Tuesday, June 24, 2008

असम:सात साल बाद आंतकियों के खिलाफ जागी सरकार

राजीव कुमार
असम की कांग्रेस-बीपीएफ गठबंधन सरकार अचानक प्रतिबंधित संगठन उल्फा के खिलाफ आक्रामक हो गई है।सिर्फ उल्फा ही नहीं,अन्य वार्ता में आने को इच्छुक आंतकी संगठनों के खिलाफ भी कठोर हुई है।लेकिन राज्य में पिछले सात सालों से सत्ता पर काबिज रहनेवाली मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नेतृत्ववाली सरकार को पहले इतना कठोर होते हुए कभी नहीं देखा गया था।
अब तक उसे उल्फा के इशारों पर ही चलते देखा गया था।पर अब वह उल्फा के लिए सतही स्तर पर कार्य करनेवाले लोगों के खिलाफ शिकंजा कस रही है।केंद्र के साथ वार्ता के लिए उल्फा द्वारा गठित नागिरक समिति पीपुल्स कंसलटेटिव ग्रुप(पीसीजी)के सदस्य लाचित बरदलै को चार महीने पहले गिरफ्तार किया जा चुका है।उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है।अब पीसीजी के दूसरे सदस्य हिरण्य सैकिया को गिरफ्तार किया गया है।अब तक राज्य सरकार और उल्फा के बीच सैकिया एक महत्वपूर्ण कड़ी के रुप में कार्य करते आए थे।
जब उल्फा ने 33वें राष्ट्रीय खेलों के बहिष्कार का एलान किया तो सैकिया ने ही मध्यस्थ कर मामला सुलझाया और खेल शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित हुए।बाद में भारत-पाक एक दिवसीय मैच में भी दिक्कत न होने के लिए उल्फा से अखबारों में विज्ञापन देकर अपील की गई।यह भी सैकिया के सुझाव पर किया गया।खुद सैकिया ने बाद में इन सब का खुलासा किया है।सैकिया ने सरकार और उल्फा के बीच की वार्ता में भी अहम किरदार होने की बात कही है।संगठन के सेना प्रमुख परेश बरुवा के साथ होनेवाली बातों को मुख्यमंत्री तरुण गोगोई,स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्वशर्मा और पुलिस के आला अधिकारी तक पहुंचाने की बात का खुलासा सैकिया पहले कर चुका है।सैकिया के इस तरह के बयानों के बाद विपक्ष ने सरकार को घेरा।पर तब सरकार चुप रही।अब इसके काफी समय बाद सरकार ने सैकिया को गिरफ्तार किया है।
सवाल उठता है कि सरकार अब तक सौहार्दपूर्ण संबंध सैकिया से रखकर क्यों सोई हुई थी?विपक्ष के हमले से गिरती साख और केंद्र के दबाव के चलते गोगोई को यह कदम उठाना पड़ा है,यह कहें तो भी गलत नहीं होगा।एक संवाददाता सम्मेलन में गोगोई ने घोषणा की कि अब किसी आंतकी संगठन से तभी संघर्षविराम कर बातचीत की जाएगी जब वह हथियार डाल देगा,उसके सदस्य वार्ता पूरी होने तक निर्धारित शिविरों में रहेंगे और संविधान के दायरे में ही बातचीत की इच्छा जताएंगे।साथ ही बातचीत संगठन के शीर्ष नेताओं से सीधे होगी।जो संगठन इन बातों को नहीं स्वीकारेंगे उनसे न तो संघर्षविराम होगा और न भी अभियान में कोई ढील दी जाएगी।राज्य में आंतकवादी विरोधी अभियान संयुक्त कमान की कार्रवाई के तहत चल रहा है।इसके चेयरमैन खुद मुख्यमंत्री तरुण गोगोई हैं।गोगोई ने स्वंय कहा है कि पिछली संयुक्त कमान की बैठक में यह निर्णय लिया गया है।उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि यह निर्णय केंद्र के कहने पर लिया गया है।
अब तक केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संयुक्त प्रगतिशील सरकार राज्य की कांग्रेस-बीपीएफ सरकार के कामकाज पर धृतराष्ट्र की भूमिका में थी।पर अब राज्य के कांग्रेस मंत्रियों पर लग रहे आरोपों के बाद उसने इधर अपनी नजर दी है।इसके बाद गोगोई नेतृत्ववाली सरकार कठोर हुई है।आंतकवादी संगठन डिमा हालम दाउगा के जूवेल गुट ने उत्तर कछार जिले में कहर बरपाकर दो राष्ट्रीय परियोजनाओं का कार्य बुरी तरह प्रभावित किया।अचानक संगठन ने संघर्षविराम की इच्छा जताई तो सरकार ने इसका सकारत्मक जवाब देने के बजाए अभियान तेज करने का फैसला किया।डिमापुर के एक होटल में इसके प्रचार सचिव को गिरफ्तार किया गया।इन सबसे एक बात साफ हो गयी कि राजनीतिक इच्छशक्ति हो तो आंतकवादियों से मुकाबला करना मुश्किल नहीं है।
पर गोगोई सरकार आंतकवादियों से मधुर संबंध बनाए रखने के लिए अब तक कोई कार्रवाई करने से बचती रही है।इसका फायदा इन्हें विभिन्न चुनाव में मिलता रहा है।लेकिन इन संबंधों के चलते विपक्ष ने कांग्रेस पर हमला तेज किया तो उसकी स्थिति खराब होने लगी।राज्य के पूर्व शिक्षामंत्री रिपुन बोरा एक हत्या के मामले में लग रहे आरोपों से बचने के लिए सीबीआई को घूस देते रंगे हाथों दिल्ली में गिरफ्तार हुए।इसके बाद राज्य के अन्य मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार,हत्या और आंतकवादियों से संबंध होने के आरोप लगने लगे हैं।विपक्षी पार्टियां राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्वशर्मा का संबंध उल्फा से होने का आरोप लगा रही है।इस आरोप पर डा.शर्मा को मंत्री पद से हटाए जाने की मांग उठ रही है।प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष इसकी शिकायत की गई है।इन सबके चलते केंद्र ने राज्य सरकार को कठोर होने का निर्देश दिया है।केंद्र के निर्देश के बाद गोगोई के पास सख्त होने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचा था।इसलिए आंतकी संगठनों के खिलाफ सरकार कठोर हुई है।
सरकार के कठोर होने के कारण आंतकवादियों के आत्मसमर्पण की संख्या में इजाफा हुआ है।उल्फा की शक्तिशाली 28वीं बटालियन की ए व सी कंपनी ने एकतरफा संघर्षविराम का एलान कर बातचीत की इच्छा जताई है।तेजपुर स्थित चतुर्थ कोर के जीओसी ले.ज.बी एस जसवाल ने इस लेखक से बातचीत में कहा कि हमने वार्ता के लिए उपयुक्त माहौल बनाया है।कारण भारी संख्या में आंतकियों ने आत्मसमर्पण किया है।अब सरकार की बारी है कि वह कैसे वार्ता करती है।जसवाल का कहना था कि आंतकियों को सतह पर रहकर जो मदद कर रहे हैं उन्हें कमजोर कर दिया गया तो हमें अभियान में और ज्यादा सफलता मिलेगी।
सात साल बाद सरकार के कड़े रुख से जहां आंतकियों के हौसले पस्त होंगे वहीं लोगों में आशा की किरण जगी है।पर कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार कब तक इस तरह का कड़ा रुख रखती है यह भी देखनेवाली बात होगी।कारण सामने लोकसभा चुनाव है।उल्फा ने कांग्रेसियों को निशाना बनाना शुरु कर दिया तो अपनी हार की आशंका में वह अपने इस अभियान में ढीली भी पड़ सकती है।पर यह ढिलाई राज्य व देश के हित में नहीं होगी।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Saturday, June 14, 2008

राजनीति में वंशवाद को बढ़ा रहे हैं संगमा

राजीव कुमार
दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है।लेकिन बात जब अपनी आती है तो व्यक्ति खुद इन सब को भूल देता है।इस तरह के ही शख्स हैं पूर्ण ए संगमा।संगमा ने लोकसभा का अध्यक्ष रहते हुए देशभर में अपनी एक छाप छोड़ी थी।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के कारण उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने का विरोध करते हुए संगमा ने कांग्रेस तक छोड़ दी।तब लोगों के मन में उनके प्रति और आदर का भाव आया।लगा कि संगमा आदर्श और नीति की राजनीति करते हैं।लेकिन इस साल उनका असली चेहरा सबके सामने आ गया।अपने साथ ही परिवार के तीन अन्य लोगों को उन्होंने राजनीति में उतार दिया।इस तरह वंशवाद की राजनीति को ही संगमा ने आगे बढ़ाया।
मेघालय में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान संगमा ने सांसद रहते हुए विधायक पद के लिए चुनाव लड़ा।अपने दो बेटों कनराड और जेम्स को भी विधायक पद के लिए उतारा।दोनों बेटों के साथ ही संगमा चुनाव जीत गए।विधायक पद पर विजयी होने के बाद उन्होंने तुरा संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया।नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) के किसी को उतारने के बजाए उन्होंने इस रिक्त सीट पर अपनी बेटी अगाथा को उतारा।अगाथा भारी मतों से जीती।संगमा नौ बार इस सीट से सांसद चुने गए हैं।इसमें कोई शक नहीं कि इस सीट पर उनकी पकड़ है।पर उच्च शिक्षित अगाथा दिल्ली के एक फार्म में कानूनी सलाहकार की नौकरी कर रही थी।लेकिन पिता ने तुरा सीट को अपनी जागिर बनाए रखने के लिए उसे भी राजनीति में खींच लिया।
संगमा की पत्नी सरोजेनी इसके खिलाफ है।वह इसके विरोध में थी।संगमा के परिवार में अब दो सदस्य ही राजनीति में आने बाकी हैं।इनमें एक उनकी पत्नी और दूसरी बड़ी बेटी क्रिस्टी।राजनीति में वंशवाद बढाए जाने की बात पर संगमा को गुस्सा आता है।वे गुस्से में सफाई देते हैं कि मैंने वंशवाद के शासन को प्रोत्साहन नहीं दिया है।मेरे बेटे और बेटियां विदेश में पढे लिखे हैं।अब हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम राज्य की बेहतरी के लिए अपना योगदान दें।हमें राजनीति में पढ़े लिखे लोगों की जरुरत है।
राजनीति में पढ़े लिखे अच्छे लोगों को आना चाहिए इससे हम भी दो राय नहीं रखते।लेकिन मेघालय में और पढ़े-लिखे लोग नहीं थे, इस बात को भी तो नहीं स्वीकारा जा सकता।संगमा अन्य को मौका देते तो उनका कद और बड़ा होता।फिलहाल मेघालय में डोनकूपर राय के नेतृत्व में जो सरकार चल रही है उसमें संगमा ही छ्दम मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे हैं।वैसे वे मेघालय योजना बोर्ड के चैयरमैन हैं।अपने दोनों बेटों को भी उन्होंने सरकार में महत्वपूर्ण पद दिलवाए हैं।बड़े बेटे कनराड के पास वित्त,पर्यटन,बिजली और कई अन्य महत्वपूर्ण विभाग हैं जबकि जेम्स गृह विभाग का संसदीय सचिव है।कुल मिलाकर मेघालय की राजनीति पर अपनी पूरी पकड़ संगमा रखना चाहते हैं।विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कहा भी था कि दूसरे हमें छोड़कर जा सकते हैं लेकिन परिवार के सदस्य तो कम से कम धोखा नहीं देंगे।

मेघालय में सरकारें अस्थिर रही है।इसी डर के चलते संगमा अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में खींच लाए।वे किसी भी तरह राज्य की राजनीति अपने हाथ से खिसकने नहीं देना चाहते हैं।तुरा लोकसभा सीट के उपचुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियों ने इसे मु्द्दा बनाया।लेकिन उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी।वंशवाद के आरोप के बाद भारी मतों से जीतनेवाली अगाथा ने कहा कि जीत मैरिट के आधार पर हुई है।संगमा का इस पर कहना था कि मेरा प्रयास बच्चों को समान अवसर देने का है।जनता ने जो जनादेश दिया है उससे लगता है कि वे इन बात को तवज्जो नहीं देती है।यदि वंशवाद को मैं बढ़ाता तो मैं इन्हें आसानी से राज्यसभा में भेज सकता था।लेकिन मैंने इसके बजाए उन्हें सीधे चुनाव के जरिए जीतकर आने को कहा।चुनाव तो हर कोई व्यक्ति लड़ सकता है।
माना कि जनता ने संगमा और उनके परिवार के तीन सदस्यों को जनादेश दिया है,पर क्या नीति और आदर्शों की बात करनेवाले नेता से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने क्षुद्र हितों से ऊपर उठेंगे।संगमा को तो चाहिए था कि वे पार्टी के नए-नए युवक-युवतियों को प्रशिक्षित कर आगे लाते।तभी राजनीति के स्तर को ऊपर उठाया जा सकेगा।लेकिन संकीर्ण राजनीति में रहकर वंशवाद को बढ़ावा देनेवाले नेता से और क्या उम्मीद की जा सकती है।अब उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल का होने का मुद्दा उठाने का नैतिक अधिकार खो दिया है।कारण उन्होंने राजनीति में वंशवाद को सबसे ज्यादा बढ़ाया है।जैन धर्मगुरु आचार्य तुलसी ने नारा दिया था-निज पर शासन,फिर अनुशासन।यही बात संगमा से कही जा सकती है।किसी पर कुछ लागू करने के पहले खुद उस पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए।तब कहीं जाकर दूसरों को नीति शिक्षा देनी चाहिए।
(लेखक गुवाहाटी स्थित वरिष्ठ पत्रकार व पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)