Friday, June 4, 2010

पत्र में उलझी अल्फा वार्ता

राजीव कुमार
असम आतंकवाद प्रभावित राज्य है।लेकिन अब स्थिति में तेजी से बदलाव आ रहा है।लेकिन राजनीतिक दाव-पेंच के चलते समस्याएं पूरी तरह सुलझ नहीं पा रही है।
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार आई तो उसने असम के आतंकी संगठन यूनाईटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम(अल्फा) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड(एनडीएफबी) के शीर्ष नेताओं को पकड़ा और उन्हें भारत के हवाले किया।इनमें अल्फा के चेयरमैन अरविंद राजखोवा और एनडीएफबी के चेयरमैन रंजन दैमारी शामिल है।
असम के लिए यह एक अच्छी बात हुई।कारण बांग्लादेश में रहकर ये नेता असम के लिए परेशानी पैदा कर रहे थे।गिरफ्तार होने के बाद इनके तेवर नरम पड़ गए हैं।ये अब सरकार से बातचीत करना चाहते हैं।केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदबंरम की सलाह पर असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने राज्य कैबिनेट की बैठक कर इन संगठनों से बातचीत करने का औपचारिक फैसला किया।
यहां तक सब कुछ ठीक था।पर जेल में बंद अल्फा नेताओं से बातचीत के बाद जमानत पर रिहा होकर बातचीत की कोशिश में लगे संगठन के उपाध्यक्ष प्रदीप गोगोई ने कहा कि सरकार हमसे बातचीत को इच्छुक है,यह बात बताने के लिए हमें एक पत्र देना चाहिए।इस पर मुख्यमंत्री ने भी कहा कि वे बातचीत को इच्छुक है ,इसका पत्र सरकार को दे।यानी एक पत्र की बात को लेकर वार्ता में अब गतिरोध आ गया है।कोई असम की एक बड़ी समस्या को सुलझाने के लिए छोटा होने को तैयार नहीं है।
वार्ता के लिए फिलहाल कोशिश में लगे असम के बुद्धिजीवी डा.हिरेन गोहाईं का कहना है - ‘मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद हम उनसे मिले थे तो उन्होंने इस तरह के किसी पत्र की बात नहीं की थी।अचानक यह कैसे आ गई।‘मुख्यमंत्री वार्ता को लेकर बार-बार बयान बदल रहे हैं।इसलिए ही वार्ता में गतिरोध आ रहा है।लगता है कि वे समस्या से राजनीतिक खेल, खेल रहे हैं।जब संगठन के ज्यादातर नेता सरकार के कब्जे में हैं तब इस तरह की पेचिदगियां पैदा करना सही नहीं।
लगता है गोगोई अगले साल मार्च-अप्रेल में होनेवाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर अपने फायदे के लिए उचित समय के इंतजार में इस तरह की समस्याएं पैदा कर रहे हैं।राजनेताओं के इस तरह अपने फायदे की रोटी सेंकने के कारण ही देश में अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं और समस्याएं ही बनकर रह जाती है।यह बात इससे भी साबित होती है कि जब केंद्रीय गृहमंत्री चिदबंरम आए तभी बांग्लादेश ने असम के वहां रह रहे शीर्ष नेताओं को प्रत्यपर्ण संधि न रहने के बाद भी अलग रास्ता अपनाकर इन्हें भारत के हवाले कर दिया।
चिदबंरम के कामकाज में एक सख्ती है।वे राजनीतिक हस्तक्षेप को बहुत कम कबूलते हैं।इसका नतीजा ही असम के लिए आई सफलता है।मुख्यमंत्री को चिदबंरम का यह रवैया पसंद नहीं।इसलिए गोगोई कभी-कभी कहने से हिचकते नहीं कि गृहमंत्रालय जो कहेगा वही होगा।एकसमय गोगोई अल्फा से चिट्ठी की मांग कर रहे थे तो केंद्रीय गृहसचिव जी के पिल्लै ने कह दिया कि चिट्ठी की कोई आवश्यकता नहीं है।इसके बाद गोगोई ने कहा कि मंत्रालय को चिट्ठी नहीं चाहिए तो वैसे ही होगा।
इससे साफ होता है कि राजनेता ठान लें कि समस्याएं खत्म करनी है तो उनके लिए इन्हें खत्म करना कोई मुश्किल बात नहीं।पर वे अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह की समस्याएं खुद पैदा कर इन्हें तब तक जिंदा रखते हैं जब तक इनका मकसद पूरा न हो जाए।जब सरकार वार्ता के लिए आगे बढ़ने का एलान करती है तो आलोचना के इरादे से विपक्षी पार्टियां कहती है कि अल्फा के कमांडर-इन-चीफ परेश बरुवा के बिना बातचीत सफल नहीं हो सकती है।उसे भी लाना चाहिए।अच्छी बात है।पर कोई न आए और पकड़ने में भी सफलता न मिले तो कब तक इंतजार किया जाए।
देर करना अब असम के हित में नहीं है।कारण माहौल बदला है।लोगों में पहले जैसा भय नहीं।निवेश हो रहा है।शिक्षा में बेहतर नतीजे आने लगे हैं।समस्या का पूरा अंत हो जाने से असम देश का सबसे विकसित राज्य बन जाएगा।यहां लोगों को रोजगार के ढेरों अवसर मिलेंगे।पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।इसलिए मुख्यमंत्री गोगोई को पत्र के चक्कर में समय बर्बाद न कर जल्द से जल्द बातचीत कर समस्या को खत्म करना चाहिए। (लेखक गुवाहाटी स्थिति वरिष्ठ पत्रकार और पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)
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Tuesday, May 11, 2010

खत्म हो रही है राष्ट्रीयता की भावना

राजीव कुमार

देश के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना में कमी आई है।वे काफी संकुचित सोचने लगे हैं।यही वजह है कि अलगाववाद पनपता है और हिंसक गतिविधियां होती है।उन्हें सिर्फ अपने आस-पास की चिंता है,न कि पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर के रखने की।
नगा आतंकी संगठन एनएससीएन(आईएम) के महासचिव टी मुइवा ने अपने मणिपुर के जन्मस्थान का दौरा करने की बात केंद्र से कही।केंद्र ने इस पर हरी झंडी दिखा दी।लेकिन मणिपुर की सरकार को इस पर आपत्ति है।उनका मानना है कि मुइवा के दौरे से राज्य में हिंसा होगी।स्थानीय लोगों और सरकार को लगता है कि मुइवा के दौरे से मणिपुर के विखंडित होने का खतरा है।इसलिए मणिपुर सरकार ने मुइवा के घुसने पर रोक लगा दी।माओ में मुइवा का काफिला रुक गया।यह मुइवा के मणिपुर में घुसने का प्रवेश द्वार था।स्थिति को विकट देखते हुए केंद्र सरकार ने मुइवा को यात्रा स्थगित करने का अनुरोध किया।किंतु इस बीच माओ में सुरक्षा बलों के हाथों दो एनएससीएन समर्थक मारे गए।मुइवा को मणिपुर में न घुसने देने और दो समर्थकों के मारे जाने के विरोध में एनएससीएन समर्थकों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 39 अवरुद्ध कर दिया।इसके चलते मणिपुर में अत्यवश्कीय सामग्री का संकट पैदा हो गया।मणिपुर के नौ नगा विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।इससे साफ हो गया कि हम संकीर्ण विचारधारा के हो गए हैं।

केंद्र जहां नगा समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत है,वहीं वह इससे उत्पन्न होनेवाली स्थितियों को लेकर चिंतित नहीं।जब एनएससीएन के साथ संघर्षविराम का दायरा मणिपुर तक किया गया था तब मणिपुर जल उठा था।इसलिए इस बार मुइवा को उनके जन्मस्थल जाने की अनुमति देने के पहले केंद्र को सोचना चाहिए था।
एनएससीएन वृहत्तर नगालैंड की मांग कर रहा है।इसमें असम,अरुणाचल और मणिपुर के इलाके भी शामिल हैं।ऐसे में मुइवा अपने समर्थकों के हुजूम के साथ अपने जन्मस्थल जाएंगे तो मणिपुर के लोगों का शंकित होना स्वाभाविक है।मणिपुर के लोग शंका में हिंसा करेंगे तो प्रदेश सरकार का भी शंकित होना लाजिमी है।पहले के आधार पर मणिपुर के मुख्यमंत्री ओ इबोबी ने एलान किया कि वे मुइवा को राज्य में नहीं घुसने नहीं देंगे।दिल्ली की नींद तब टूटी और उसने इबोबी को दिल्ली बुलाया।पर वहां भी इबोबी अपनी पार्टी की सरकार की बात भी मानने को तैयार नहीं हुए।अब भी गतिरोध बना हुआ है।
इस गतिरोध के कारण मणिपुर के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।राज्य में पेट्रोल,डीजल,आक्सीजन और जीवन रक्षक दवाइयों का संकट पैदा हो गया है।नगालैंड के पुलिस महानिदेशक ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक से कहा है कि जब तक स्थिति में सुधार नहीं हो जाता तब तक मणिपुर के वाहनों को नगालैंड से न गुजरने दिया जाए।मणिपुर सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की ताकि सुरक्षा के बीच वाहन मणिपुर आ सकें।बात यही नहीं खत्म हो जाती।नगालैंड की कैबिनेट ने इबोबी सरकार की मुइवा को मणिपुर में घुसने से रोकने के कारण निंदा की तो मणिपुर कहां पीछे रहता।मणिपुर सरकार ने भी कहा कि नगालैंड सरकार उसके आंतरिक कामकाज में हस्तक्षेप कर रही है।
यह कड़वाहट इस स्तर तक पहुंच गई है जैसे यह एक देश का मसला न होकर दूसरे देश के साथ विवाद का मसला हो।राजनेताओं के अपनी रोटी सेंकने के चक्कर में देश को इस तरह टुकड़ों में बांट दिया कि अब लोग इनसे ऊपर नहीं उठ पाते हैं।एक लड़का एक जिले से दूसरे में सरकारी नौकरी पाता है तो बवाल मचता है।मुंबई में उत्तर भारत के लोग काम के लिए पहुंचते हैं तो नवनिर्माण सेना को आपत्ति होती है।वह इनसे मारपीट करती है और चले जाने को कहती है।पूर्वोत्तर में हालत इससे भिन्न नहीं।
देश के लोगों को इस संकीर्णता से निकलने की जरुरत है।यदि नहीं निकले तो एक दिन ऐसा आएगा जब हम अपने देश में बेगाने होंगे।सिर्फ हमें अपने इलाके में सिमट कर रह जाना पड़ेगा।जब हम आधुनिकता की सभी सुविधाएं इस्तेमाल कर रहे हैं तब इस संकीर्ण दायरे में रहना यही साबित करेगा कि हम अब भी सभ्य नहीं हुए हैं।समय तेजी के साथ बदल रहा है।हमें भी इसके साथ-साथ कदम बढ़ाते हुए आगे चलना चाहिए ताकि हम भी प्रगति की राह पर चल सकें।छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ना-झगड़ना अच्छी बात नहीं।
मणिपुर में देश के सबसे ज्यादा आतंकी संगठन है।वहां हिंदी सिनेमा दिखाने पर पाबंदी है।आतंकी समानातंर सरकार चलाते हैं।पड़ोसी नगालैंड में भी हालत कुछ ऐसे ही हैं।वहां एनएससीएन की समानातंर सरकार चलती है।इनसे आम आदमी का भला नहीं होता।चंद नेताओं और आतंकी संगठन के नेता अपना पाकेट भरते हैं।आम आदमी तो अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य है।इसलिए उसे ही इनके खिलाफ कमर कसनी होगी।नहीं तो राजनेता और आतंकी गुटों के नेता इनके खून की होली खेलते रहेंगे।(लेखक पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)