Monday, September 3, 2012

असम हिंसाः कम्यूनल हैं हम

राजीव कुमार


हम अधिकांश भारतीय सांप्रदायिक यानी कम्यूनल हैं।मेरे इस कथन पर बहुत लोगों को आपत्ति हो सकती है।लेकिन यह बात सौ प्रतिशत सच है।सच कड़वा होता है।यदि हम अधिकांश सांप्रदायिक नहीं होते तो देश में मजहब के नाम पर हिंसा नहीं होती।असम के बोड़ो इलाके में हिंसा के बाद उत्पन्न स्थिति को देखने पर मैं यह कह रहा हूं।
बोड़ो इलाके में हिंसा हुई।अधिकांश नेताओं ने सीधे कह दिया कि इसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों का हाथ है।ऐसा कहने के लिए कोई जांच-पड़ताल भी नहीं की।यदि है तो इन बांग्लादेशियों को हम देश का शत्रु मानते हैं और इन्हें तुरंत गिरफ्तार करवाया जाए।भाजपा नेता तो कह रहे हैं कि हिंसा के बाद बनाए गए राहत शिविरों में बांग्लादेशी रह रहे हैं।हद हो गई।हम अपने को धर्मनिरपेक्ष देश मानते हैं,लेकिन भारतीयों को भी बांग्लादेशी कहने से हमें कोई संकोच नहीं।बांग्ला भाषा बोलने, दाढ़ी रखने व लूंगी पहनने से कोई बांग्लादेशी नहीं हो जाता।यह हम कट्टर भारतीयों को जान लेने की जरुरत है।
असम के उन इलाकों में जाने की जरुरत है, जहां ये रहते हैं।मेरा सौभाग्य है कि मैं उस इलाके में जन्मा,पला और बड़ा हुआ हूं।निचले असम के चर इलाकों में यह रहते हैं।जहां विकास का प्रकाश अब तक नहीं पहुंचा है।यह बेहद मेहनती होते हैं।अपने इलाके में काम के अवसर न रहने के कारण ये अन्य जगहों पर काम के लिए यायावरी जीवन जीते हैं।यह इतने पढ़े लिखे नहीं होते कि कागजातों का क्या महत्व है,यह इन्हें समझ में आए।इसलिए इन्हें सीधे बांग्लादेशी करार दिया जाता है।वजह है यह बांग्लादेश से सटे भारतीय इलाकों में रहते हैं और बांग्लादेश के लोगों की तरह ही दिखते हैं।क्या यही इनका दोष है ?देश की आजादी के पहले बांग्लादेश के लोग भारतीय ही थे।यह भी जान लेने की जरुरत है।
यदि इन भारतीयों को हम बांग्लादेशी कहेंगे तो क्या इनके मन में ठेस नहीं पहुंचेगी ?यह अलगाव पैदा नहीं करेगी ? इनके मन में असुरक्षा का भाव पैदा होगा।क्या मुझे या आपको कोई बांग्लादेशी या पाकिस्तानी कहे तो सहन कर पाएंगे ?नहीं न।तो फिर हमें यह कहने का अधिकार किसने दिया ?हां,बांग्लादेशी सीमा खुली रहने का फायदा उठा आ रहे हैं।इन्हें पकड़ने की जरुरत है।सीमा सील किए जाने की जरुरत है।पर बिना सोचे-समझे किसी को उनकी बोली और पहनावे को देखकर बांग्लादेशी कह देना मानहानि करना है।इससे हमें बचना चाहिए।ऐसा कर हम देश को मजबूत करने के बजाए कमजोर कर रहे हैं।
बोड़ो हिंसा के बाद देश के अन्य इलाकों में पढ़ाई और रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे पूर्वोत्तर के लोग वहां से पलायन कर लौट आए।इनमें से कुछेक को वहां धमकी दी गई।इसके बाद फैली अफवाह के चलते लोगों का उन इलाकों से पलायन हुआ।असम के लोगों को देश के अन्य हिस्सों में धमकाना भी हमारे कम्यनूल होने का सबूत है।यदि हम भारतीय हैं तो हम एक हैं।लेकिन मजहब व इलाके के संकीर्ण विचारों को लेकर हमारी सोच संकुचित हो चुकी है।इससे जुड़ाव नहीं,बिखराव पैदा होगा।हमें इससे बचने की जरुरत है।
लेकिन धर्म के नाम पर राजनीति करनेवाले ऐसा करने से बाज नहीं आते।उन्हें तो सिर्फ अपनी रोटियां सेंकने से मतलब है।असम की हिंसा के बाद बाहर नफरत फैलाने का आरोप लगा बजरंग दल ने आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष तथा धुबड़ी के सांसद बदरुद्दीन अजमल को गिरफ्तार करने की मांग में 27 अगस्त को असम बंद का आह्वान किया।इस बंद की ज्यादा आलोचना मैंने नहीं देखी।हिंदू संगठन के दिए गए बंद पर ज्यादातर लोग चुपच प घरों में दुबके रहे।जब 28 अगस्त को अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ(आम्सू) ने असम बंद का आह्वान किया तो हिंसक घटनाएं हुई।पत्रकारों पर हमला हुआ।
हिंसा की निंदा की जानी चाहिए,लेकिन जिस तरह इस संगठन के साथ व्यवहार किया जा रहा है,वह बराबर का दर्जा नहीं कहा जा सकता।बंद,बंद हो।हिंसा समर्थनयोग्य नहीं है।बंद के दौरान संगठन के कुछेक सदस्य हिंसा कर सकते हैं।दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।पर इसके लिए पूरे संगठन की आवाज को बंद करने की कोशिश समर्थन योग्य नहीं हो सकती।हिंदू संगठन के बंद के दौरान ऐसा होता तो शायद यह कोशिश नहीं होती।हम दोयम दर्जा अपना रहे हैं।यह ठीक नहीं।जब तक हम इस तरह का व्यवहार करेंगे मुसलमानों को भारतीय बना नहीं पाएंगे।दिखने मैं वे भारतीय होंगे पर उनका मन हमारे साथ नहीं होगा।यह देश को कमजोर करता है।हम कम्यूनलों को यह समझने की जरुरत है।