जो कार्य करने चाहिए वह आंतकी अंजाम दे रहे हैं।आंतकियों की अपनी अदालतें चलती है।आंतकी भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ कर ले जाते हैं।सजा के तौर हत्या या फिर पैर में गोलियां दाग देते हैं।मणिपुर में हिंदी फिल्मों को दिखाने पर पहले ही पाबंदी लगी हुई है।इसी साल जर्दे पर पाबंदी लगाई गई।लेकिन इसे लागू होता न देख मीठापती पान की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया।आंतकियों का मानना है कि इनके सेवन से राज्य के लोग बीमार हो रहे हैं।आदेश का पालन न करनेवालों को सजा सुनाई गई।

आंतकी सिर्फ यहां तक ही सीमित नहीं है।रीजनल इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेज के निदेशक को नर्सों की नियुक्ति को लेकर धमकाते हैं।निदेशक का तो यहां तक कहना है कि स्वास्थयकर्मियों से रकम वसूली जाती है।दवा विक्रेताओं से भी रकम मांगी गई तो इन्होंने दुकानें बंद कर दी।लोगों को भारी संकट का सामना करना पड़ा।बाद में सरकार ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया तो दवा दुकानें खुली।ट्रांसपोर्टरों से भी आंतकियों ने रकम की मांग की।इसके चलते वे हड़ताल पर चले गए।ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि बीस आंतकी संगठन रकम की मांग करते हैं।रकम न देने पर वाहनों को जला देने की धमकी देते हैं।आटोरिक्शावालों से भी तीन सौ से एक हजार रुपए तक की मांग की जाती है।
तंग आकर ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी तो मणिपुर के मोरे और म्यांमार के नामफालंग में होनेवाला सीमा व्यापार प्रभावित हुआ।स्थिति की गंभीरता को देखते हुए म्यांमार स्थित भारत के राजदूत भास्कर कुमार मित्रा मणिपुर में समीक्षा के लिए आए।आंतकियों का हौसला इतना बढ़ा हुआ है कि वे विधानसभा पर हमला करने के अलावा विधायक पर भी हमला करते हैं।इन सब के बाद भी केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संप्रग सरकार मूक दर्शक बनी हुई है।
मणिपुर में पहले महिलाओं की नृशंस हत्याएं नहीं होती थी।लेकिन मार्च में पांच महिलाओं को नृशंसता के साथ मार दिया गया।स्थिति भयावह देखते हुए थौबाल जिले के ग्रामीणों ने सरकार से हथियार देने की मांग की है ताकि आंतकियों से खुद की रक्षा कर सके।लोगों का सरकार पर भरोसा नहीं रह गया है।समस्या से निपटने में इबोबी सरकार जिस तरह आगे बढ़ रही है उससे भी सुरक्षा बल संतुष्ट नहीं है।राजनेता और आंतकियों में सांठगांठ है।विधायकों के घर से आंतकी पकड़े जाते हैं।अधिकारी सरकार से खुश नहीं।राज्य के 21 आईपीएस अधिकारी राज्य के बाहर डेपुटेशन पर हैं।मणिपुर आने के साथ ही वे वापस राज्य के बाहर लौट जाना चाहते हैं।इबोबी के करीबी सिंचाई मंत्री बिरेन सिंह का कहना है कि हमें स्थित से मुकाबला करने के लिए अनुभवी लोगों की जरुरत है।पर ये राज्य में सेवा देने को ही इच्छुक नहीं।
राज्य में स्थिति विकराल है।कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है।जंगलराज कायम है।शासन सरकार का नहीं आंतकियों का चल रहा है।कांग्रेस की न होकर कोई दूसरी सरकार होती तो अब तक राष्ट्रपति शासन लग जाता।पर केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार पूर्वोत्तर में कांग्रेस के सिमट रहे जनाधार से वैसे ही चिंतित है।मेघालय भी हाथ से खिसक गया।इबोबी मणिपुर में दूसरी बार लगातार कांग्रेस को सत्ता में लाएं हैं।इसलिए भी वह धृतराष्ट्र की भूमिका में है।लेकिन देश की सुरक्षा के लिए यह अच्छी बात नहीं है।स्थिति से निपटने के लिए तुरंत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर कड़ाई से पेश आने की जरुरत है।(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ हैं)

लेखक का पता-राजीव कुमार,पोस्ट बाक्स-12,दिसपुर-781005
मोबाइल-9435049660

त्रिपुरा के मंत्री ने किया शर्मसार

राजीव कुमार
पूर्वोत्तर में आंतकियों और राजनेताओं का संपर्क नई बात नहीं है।लेकिन एक विदेशी आंतकी संगठन के साथ संपर्क होने के आरोप त्रिपुरा के मंत्री पर लगे हैं।उन्हें इस्तीफा देना पड़ा है।देश में यह इस तरह की संभवत पहली घटना है।देश की सुरक्षा के सामने बड़े सवाल खड़े हुए हैं।संविधान के नाम पर शपथ लेनेवाला मंत्री विदेशी आंतकियों के साथ संबंध रखे तो देश की संप्रभुता की रक्षा कौन करेगा ?
त्रिपुरा के खाद्य व आपूर्ति विभाग के मंत्री शाहिद चौधरी पर बांग्लादेश के हरकत-उल-जेहादी-अल-इस्लामी(हूजी) के कार्यकर्त्ता मामून मियां से संपर्क होने का आरोप लगा है।मामून बांग्लादेशी नागरिक है।उसने पासपोर्ट और स्थाई बाशिंदा प्रमाण पत्र मंत्री चौधरी के साथ संपर्क के तहत हासिल किया।इसके लिए उसने अपना नाम बदलकर सुमन मजुमदार कर लिया।पुलिस की माने तो उसने इस तरह भारत विरोधी कार्यों को आगे बढ़ाया।
पश्चिम बंगाल पुलिस अपने यहां दो बांग्लादेशियों को नहीं पकड़ती तो शायद कभी यह राज नहीं खुलता।राज न खुलने पर वह आराम से मंत्री तक की अपनी पहुंच का फायदा उठा भारत विरोधी कार्यों को अंजाम देता रहता।बंगाल पुलिस ने हावड़ा से शमीम अख्तर और आलमगिर को पकड़कर पूछताछ की तो मियां के बारे में जानकारी सामने आई।यह दोनों विस्फोटक और उत्तर बंगाल में स्थित सैनिक शिविरों की जानकारी के साथ पकड़े गए।बंगाल पुलिस 27 मार्च को अगरतला आकर मियां को गिरफ्तार कर ले गई।इसके बाद ही मंत्री और उसके परिवारवालों के साथ मियां का संबंध उजागर हुआ और विपक्ष ने वामपंथी सरकार को घेरा।
विपक्ष के हमले से बचने के लिए मुख्यमंत्री मानिक सरकार ने मंत्री चौधरी से इस्तीफा लेने में देर नहीं की।इस्तीफे के पहले त्रिपुरा पुलिस ने मियां के खिलाफ मामला दायर किया।लेकिन विदेशी आंतकी संगठन के कार्यकर्त्ता के साथ संबंध रखने और मदद करनेवाले व्यक्ति को उम्मीदवार बना और विधायक बनने के बाद मंत्री पद दे खुद राज्य की वामपंथी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है।मुख्यमंत्री माणिक सरकार पर बड़ा सवाल है। उनकी पुलिस को क्या इसकी भनक तक नहीं लगी ?या मामला मंत्री का होने के कारण राजनीतिक दबाव के चलते कुछ नहीं किया गया।बंगाल की पुलिस की कार्रवाई के बाद राज्य सरकार ने पूरे मामले पर सीआईडी जांच की घोषणा की।केंद्र ने भी इसे गंभीरता से लिया है।उसने आईबी से इसकी अंदरुनी जांच कराने का फैसला किया है।

त्रिपुरा की माकपा सरकार यह तो आरोप नहीं लगा सकती कि यह उसके खिलाफ साजिश है।कारण पश्चिम बंगाल पुलिस मियां को गिरफ्तार कर ले गई है,जहां भी वामपंथी सरकार सत्ता में है।मंत्री चौधरी पर आरोप है कि मियां को सुमन मजुमदार के नाम पर फर्जी पासपोर्ट निकालने में मदद की थी।प्रदेश माकपा मंत्री के इस्तीफे के बाद भी उनका बचाव करने में लगी है।उसका कहना है कि चौधरी का हूजी के साथ संबंध नहीं है,जांच निष्पक्ष हो इसलिए मुख्यमंत्री ने चौधरी का इस्तीफा लिया है।
लगातार तीसरी बार विधायक बने चौधरी राज्य की वामपंथी सरकार में अकेले मुस्लिम मंत्री थे।उन्होंने मुख्यमंत्री माणिक सरकार को धनपुर विधानसभा क्षेत्र में जीताने के लिए मुस्लिम मतदाताओं के बीच प्रचार किया था।क्या इन्हीं वजहों से मुख्यमंत्री चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकते रहे?यह देश के साथ बड़ा खिलवाड़ है।कारण सभी जानते हैं कि पूर्वोत्तर के आंतकियों की शरणस्थली बांग्लादेश है।सीमा सुरक्षा बल ने बांग्लादेश रायफल्स को यहां के आंतकियों के 117 शिविर बांग्लादेश में रहने की एक सूची सौंपी है।तब एक मंत्री का हूजी के सदस्य को मदद पहुंचान अक्षम्य अपराध है।
मंत्री के इस्तीफे के साथ ही समस्या खत्म नहीं हो गई है।कारण पुलिस ने अभी तक चौधरी को गिरफ्तार नहीं किया है।गिरफ्तार कर उनसे पूछताछ की जाए तो पूरे मामले में और सनसनीखेज खुलासे हो सकते हैं।त्रिपुरा में विपक्ष के नेता रतनलाल नाथ ने केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल से मुलाकात कर इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।त्रिपुरा में छह बार वामपंथी सरकार आई है और अब तक तीन माकपा मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा है।लेकिन किसी विदेशी आंतकी के साथ संबंध के चलते नहीं,बल्कि अपने निजी जिंदगी के विवादों के चलते इन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
अब तक पूर्वोत्तर के राजनेताओं के स्थानीय आंतकियों के साथ संबंध होने की बात सामने आती रही है।कई आंतकी तो मुख्यधारा में लौटकर सरकार का हिस्सा बन चुके हैं।असम में तो एक आंतकी आत्मसमर्पण न कर ही मंत्री बन गया।मंत्री बनने के बाद आंतकी रहते हुए जो मामले थे उन्हें अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अदालत से ही बरी हो गया।अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए राजनेता ही आंतकी पैदा कर विकास के नाम पर आनेवाले पैसों को निगल रहे हैं।जब तक यह बंद नहीं होगा तब तक पूर्वोत्तर और देश का भला नहीं होगा।देश की सुरक्षा खतरे में रहेगी।गोपनीय दस्तावेज लीक होकर विदेशियों के हाथों में पहुंच जाएंगे।पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप होगा।वह निष्पक्ष होकर कुछ नहीं कर पाएगी।इस पूरे माहौल को जनता ही बदल सकती है।खुद जागरुक हो अपने मताधिकार का प्रयोग सही ढंग से कर इनके इस खेल को उलट सकती है।

(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)
लेखक का पता-राजीव कुमार,पोस्ट बाक्स-12,दिसपुर-781005
मोबाइल-9435049660