असम में चाय की प्याली में तूफान उठा है।दुर्गापूजा आते ही चाय बागानों में श्रमिकों के बोनस का मुद्दा उठने लगता है।चाय बागान प्रबंधन मंदी की मार का रोना रोते हैं तो साल भर से बोनस की राह जोते चाय बागान श्रमिकों का खून खोला हुआ रहता है।ऐसे में चाय बागान में न चाहनेवाली घटनाएं घटती है और बेकसूर लोग मारे जाते हैं।
हाल ही में टियोक चाय बागान के डाक्टर देबेन दत्त की हत्या गुस्साए चाय श्रमिकों ने कर दी।वजह थी कि जब घायल श्रमिक को इलाज के लिए बागान के अस्पताल लाया गया तो डाक्टर नहीं था।श्रमिकों का कहना है कि उन्होंने बागान की एंबुलेंस को भी बुलाया।लेकिन वह नहीं आई।अस्पताल पहुंचे तो डाक्टर नहीं।इसलिए घायल श्रमिक सोमरा मांझी मारा गया।गुस्साए श्रमिकों ने डाक्टर देबेन दत्त की पीट-पीटकर हत्या कर दी।श्रमिकों ने कहा कि डा.दत्त काफी उम्रदराज थे इसलिए हमने कोई युवा डाक्टर नियुकत् करने की मांग प्रबंधन से कई बार की थी।लेकिन प्रबंधन ने हमारी एक नहीं सुनी।
इस घटना से साफ होता है कि श्रमिकों का गुस्सा डाक्टर को लेकर था।वह सोमरा मांझी के मौत के साथ ही फूट पड़ा।चाय बागान के श्रमिक दबे-कुचले लोग हैं।उनकी जिंदगी नरक से भी ज्यादा दुखदायी है।बागानों की लाइन में जाने से यह बात पता चलती है।चाय बागानों के अस्वस्थ्यकर माहौल में काम करते-करते यह समय से पहले रोगग्रस्त हो जाते हैं।न शुद्ध पेयजल मिल पाता है।लाइनों में नाले वगैरह का इंतजाम नहीं होता।गंदगी में जीवन जीते-जीते ये आंत्रशोथ व अन्य गंभीर बीमारी के शिकार हो जाते हैं।बागान में थका देनेवाले परिश्रम के बाद इससे हलका होने के लिए ये देशी शराब का सेवन करते हैं,जो क्वालिटी में सही नहीं होती।ये इनके लिए जानलेवा साबित होती है।पीने के बाद घर का माहौल भी ठीक नहीं रहता।मारपीट।बच्चे ये देखते हुए बड़े होते हैं।आर्थिक तंगी से परेशान वे राज्य के अन्य स्थानों में रोजगार की तलाश में जाते हैं।जहां भी उन्हें अधिकांश समय नारकीय जीवन जीना होता है।
राजनीतिक पार्टियां इनसे वोट लेने के लिए इन्हें विभिन्न वादों से आकर्षित करती है।लोभ देती है।पर वोट मिलने के बाद ये भुला देती है।आज भी इनके जीवनयापन का मानदंड उन्नत न होना इसी बात को दर्शाता है।असम में सत्तारुढ़ भाजपा नेतृत्ववाली सरकार ने वादा किया था कि वह इनकी दैनिक मजदूरी 351 रुपए कराएगी।लेकिन आज भी इन्हे रोज 167 रुपए की मजूदरी मिलती है।यह तो ब्रहमपुत्र घाटी के बागान में है,लेकिन बराकघाटी के बागानों में यह 150 रुपए है।इन्हें हर रोज 24 किलो हरी पत्तियां तोड़नी होती है।इससे कम होने पर मजदूरी में कटौती कर दी जाती है।
शोषण का यह दर्द जब फूटता है तो परिणाम भयावह होते हैं।असम के बागानों में चाय श्रमिकों द्वारा नृशंस हत्या के अनेक मामले हैं।वर्ष 2012 में तिनसुकिया जिले के बरदुमसा चाय बाग़ान के मालिक मृदुल कुमार भट्टाचार्य और उनकी पत्नी को चाय मजदूरों ने उनके ही बंगले में जिंदा जला दिया था।इसके अलावा इस साल मई महीने में डिब्रूगढ़ जिले के डिकम चाय बाग़ान में मजदूरों की भीड़ ने डाक्टर प्रवीण ठाकुर को भी पीटा ।वे बाल-बाल बचे।अंधविश्वास भी है।डायन हत्या जैसी घटनाएं होती है।जब तक इनमें जागरुकता लाकर इनके जीवन को बेहतर नहीं किया जाएगा तब तक इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती रहेंगी।
असम में बड़े चाय बागानों की संख्या 765 के आसपास है जबकि लघु चाय उत्पादकों की संख्या एक लाख के आस-पास पहुंच चुकी है।इनमें लगभग हर रोज सात लाख स्थाई श्रमिक काम करते हैं।अस्थाई श्रमिक और बाल मजदूरों की संख्या अलग से है।जब बोनस देने का समय आता है तो चाय बागानों के प्रबंधन नुकसान का रोना शुरु करते हैं।लेकिन चाय की गुणवत्ता बढ़ाने और इसकी बिक्री को बढ़ाने के लिए कोई कोशिश नहीं करते।जब तक इन्हें सारी सहूलियतें सरकार से मिलती रहे तब तक इन्हें दिक्कत नहीं।जैसे ही सरकार ने मजदूरों को दिए जानेवाले रियायत दर के राशन को बंद कर दिया तो इन्हें समस्या आने लगी।मजदूरों के लिए सहूलियतें देने को कहा तो दिक्कत आने लगी।कई बड़ी कंपनियां जो पहले मुनाफा कमाती थी अब सरकार के कदमों से बागान बेचना शुरु कर चुकी है।कई वहां दूसरे उद्योग लगाना शुरु कर चुकी है।इन्हें जहां ज्यादा फायदा नजर आता है वहीं का रुख कर लेते हैं।इससे अब चाय उद्योग के सामने संकट आ गया है।
चाय उद्योग के लोग चाहते हैं कि श्रमिकों को सारी सुविधाएं सरकार दें और वे सिर्फ चाय का उत्पादन करे और उससे मुनाफा कमाएं।यही इस उद्योग के संकट का कारण बन रहा है।चाय उद्योग गंभीरता से चाय को अलग-अलग तरीके से बेचे और उसमें नयापन लाए तो निश्चित तौर पर उसके लिए भला है।तब संकट के बादल छटेंगे और वह श्रमिकों को बेहतर दे पाएगा।जब बेहतर दिन थे तब भी श्रमिकों के उत्थान के लिए इन्होंने कुछ नहीं किया।नहीं तो आज की स्थिति पैदा नहीं होती। असम देश के कुल चाय उत्पादन के पचास फीसदी का उत्पादन करता है।
असम में ऐसी भी चाय का उत्पादन होता है जिसकी प्रति किग्रा कीमत 75 हजार रुपए तक है।गुवाहाटी चाय नीलाम केंद्र में अक्सर इतने दामों पर चाय नीलाम होने की खबरें मीडिया में आती हैं।इसका अर्थ है कि बेहतर चीज की कीमत हमेशा मिलती ही है। डिकोम चाय बागान की गोल्डन बटरफ्लाई चाय प्रति किग्रा 75 हजार रुपए में बिकी ।यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में चाय की बिक्री का एक रिकार्ड है।गोल्डन टी टिप्स चाय भी 70,501 रुपए प्रति किग्रा में बिकी थी।डिब्रुगढ़ के मनोहरी चाय बागान की मनोहरी गोल्ड टी एक किग्रा चाय पचास हजार रुपए प्रति किलोग्राम में बिकी है। गुवाहाटी नीलाम केंद्र के सचिव दिनेश बियानी ने बताया चाय प्रेमी बेहतर चाय के लिए कुछ भी कीमत अदा कर सकते हैं। इस तरह की चाय की देश ही नहीं विदेशों में भी काफी मांग है।जब चाय की इतनी मांग है तो फिर चाय उद्योग रो क्यों रहा है।निश्चित तौर पर वह कोशिश नहीं कर रहा है।उसका मकसद सिर्फ कमान है।नहीं तो यह हाल क्यों।यह सोचने की बात है।
जो श्रमिक अपने हाड़-मांस से चाय के पौधों को अपने बच्चों की तरह बड़ा कर उनकी पत्तियों को तोड़कर देश-दुनिया को चाय की चुस्कियों से तरोताजा करने में अपना योगदान करते हैं उनका जीवन कब तक हम इस तरह जीन को छोड़ते रहेंगे।यह अब सोचने का वक्त आ गया है,नहीं तो श्रमिकों का गुस्सा कभी ओर विकराल रुप धारणा कर सकता है।