Wednesday, August 29, 2012

गोगोई की द ग्रेट नौटंकी



राजीव कुमार

टीवी पर मनोरंजन के लिए लोग आजकल हास्य कार्यक्रम अन्य की तुलना में खूब देखते हैं।क्योंकि इससे उन्हें मजा आता है,उनका मनोरंजन होता है।तनाव कम होता है।पर असम के टीवी चैनलों में अब तक हिंदी की तुलना में कम हास्य धारावाहिक दिखाए जाते हैं।लेकिन यहां एक टीवी चैनल में हफ्ते में एक बार चुपोति (हास्ययुक्त निंदा) नामक व्यंग्यात्मक कार्यक्रम दिखाया जाता है।बहुत लोकप्रिय है।इसमें असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को हू-ब-हू कापी किया जाता है, वह लोगों को हंसने के लिए मजबूर कर देता है।गोगोई की बातें ही ऐसी होती है।वह अपनी इस तरह की बातों से ही 11 साल राज्य में शासन कर चुके हैं,लेकिन अब रास्ता आसान नहीं दिखता।
नौटंकी एक प्रकार का लोक नाट्य है जिसमें संवाद तथा संगीत की प्रधानता होती है।अच्छी लगती है।गोगोई इतने दिनों तक अपने संवादों और चापलूसों के संगीत से लोगों को मोह रहे थे,लेकिन अब उनके जाल में लोग फंसना नहीं चाहते।अब लोगों को समझ में आने लगा है।विपक्षी पार्टी असम गण परिषद पर टिप्पणी करते हुए गोगोई पहले अकसर कहते थे खट्टे आम अगप ने दो बार बेच दिए।अब लोग उनकी बातों(अगप) पर भरोसा नहीं करनेवाले हैं।गोगोईजी , आप की नौटंकी से लोग अब ऊब चुके हैं।क्योंकि आप और आपकी सरकार सिर्फ बातें करती है,काम नहीं।मैं तथ्य रखूंगा।
पहला,सुप्रीम कोर्ट और केरल उच्च न्यायालय ने बंद को अवैध घोषित कर रखा है।गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने भी इसे अवैध करार दिया है,लेकिन इतने सालों तक सरकार को यह अमल करने की इच्छा नहीं हुई।खुद मुख्यमंत्री गोगोई ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि बंद के दौरान जो लोग दुकान खोलते हैं,गाड़ी चलाते हैं,इन्हें किसी तरह की क्षति का सामना करना पड़ता है तो हम इसकी भरपाई करेंगे।इसके लिए फंड रखा जाएगा।लेकिन कुछ नहीं हुआ।अब बोड़ो बहुल इलाके की हिंसा के विरोध में बंद हो रहे हैं तो सरकार को अदालती आदेश की याद आई।इसका अर्थ है कि अब तक आप चाहते तो बंद को बंद करने के कदम उठा सकते थे,लेकिन किया नहीं।क्यों ? असम में अब इस आदेश को सिर्फ एक महीने तक लागू करना चाह रहे हैं,आगे के लिए क्यों नहीं ?यानी सरकार समस्याओं को समस्या बनाकर रखना चाहती है।
दूसरा,बोड़ो इलाके की हिंसा के बीच असम के स्वास्थ्य व शिक्षा मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा ने अपने पद से इस्तीफा देने का पत्र मुख्यमंत्री गोगोई को थमा दिया।दोनों के बीच काफी समय से मनमुटाव था और सत्ता केंद्रिक लड़ाई चल रही थी।पर अचानक दिल्ली से लौटकर नौंवे दिन डा.शर्मा ने गोगोई से बात की और काम पर लौट आए।गोगोई ने डा.शर्मा को फिर काम करने दिया।इससे साफ हो गया कि गोगोई निर्णय लेने में कमजोर हैं।वे कठपुतली की तरह कार्य कर रहे हैं।लेकिन कहते हैं कि मैं दिल्ली के आदेश से चलनेवालों में नहीं हूं।
तीसरा,बोड़ो इलाके की हिंसा के बाद विभिन्न पक्षों ने मांग की कि इलाके में जो अवैध हथियार हैं,उन्हें जब्त किया जाए।लेकिन गोगोई इसमें भी ढुलमुल रवैया अपनाते रहे।28 अगस्त को उन्होंने कहा कि 27 अगस्त को सेना को हथियार जब्त करने का अधिकार दिया गया है।पर इतनी देर क्यों? पिछले एक महीने से क्या किया गया ? जब किसी इलाके में चुनाव होते हैं तो चुनाव आयोग के निर्देश पर यही पुलिस फटाफट हथियार जब्त करती है।फिर गोगोई की सरकार में यह क्यों नहीं हो पाया?किस के प्रति गोगोई नरम है और क्यों? जो उन्हें हथियार जब्त करने में दिक्कत होती है।
यह सब सवाल हम गोगोई से पूछ नहीं सकते।क्या हम उनसे डर गए हैं? नहीं।तो फिर क्यों? वे तानाशाह बन गए हैं।इन कड़वे सवालों को सुनकर उन्हें गुस्सा आ जाता है।पत्रकार हूं,इसलिए उनके संवाददाता सम्मेलनों को कवर करने जाता हूं।मेरे सवालों से वे इतने घबरा गए हैं कि अब तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कह भी दिया कि मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगा।पहले मेरे कई सवालों पर गुस्से में आकर उन्होंने ऐसे जवाब दिए हैं कि स्थानीय अखबारों की सुर्खियां बनी।उदाहरण के तौर पर कुछ पेश करना चाहूंगा।
असम में बाढ़ आई हुई थी,गोगोई अमेरिका गए हुए थे।बाढ़ के हालात जानने के लिए प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह ने मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा को कई बार फोन किया।जब गोगोई से मैंने पूछा कि प्रधानमंत्री ने आपसे पूछने के बजाए हिमंत को फोन कर जानकारी ली तो गोगोई ने गुस्से में कहा-प्रधानमंत्री हिमंत को सुपर मुख्यमंत्री बना दे।इसी तरह एक बार मैंने राज्य में अगप शासनकाल में हुई गुप्त हत्याओं पर पूछा।कांग्रेस इस मसले को लेकर खूब सक्रिय रहती है।सत्ता में आने पर गुप्त हत्या के दोषियों को सजा दिलाई जाएगी,यह कांग्रेस का नारा था।तीसरी बार लगातार आई है,पर वायदा अब तक पूरा नहीं हुआ है।एक मुख्यमंत्री इतना असहाय कैसे हो सकता है।इस पर गोगोई ने कहा था-मुख्यमंत्री क्या, देश का गृहमंत्री भी असहाय हो सकता है।इस तरह अनेक वाकये हुए हैं।
एक समय था जब गोगोई खुद कहते थे पूछिए,क्या पूछना है ? वे पारदर्शिता की बात करते थे।लेकिन अब सच का सामना करने से वे घबराते हैं।वे सिर्फ सरकार की प्रशंसा सुनने के आदी हो गए हैं।अभी विभिन्न राज्यों में पेट्रोल व गैस के दाम बढे।कई राज्यों ने अपने यहां रियायत का एलान किया।पर गोगोई खामोश रहे।इससे बड़ी कोई नौटंकी आपने कभी देखी है,जो सहजता के साथ राज्य में बिना कोई खर्च के लोग देख रहे हैं।वाह,गोगोईजी।आपका कोई जवाब नहीं।

Sunday, August 26, 2012

असम हिंसाःवजह लोभ व भ्रष्टाचार

राजीव कुमार

लोभ व भ्रष्टाचार जब तक रहेंगे देश में विशेषकर असम में शांति नहीं होगी।लोभ है तो भ्रष्टाचार होगा।भ्रष्टाचार होगा तो संपूर्ण विकास का फायदा लोगों तक नहीं पहुंचेगा।इसलिए देश में लोगों के मन से लोभ पूरी तरह खत्म करना होगा।यह खत्म होने के बाद भ्रष्टाचार नहीं होगा।भ्रष्टाचार नहीं होगा तो गलत कार्य नहीं होंगे।सबको बराबर अपना हक मिलेगा।
असम में चल रही हिंसा की गहराई से पड़ताल करने के बाद मुझे यही लगता है।राजनेता इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं।कोई इनके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ को वजह मानता है तो कोई इलाके में मौजूद अवैध हथियारों को इनकी वजह बता रहा है।लेकिन इन सबके पीछे लोभ व भ्रष्टाचार ही प्रमुख है।
आइये सीधे मुद्दों की तरफ आते हैं।पहला,भारत-बांग्लादेश सीमा से घुसपैठ होती है।चंद पैसों के एवज में देश में विदेशी घुस आते हैं।घुसने के बाद यहां फैले भ्रष्टाचार की वजह से ये लोग राशन कार्ड हासिल करते हैं,मतदाता सूची में नाम दर्ज कराते हैं और भारतीय दिखने के लिए जरुरी सारे कागजात हासिल कर लेते हैं।एक भारतीय ही चंद रुपयों के लिए इन्हें यह मुहैया कराता है।उसे देश की चिंता नहीं है।उसे तो सिर्फ अपनी चिंता है।उसे लोभ है।इसलिए वह भ्रष्टाचार के जरिए गलत को भी सही करता है।
दूसरा,केंद्र असम को विकास के लिए राशि मुहैया कराता है।लेकिन इसमें भ्रष्टाचार होता है।राजनेता वोट खरीदने के लिए अपना खर्च निकालने और अधिकारी धनवान बनने विकास की रकम का अधिकांश गटक जाते हैं।विकास सही नहीं होता।कुछ के पाकेटों तक सीमित रहता है।इससे समाज में भेद नजर आते हैं।कोई गरीब है तो गरीब ही रह जाता है और कोई आंखों के सामने लखपति से अरबपति बनता है।जब वंचित लोग इसे देखते हैं तो उन्हें गुस्सा आता है।उन्हें रोजगार नहीं मिलता।तब वे बंदूक उठाते हैं और उग्रवाद के रास्ते पर जाते हैं।हिंसा करते हैं।सरकार से बातचीत होती है और समझौता।हिंसा और लूट के बावजूद समझौते में इनके सारे खून माफ हो जाते हैं।फिर ये राजनेता बन जाते हैं।इनका राजनेतावाला धंधा शुरु हो जाता है।इस तरह क्रमवर सिलसिला चलता रहता है।यानी सब अपनी-अपनी दुकान चलाते हैं।तब फिर इस देश का भला कैसे होगा ?
असम के बोड़ोलैंड की हिसा पर अब आते हैं।छह साल के असम आंदोलन के बाद 1985 में असम समझौते हुआ।असम आंदोलन में शिरकत करनेवाले बोड़ो नेताओं को लगा कि असम आंदोलन के बाद असम समझौता कर असमिया युवक सत्ता पा सकते हैं तो हम क्यों नहीं ?क्योंकि बोड़ो नेता अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।इन्होंने तब अलग बोड़ो राज्य की मांग में आंदोलन शुरु कर दिया।हिंसा हुई और बोड़ो स्वशासी परिषद के लिए समझौता हुआ।आंदोलन करनेवाले नेता ही परिषद की सत्ता पर काबिज हुए।लेकिन धांधली के आरोप में परिषद को भंग किया गया तो इन लोगों ने फिर अलग संगठन बनाकर हिंसक आंदोलन किया।फिर केंद्र से समझौता हुआ और केंद्र ने परिषद की झोली में कुछ और डाल दिया।सत्ता आई।भ्रष्टाचार हुआ।एक धड़ा अपने को ठगा महसूस कर हिंसक कार्य जारी रखे हुए है।वह अलग संप्रभु राष्ट्र की मांग करता है ताकि समझौता होने पर इस बार राज्य मिल ही जाए।सभी बोड़ो नेता अलग राज्य की मांग का समर्थन करते हैं।
पर इस अलग बोड़ो राज्य में बाधा यह है कि उस इलाके में बोड़ो आबादी 50 प्रतिशत से कम है।इसलिए इनका मकसद उस इलाके में रह रहे गैर बोड़ो समुदाय को हटाना।इसके लिए अलग-अलग दंगे किए गए।कभी आदिवासियों को निशाना बनाया गया तो कभी मुसलमानों को।इसलिए अलग राज्य न दिए जाने तक यह निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया हो गई है।हिंसा पूरी तरह नहीं थमेगी।कारण विभिन्न गुटों में बंटे राजनेता अपनी-अपनी दुकान चलाने इन्हें उकसाकर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे।
यदि सरकार गंभीर होती और उसे पूरी तरह यह खात्मा करना होता तो पहला काम इलाके में जितने भी अवैध हथियार हैं उन्हें जब्त करना था।विभिन्न पक्ष इसकी मांग कर रहे हैं।लेकिन ऐसा अब तक नहीं किया गया है।क्यों ? यदि ऐसा किया गया तो समस्या खत्म होगी।समस्या खत्म होने पर इनकी दुकान नहीं चलेगी।सो,खून इनके लिए साधारण निर्दोष लोगों का बहता रहेगा।इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।