Wednesday, June 20, 2007

आजादी नहीं,बर्बादी में लगा है उल्फा



राजीव कुमार
उल्फा नेता बांग्लादेश में है।संगठन के बयानों से यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है।कारण बांग्लादेश में बैठे उल्फा के शीर्ष नेता वहां के कट्टरवादी संगठनों की बोली बोल रहे हैं।यह उनकी मजबूरी है।नहीं तो शरण कौन देगा।इसलिए बांग्लादेश के कट्टरवादी संगठनों को खुश करने के लिए उल्फा ने बम विस्फोटों की जिम्मेवारी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पर डालनी शुरु कर दी है।
उल्फा अब कोई विस्फोट करता है और उसमें यदि कोई मुस्लिम व्यकि्त मारा जाता है तो वह तुरंत इससे मुकर जाता है।गुवाहाटी के आठगांव और हाजो में हुए बम विस्फोट में मुसि्लम लोग मारे गए तो उसने देर किए बिना मीडिया में इसका खंडन भेजा।इन बम विस्फोटों के पीछे असम पबि्लक वर्क्स और आरएसएस के छात्र संगठन का हाथ होने का आरोप मढ़ दिया।अन्य विस्फोटों के मामले में वह इतनी हड़बड़ी नहीं दिखाता है।मुख्यमंत्री तरुण गोगोई कहते हैं,उल्फा बांग्लादेश में बैठे अपने मास्टरों को खुश करने के लिए यह करता है।
बांग्लादेश में शरण के बदले उल्फा को वह सारी बातें माननी पड़ रही है जो असम के हितों के खिलाफ है।असम को आजाद कराने का सपना देखनेवाला संगठन इस तरह असम को ही क्षति पहुंचा रहा है।बांग्लादेश से अबाध घुसपैठ होती है।इस पर वह चुप्पी साधे हुए है।वह बोल नहीं सकता।आसरा मिलने के कारण वह बेबस है।इसके चलते बांग्लादेश की वह योजना सफल होने की ओर बढ़ रही है जिसमें उसने निचले असम के कई जिलों को लेकर वृहतर बांग्लादेश बनाने का सपना देखा है।उल्फा के कंधे पर बंदूक रखकर वह इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
उल्फा का जन्म 7 अप्रेल 1979 को शिवसागर जिले के ऍतिहासिक रंगघर में हुआ था।पर उसने बांग्लादेश में शरण दस साल बाद 1989 में ली।जब उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आशंका हुई।जब उल्फा नेताओं ने बांग्लादेश में शरण ले ली तो राज्य में धीरे-धीरे मुसि्लम आबादी बढ़ने लगी।जानकार बताते हैं कि 1989 में उल्फा का एक नेता बांग्लादेश गया।उसने बांग्लादेश नेशनल पार्टी की तत्कालीन सरकार के एक मंत्री से मुलाकात की।इस बैठक के बाद ही पाकिस्तान के पेशावर में वहां की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विस इंटलीजेंस(आईएसआई)ने उल्फा के सदस्यों को 1990-91में प्रशिक्षण दिया।यह शुरुआत थी।लेकिन इसके पहले 1983 में उल्फा के चालीस सदस्यों ने म्यांमार के काचिन में एनएससीएन से हथियारों का प्रशिक्षण पाया था।इसमें उल्फा के सेना प्रमुख परेश बरुवा भी शामिल थे।इसके बाद 1986 में काचिन में 90 उल्फा सदस्यों ने प्रशिक्षण पाया।प्रशिक्षण पानेवालों में उल्फा के चेयरमैन अरविंद राजखोवा भी शामिल थे।इसके बाद ही संगठन ने बांग्लादेश का रुख किया और असम के विनाश का दौर शुरु हो गया।
1971 की जनगणना के अनुसार ग्वालपाड़ा जिले में हिंदुओं की जनसंख्या 50.11प्रतिशत थी जबकि मुसलमानों की 41.50थी।लेकिन 20साल बाद पूरी छवि ही बदल गई।1991की जनगणना में इस जिले में हिंदुओं की आबादी घटकर 39.89प्रतिशत पर आई जबकि मुसलमानों की बढ़कर 60.46 प्रतिशत पर पहुंच गई।यही हाल धुबड़ी जिले में हुआ।1971की जनगणना के अनुसार धुबड़ी जिले में हिंदुओं की जनसंख्या 38.80 प्रतिशत थी जबकि मुसलमानों की 60.40 थी।लेकिन 1991की जनगणना के अनुसार इस जिले में हिंदुओं की जनसंख्या घटकर 28.73प्रतिशत और मुसलमानों की बढ़कर 70.45प्रतिशत हुई।ठीक इसी तरह बरपेटा जिले में 1971 की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या51.52प्रतिशत और मुसलमानों की 48.65प्रतिशत थी।पर बीस साल बाद मुसलमानों की बढ़कर 56.07प्रतिशत और हिंदुओं की घटकर 40.26पर आ गई।हाइलाकांदी जिले में 1971की जनगणना के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या 47.48 प्रतिशत और मुसलमानों की 51.40प्रतिशत थी।लेकिन बीस साल बाद हिंदुओं की आबादी इस जिले में घटकर 43.71प्रतिशत और मुसलमानों की बढ़कर 54.79प्रतिशत हो गई।राज्य के अधिकांश जिलों में हिंदुओं की जनसंख्या घटी है जबकि मुसलमानों की बढ़ी है।वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य में हिंदुओं की जनसंख्या 64.9प्रतिशत और मुसलमानों की 30.9प्रतिशत थी जबकि 1991की जनगणना में हिंदुओं की जनसंख्या 67.1और मुसलमानों की 28.4प्रतिशत थी।केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से 36 में मुस्लिम बहुसंख्यक है।भारत-बांग्लादेश की खुली सीमा से बांग्लादेशी घुसपैठियों का निरतंर आना जारी है।इन सबके बीच उल्फा ने हिंदीभाषी मजदूरों की हत्या कर बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोजगार का अवसर दे दिया है।स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि असम यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक रसूल हक ने निचले असम के कई जिलों को लेकर मुस्लिमों के लिए अलग से स्वायत्त परिषद बनाने की मांग की है।उधर उल्फा के सहयोग से राज्य में जेहादी तत्व सक्रिय है।इन सब ने मिलकर राज्य को गर्त में ले जाने का कार्य शुरु कर दिया है।मुख्यमंत्री तरुण गोगोई कहते हैं,असम स्वाधीन होकर नहीं रह सकता।माना कि हो भी गया तो वह पराधीन ही होगा।उल्फा नेताओं को उसे बांग्लादेश के इशारे पर ही चलाना होगा।
इन सब से यह स्पष्ट हो जाता है कि बांग्लादेश में आसरा लेने की कितनी बड़ी कीमत उल्फा नेता चुका रहे हैं।जो आनेवाले दिनों में असम के लिए सबसे बड़ा खतरा बनेगी।कारण बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण राज्य में भारी जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ है।
(लेखक पूर्वोत्तर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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