Friday, December 12, 2008

चुनाव:मिजोरम से है सीखने की जरुरत

मिजोरम देश का एक छोटा राज्य है।लेकिन विधानसभा चुनाव यहां जिस शांति और कम खर्च में होते हैं, उससे देश के अन्य राज्य को शिक्षा लेने की जरुरत है।न बाहुबली नेता और न पैसा का खेल।लोग सही अर्थों में अपने मताधिकार का निडर होकर प्रयोग करते हैं और इससे जो निकलकर आता है वह राज्य की बेहतरी के लिए होता है।यही वजह है कि मतदान का प्रतिशत अस्सी से अधिक रहा और यहां त्रिशंकु सरकार नहीं बनी।पिछले दस सालों से मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ) की सरकार थी।लोगों ने इसे कार्य करने का पर्याप्त मौका दिया।लेकिन यह लोगों की नजर में खरी नहीं उतरी तो इस बार इसका लगभग सफाया कर दिया गया।चालीस में से सिर्फ तीन सीटें ही इसे नसीब हुई।खुद पूर्व मुख्यमंत्री जोरामाथांगा दो सीटों से चुनाव लडक़र हार गए।इससे लोगों के गुस्से का आंकलन किया जा सकता है।मिजोरम में कांग्रेस ने दो तिहाई बहुमत पाया है।यह उसकी भी जीत नहीं है।कारण सामाजिक संगठन मिजोरम पीपुल्स फोरम(एमपीएफ)ने राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए जो दिशा-निर्देश जारी कि ए उससे लोगों को उम्मीदवारों का चयन करने में सहूलियत हुई।यह उसकी जीत है।कांग्रेस ने लोगों के आशा के अनुरुप कार्य नहीं किया तो लोग आगे उसका हाल भी एमएनएफ की तरह करेंगे।मिजोरम में गिरजाघरों को सबसे अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।इसके कारण ही एमपीएफ यह मैजिक करने में कामयाब हुआ।एमपीएफ गिरजाघरों और प्रभावशाली एनजीओं का सामूहिक संगठन है।एमपीएफ की महासचिव लालबियाकमाविया नेंगटे ने कहा कि हमारे काम का अंत नहीं हुआ है।पहली बार हम पूरी तरह से वाचडाग की भूमिका में थे,इसमें कुछ त्रुुटियां हुई हंै।हम मिल-बैठकर इन्हें दूर करेंगे ताकि आनेवाले चुनाव में और अच्छा काम कर सकें।एमपीएफ के दिशा-निर्देशों का ही नतीजा है कि मिजोरम के चुनाव में रुपयों और बाहुबल का खेल नहीं हुआ। फिजूलखर्ची वाले भोज,म्यूजिकल बैंड और जनसभाओं के जरिए पिछले विधानसभा चुनाव तक उम्मीदवार वोट मांगा करते थे।लेकिन इस बार यह सब देखने को नहीं मिला।एमपीएफ के दिशा -निर्देशों ने सुनिश्चत किया कि इस चुनाव में मतदाता कोई झांसे में आकर अपने मतदान का गलत इस्तेमाल न कर दे। एमपीएफ के अध्यक्ष रेवेरेंड वनलालोवा ने कहा कि फोरम का उद्देश्य था कि चुनाव राज्य के शांतिपूर्ण माहौल को खराब न करे और मतदान साफ-सुथरे ढंग से संपन्न हो।आगे गिरजाघर और यंग मिजो एसोसिएशन(वाईएमए)उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग से दिशा-निर्देश जारी करते थे।इसके चलते कुछ चूक रह जाती थी।पर इस बार पूरा दृश्य भिन्न था।इस बार इन्हें सम्मिलित किया गया है।राजनीतिक पार्टियों के साथ बातचीत कर गिरजाघर और गैर सरकारी संगठनों ने इस बार दिशा-निर्देशों को अंतिम रुप दिया।उम्मीदवारों को मतदाता तक पहुंचने देने के लिए एमपीएफ ने हर विधानसभा क्षेत्र के हर वार्ड में एक मंच उपलब्ध कराया ।प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच से छह वार्ड है और हरेक में दो से तीन हजार तक मतदाता होते हैं।इस मंच पर निर्धारित समय पर उम्मीदवार को अपनी बात कहने का मौका दिया गया ।साथ ही वह अपने और अपनी पार्टी पर लगे आरोपों का जवाब भी दे सकता था।मतदाता को भी उम्मीदवार से सवाल पूछने का समय दिया गया।पिछले चुनावों में इस तरह के मंच कुछ ही विधानसभा क्षेत्र में बनाए गए थे।लेकिन इस बार चीजों को और अधिक संगठित रुप में किया गया।एमपीएफ ही ने ही यह फैसला किया कि कौन-सी पार्टी कितनी रैलियां आयोजित करेगी और रैलियां होगी कहां।कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की तीन रैलियां आयोजित करने की बात कही थी,लेकिन उन्हें सिर्फ लूंगलेई और आइजल में रैली करने की अनुमति मिली।मिजोरम में पार्टी के चुनाव प्रचार का कार्य देख रहे कांग्रेस नेता वेद प्रकाश का कहना था कि मिजोरम के चुनाव प्रचार का तरीका देश के अन्य राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए।चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक देवाषीश सेन ने कहा कि देश के अन्य राज्यों में इसका अनुकरण किया जाना चाहिए ताकि अत्याधिक खर्च और गलत तरीकों को रोका जा सके। (लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Friday, November 7, 2008

पहाड़ों की रानी है दार्जीलिंग की टॉय ट्रेन

राजीव कुमार
दार्जीलिंग और जलपाईगुड़ी के बीच चलनेवाली टॉय ट्रेन पहाड़ों की रानी है।कारण जब यह सीटी बजाती हुई आगे बढती है तो सडक़ पर चल रहा वाहनों का काफिला थम जाता है।लोग अपने कानों में हाथ की अंगुलियां डालकर उसे जाते हुए निहराते रहते हैं।दार्जीलिंग से न्यूजलपाईगुड़ी तक का ८७।४८ किमी का सफर यह आठ घंटे में तय करती है।इस दौरान यह १७७ बार बीच सडक़ से गुजरती है।यह सारी मानवरहित क्रासिंगें हैं।पर कहीं कोई दिक्कत नहीं आती।जैसे ही टॉय ट्रेन की सीट सुनाई पड़ती है ,वाहन खुद ब खुद थम जाते हैं।यह इस रास्ते में एक नियम-सा बन गया है।सभी जैसे उसे सलाम कर रहे हों।बच्चे-बड़े हाथ हिलाकर बॉय-बॉय करते हैं।मैंने अक्तूबर की पूजा छुट्टियों में दार्जीलिंग से न्यूजलपाईगुड़ी तक इस ट्रेन में सफर का लुत्फ उठाया।दार्जीलिंग और घूम स्टेशनों के बीच बतासिया लूप आता है।पहाड़ की ऊंचाई पर चढऩे के लिए टॉय ट्रेन एक घुमावदार चक्कर बतासिया लूप पर लगाकर घूम की ओर रवाना हो जाती है।बतासिया लूप के बीचोंबीच वार मेमोरियल बना हुआ है।इसे एक पार्क की शक्ल प्रदान की गई है।जैसे ही टॉय ट्रेन लूप का सफर शुरु करती है,पहले से मौजूद पर्यटक उसकी एक तस्वीर अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहते हैं।सुबह यह जगह स्थानीय लोगों को रोजी-रोटी का जुगाड़ कराती है।टाइगर हिल्स से पर्यटकों को लाकर वाहन यहां उतारते हैं।पांच रुपये की टिकट काटकर जब आप वहां पहुंचते हैं तो वहां खचाखच भीड़ रहती है।गोर्खा वेशभूषा में फोटो खिंचवाने और टेलीस्कोप से कंचनजंघा को निहाराने के अलावा वहां पूरा एक बाजार लगा रहता है।पर टॉय ट्रेन के आने के पहले सबकुछ साफ हो जाता है।इसके बाद घूम स्टेशन है,जो ïवश्व में सबसे शिखर पर रहनेवाला रेलवे स्टेशन है।इसकी ऊंचाई समुद्र तल से ७४०७ फिट है।यहां दार्जीलिंग हिमालयन रेलवे के अब तक के सफर को दर्शाता रेलवे संग्रहालय है।इस आठ घंटे के सफर में पहाड़ों की हरियाली का लुत्फ उठाते हुए और बादलों से खेलते हुए कब सफर खत्म होता है, पता ही नहीं चलता।पूरी यात्रा एक रोमांचक अनुभव है।अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक मार्क टवेन ने इस सफर को तय कर टिप्पणी की थी-यह इतनी मजेदार और रोमांचक यात्रा है कि इसे तो पूरे होने में एक सप्ताह लगना चाहिए। टॉय ट्रेन जब सडक़ के किनारे-किनारे आगे बढ़ती है तो जरुरतमंद स्थानीय लोग दौडक़र इसमें सवार हो जाते हैं और जैसे ही अपना गंतव्य आता है,उतर जाते हैं।धुआं उड़ाती,हुक-हुक करती ट्रेन एक दिन उधर से न गुजरे तो पहाड़ी लोगों का जीवन अधूरा-अधूरा लगता है।यह पहाड़ी लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुकी है।पहले इसे भाप इंजन खींचता था।अब इसका स्थान डीजल इंजन ने ले लिया है।लेकिन पर्यटकों को पुराने दिनों की याद दिलाने घूम और दार्जीलिंग के बीच भाप इंजन की गाड़ी अब भी चलाई जाती है।पर दार्जीलिंग- न्यूजलापाईगुड़ी के बीच चलाई जानेवाली मुख्य ट्रेन को अब डीजल इंजन से चलाया जाता है।लेकिन इसमें भी इस बात का ध्यान रखा गया है कि सीटी की आवाज भाप इंजन की तरह ही रहे।इसके अनोखेपन के कारण यूनेस्को ने दिसबंर १९९९ में इसे विश्व धरोहर का खिताब दिया।यह विश्व की दूसरी रेललाइन थी जिसे यूनेस्को ने यह खिताब दिया।आस्ट्रिया की सिमरिंग माउन्टेन रेलवे पहली विश्व धरोहर रेल लाइन है।

एक समय था जब दार्जीलिंग का सफर सिलीगुड़ी के हिलकार्ट रोड से बैलगाड़ी में बैठ कर तय करना पड़ता था।ईस्टर्न बंगाल रेलवे के एक एजेंट फ्रेंकलीन प्रेस्टेज ने १८७८ में सिलीगुड़ी और दार्जीलिंग के बीच रेल संपर्क की बात सोची।उन्होनें पाया कि यह काफी संभावनापूर्ण है।बैलगाड़ी से जो खर्च बैठता है,वह रेल से आधा रह जाएगा।फ्रेंकलीन ने इस पर पूरी रिपोर्ट बंगाल सरकार को सौंपी।जैसे ही इसे स्वीकृति मिली,उन्होंने दार्जीलिंग स्टीम ट्रामवे का गठन किया।उन्होंने दो फीट आमान का फैसला कर १८७९ में निर्माण का कार्य शुरु किया।सिलीगुड़ी से तीनधरिया की ३० किमी लाइन मार्च १८८० में खोली गई।शुरुआत तत्कालीन वायसराय लार्ड लिट्टन के लिए एक विशेष गाड़ी चलाकर की गई।इस लाइन का विस्तार अगस्त १८८० में कर्सियांग ,अप्रेल १८८१ में घूम तक कर जुलाई १८८१ में यह दार्जीलिंग तक पहुंची।मुख्य मार्ग की शुरुआती लागत १७.५ लाख थी जो बाद में बढक़र १९२० में ४३ लाख तक पहुंची।(लेखक पूर्वोत्तर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Friday, October 3, 2008

विकास से ही खत्म होगा पूर्वोत्तर का आंतकवाद

राजीव कुमार
पूर्वोत्तर में आंतकवाद एक कुटीर उद्योग बन चुका है।पूर्वोत्तर के राज्यों में अनेक आंतकवादी संगठन सक्रिय हैं।इन्होंने आंतकवाद को एक रोजगार बना लिया है।इसके कारण पूर्वोत्तर राज्य बाहर बदनाम है।कोई भी इन इलाकों में निवेश को आना नहीं चाहता।इलाके में निजी निवेश नहीं होगा तो स्थितियां नहीं बदलेगी।कारण सरकार सभी बेरोजगारों को सरकारी नौकरियां नहीं दे सकती।बाहरी निवेश होगा तो बेरोजगार युवकों को रोजगार के अवसर पैदा होंगे।इससे ही स्थिति में बदलाव हो सकता है।
पूर्वोत्तर में बेरोजगारी एक भयंकर समस्या है।यह खत्म होने पर ही इलाके में आंतकवाद का नामोनिशान मिटेगा।कारण खाली दिमाग शैतान का घर होता है।बेरोजगारों के दिमाग में जब तक यह शैतान घर करता रहा तब तक स्थिति में सुधार की आशा करना बेकार है।बेरोजगारों को रोजगार मिल गया तो इनका दिमाग खाली नहीं रहेगा और न शैतान घर करेगा।केंद्र सरकार ने अब इस बात को शिद्दत के साथ महसूस किया है।इसलिए पूर्वोत्तर में निवेश को बढ़ावा देने के लिए कोशिशें जारी हैं।
जब देश आजाद नहीं हुआ था तो पूर्वोत्तर की स्थिति देश के अन्य हिस्सों से बहुत अच्छी थी।सकल घरेलू उत्पाद दर सबसे ज्यादा थी।लेकिन अब देश के अन्य राज्यों से यह बहुत पिछड़ा हुआ है।आजादी के बाद देश के अन्य राज्यों का जिस तरह विकास हुआ उस तरह पूर्वोत्तर का नहीं हुआ है।दिल्ली से दूर होने के कारण यह वहां बैठे लोगों के दिलों से भी दूर हो गया।इसलिए यहां लोगों के मन में संकीर्णता पैदा हुई।
मणिपुर की भरोत्तोलक मोनिका देवी को साजिश के तहत बीजिंग ओलंपिक में जाने से रोकने का मामला हो, या असम की बाढ़ की समस्या की अनदेखी कर केंद्र द्वारा बाढ़ प्रभावित बिहार को एक हजार करोड़ रुपए का पैकेज देने की बात हो,इन सबसे पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों में असंतोष बढ़ा ही है।यह लोग अपने को अलग-थलग महसूस करने लगे हैं।यदि बेरोजगारी की समस्या को खत्म कर इस तरह के कार्यों से बचा जाए तो पूर्वोत्तर देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक होगा।
पूर्वोत्तर में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है।यहां साक्षरता दर देश के अन्य राज्यों से अधिक है।इन दोनों के बाद भी इलाका पिछड़ा हुआ है।देश के कुल भौगोलिक इलाके का आठ प्रतिशत ही पूर्वोत्तर है और जनसंख्या में इसका योगदान सिर्फ चार प्रतिशत का है।देश के सकल घरेलू उत्पाद में पूर्वोत्तर का योगदान तीन प्रतिशत का है।प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के दो-तिहाई ही है, जो कि देश में सबसे कम है।इलाके के 35 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 26 प्रतिशत है।पूर्वोत्तर के सत्तर प्रतिशत लोग अपना गुजर-बसर कृषि से करते हैं।इससे साफ हो जाता है कि मैनुफैक्चिरिंग और सर्विस सेक्टर में रोजगार के अवसर न के बराबर है।जहां राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की औसत दर 7.7 प्रतिशत है वहीं पूर्वोत्तर में यह 12 प्रतिशत है।इलाके का शहरीकरण बेहद धीमी गति से हो रहा है।जहां राष्ट्रीय स्तर पर औसत शहरीकरण की दर 28 प्रतिशत है वहीं इलाके की शहरीकरण की दर 15 प्रतिशत है।
परंतु अब केंद्र स्थिति बदलने को आतुर दिखता है।पूर्वोत्तर विकास विभाग के मंत्री मणिशंकर अय्यर और केंद्रीय बिजली राज्य मंत्री जयराम रमेश पूर्वोत्तर की पूरी स्थिति बदलने के लिए जी-जीन से जुटे हैं।सितबंर के मध्य में गुवाहाटी में हुए चौथे पूर्वोत्तर व्यापार सम्मेलन के बाद लगा कि स्थिति बदलनेवाली है।कारण बाहरी लोगों के मन में पूर्वोत्तर के प्रति धारणा बदल रही है।सम्मेलन में देश-विदेश के 1179 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।इनमें विदेश के 97 प्रतिनिधि शामिल थे।कंबोडिया के वाणिज्य मंत्री के अलावा 12देशों के राजदूत सम्मेल में शिरकत करने पहुंचे।इलाके में विभन्न क्षेत्रों में निवेश के लिए 247 प्रस्ताव आए।इनमें से 88प्रस्ताव असम में निवेश के लिए थे।असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का कहना था कि अब पूर्वोत्तर की छवि बाहर बदल रही है।पिछले दो सालों में राज्य में तैंतीस हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए हैं।
इन सब से लगता है कि पूर्वोत्तर के दिन अच्छे आनेवाले हैं।नब्बे के दशक में माहौल ऐसा था कि असम से लोग अपनी जमीन-जायदाद बेचकर चले जाने में बेहतरी समझते थे।लेकिन आज यहां जमीन के इतने भाव हो गए हैं कि खरीदना मुश्किल हो गया है।गुवाहाटी और अन्य शहरों में पैसों के बाद भी जमीन खरीदना मुश्किल हुआ है।पहले शाम के बाद सन्नाटा पसरता था तो अब रात में चहल-पहल बढ़ जाती है।लुक-ईस्ट पालिसी के तहत दक्षिण-एशियाई देशों के साथ पूर्वोत्तर का द्वार खुला तो इलाके में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा।
देश के अन्य हिस्से की बात तो कहना मुश्किल है पर पूर्वोत्तर में विकास के जरिए आंतकवाद का पूरी तरह खात्मा किया जा सकता है।कारण यहां के युवा मेहनती होने के साथ-साथ अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ रखते हैं।इंफोसिस के एन नारायणमूर्ति ने असम का दौरा करते हुए यहां के युवक-युवतियों की इस तरह प्रशंसा करते हुए कहा था कि इलाके के युवक-युवतियां अपने कार्य को ईमानदारी और लगनशीलता के साथ करते हैं और कार्यरत संस्थान के प्रति अपनी निष्ठा को लंबे समय तक बरकरीर रखते हैं।इसलिए इनका सही उपयोग हुआ तो इलाका तरक्की करेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।
(लेखक गुवाहाटी स्थिति पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Friday, August 8, 2008

जीव-जंतुओं पर तो रहम करो शर्मसार करनेवाले राजनेताओं

राजीव कुमार
देश की राजनीति में इस तरह के लोगों की भरमार है, जो राजनेता शब्द को गंदी गाली का दर्जा दिलाने पर आमादा हैं।यदि राजनीति में इस तरह के लोगों की भरमार रही तो आनेवाले दिनों में अच्छे इक्का-दुक्का लोग भी राजनीति में आना बंद कर देंगे।यह देश के लिए सबसे बड़ा नुकसान होगा।
केंद्र की संयुक्त प्रगितशील गठबंधन(संप्रग)सरकार ने जोड़-तोड़ के जरिए संसद में विश्वास-मत हासिल कर लिया।कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने जश्न मनाया।इस पर एतराज करने का कुछ नहीं था।कारण देश की राजनीति में अब इस तरह की घटनाएं आम बात हो गई है।लेकिन मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के लांझी विधानसभा सीट के विधायक किशोर समरिते ने जो जश्न इस खुशी में मनाया उस पर आपत्ति स्वाभाविक है।उन्होंने इस खुशी में एक-
दो नहीं कुल 317 जानवरों की बलि चढाई।इसमें 302 बकरियां और 15 भैंस शामिल हैं।समरिते समाजवादी पार्टी के हैं।समरिते के पुजारी रंजीत शर्मा का कहना है कि विधायक ने दशमहाविद्या पूजा की है।यह पूजा 26 से 30 जुलाई तक की गई।
समरिते को इसका जरा भी खेद नहीं है।वे कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर गुवाहाटी के नीलाचल पहाड़ पर स्थित मां कामाख्या में यह बलि चढ़ाने आए।संप्रग सरकार को बहुमत मिलने की कामना पूरी होने के कारण यह बलि चढ़ाई गई है।साथ ही यह भी कामना है कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बने।
समरिते की इस बलि को लेकर असम में भारी विरोध हुआ।पीपुल्स फोर एनिमल्स की पूर्वोत्तर शाखा की अध्यक्ष संगीता गोस्वामी ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि आधुनिक समाज में पुराने क्रूर रीति रिवाजों को मानकर असहाय पशुओं का खून बहाए यह शोभा नहीं देता।संगठन ने प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र भेजकर इस तरह के पागलपन पर रोक लगाने की मांग की है।पर सत्ता के भूखे राजनेता अपनी सरकार बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं तो इस कार्य को रोकने के लिए कुछ कदम उठाएंगे यह सोचना भी बेकार है।
कामाख्या में समरिते पहले भी बलि चढ़ाते आए हैं।लेकिन इतनी विशाल संख्या में कभी नहीं चढाई गई।समरिते का रिकार्ड भी अच्छा नहीं है।मध्यप्रदेश में समरिते पर हत्या, लूट, अपहरण, धमकाने और सरकारी अधिकारियों के साथ बदसलूकी के लगभग
40 मामले दर्ज हैं।समरिते 19 मार्च 2008 को सुर्खियों में थे जब उन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस समर्थित राज्यसभा उम्मीदवार विवेक तांखा को वोट देने के एवज में कांग्रेस द्वारा दस लाख रुपए देने का आरोप लगाया था।अपनी बात के समर्थन में उन्होंने एक गेस्ट हाउस में हजार-हजार रुपयों के बंडलों को प्रदर्शित किया था।विधायक बनने के बाद समरिते ने अपने गृह जिले में एक विशाल भोज आयोजित किया।इसमें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश भी मौजूद थे।इसमें भी समरिते ने 108 बकरियों की बलि चढ़ाई।
कामाख्या मंदिर में बलि की प्रथा है।पर इतनी बड़ी संख्या में बलि देते आज तक नहीं देखा गया।इस लेखक ने खुद देखा है कि जब समरिते विधायक नहीं थे तब भैसों की बलि चढ़ाने कामाख्या आते थे और यह बलि मुलायम को प्रधानमंत्री बनाने के लिए होती थी।मीडियावालों को वे प्रचार के लिए बुलाते।संगठन बलि का विरोध भी करते।लेकिन इन सब के बीच समरिते का मुख्य ध्यान प्रचार पाने के लिए रहता ताकि मुलायम तक यह बात पहुंचा सके कि उनके लिए वे क्या कर रहे हैं।शायद इस कार्य में वे सफल भी हुए हैं।खुद सपा के विधायक बनने के साथ ही संप्रग के बहुमत पाने पर वे लाखों का खर्च कर इतने पशुओं की बलि जो दे पाएं हैं।समाजवादी पार्टी का इस पर मौन समर्थन है।समर्थन नहीं होता तो विरोध करती।
राजनेता बलि की इस कुप्रथा के खिलाफ होने के बजाए असहाय जीव-जंतुओं की सत्ता में रहने के लिए इस तरह बलि चढ़ाएंगे तो आम जनता को कौन समझाएगा।देश में करोड़ों लोगों को एक समय के लिए दो जून की रोटी नसीब नहीं होती है।पर समरिते जैसे नेता ने बहुमत मिलने का जश्न मनाने के लिए 317 जंतुओं की हत्या कर उनके खून की होली खेली और लाखों स्वाहा किए।इससे मां कामाख्या कितनी खुश हुई यह तो कोई नहीं जानता।इस रकम से समरिते गरीबों को एक वक्त का खाना खिलाते तो निश्चय ही गरीब उन्हें बहुत दुआ देते।इसे देखा और अनुभव किया जा सकता था।

बहुत हो गया। अब समय आ गया है कि राजनीति से इस तरह के लोग दूर हों।अन्यथा देश का भला नहीं होगा।राजनीति में अब अच्छे लोगों के आने का वक्त आ गया है।यह सामने आएंगे तो जनता इन्हें वोट देकर सत्ता में पहुंचाएगी।सत्ता में इनकी अधिकता होगी तो समरिते जैसे लोग अपने आप किनारा होने या अपने को बदलने को बाध्य हो जाएंगे।देश की बेहतरी के लिए यह होना अब अति आवश्यक हो गया है।नहीं तो हमें डूबने से कोई नहीं बचा सकता।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Wednesday, July 30, 2008

मणिपुर में बच्चों को आंतकी बनाने की घिनौनी कोशिश

राजीव कुमार
देश में मणिपुर ही ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा आंतकी संगठन है।यह चिंता का विषय है।लेकिन अब इससे भी ज्यादा चिंता की बात है कि आंतकी स्कूली बच्चों का अपहरण कर अपने संगठन में भर्ती कर रहे हैं।आंतक के चलते बच्चों का बचपन मणिपुर में पहले से ही छिनता जा रहा था।बच्चों ने अपने हथियार खिलौनों को जलाकर अच्छी शुरुआत की थी।पर अब आंतकियों ने अपने संगठन में भर्ती के लिए इनका अपहरण कर खतरे की घंटी बजा दी है।देश में यह शायद पहला प्रयोग ही माना जाए।
एक मई से अब तक २० बच्चे लापता हुए हैं।आठ स्कूलों के शिक्षक व छात्रों ने अपहरण के खिलाफ राष्ट्रीय राजमार्ग ३९ जाम किया।पर सरकार ने इसे अब तक गंभीरता से नहीं लिया है।सिर्फ पुलिस ने स्पेशल टास्क फोर्स के गठन का ऐलान किया है।मणिपुर के पुलिस महानिदेशक वाई जयकुमार सिंह ने कहा कि पीपुल्स रिवल्यूशनरी पार्टी आफ कांगलेईपाक(प्रीपाक-वीसी) और प्रीपाक(जीएस)अपने संगठनों में बच्चों की भर्ती कर रहे हैं।कारण इन्हें भर्ती के लिए युवा नहीं मिल रहे हैं।लेकिन प्रीपाक-वीसी के प्रवक्ता ने इन आरोपों का खंडन किया है।
लेकिन आंतकियों के चंगुल से भागकर आए छात्र हुसैन अहमद का कहना है कि मैं जब अपने स्कूल के प्रिंसिपल के घर जा रहा था तब चार लोगों ने मुझे कार में धकेला और अज्ञात स्थान पर ले गए।वहां मुझे बताया गया कि मुझे संगठन में भर्ती किया जाएगा।पर इन्होंने मुझे अपने संगठन का नाम नहीं बताया।सिर्फ लडक़े ही नहीं लड़कियों का भी अपहरण किया जा रहा है।इंफाल पश्चिम की महिला मोहिला देवी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है कि उसकी १६ साल की बेटी निंगोबाम शारदा १३ जुलाई से लापता है।वह कक्षा नौ की छात्रा है।

बच्चों के अपहरण की घटनाओं से अभिभावकों ने इन्हें स्कूल भेजना बंद कर दिया है।सभी अभिभावक चिंतित है कि अगला अपहृत बच्चा उनका भी हो सकता है।इस मसले पर विचार के लिए एक बैठक हुई जिसमें बच्चों ने खुद कहा कि हमें आंतकी मत बनाओ।अनेक बच्चे इनके चंगुल से भागकर भी आए हैं।कक्षा तीन के छात्र ओइनाम अमरजीत का कहना है कि मैं स्कूल नहीं जाना चाहता हूं।मैंने सुना है कि काफी बच्चों का अपहरण कर लिया गया है।मैं किसी आंतकी संगठन में भर्ती नहीं होना चाहता हूं।अमरजीत का सहपाठी पुइम बिरजीत सिंह भी कुछ इस तरह का विचार व्यक्त करता है।
राज्य में कांग्रेस नेतृत्ववाली सेक्यूलर प्रोगेसिव फ्रंट की सरकार है।मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस के ओ इबोबी सिंह काबिज हैं।केंद्र में भी कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार है।फिर भी स्थिति बेहतर करने की कोशिश नहीं हो रही है।राज्य में लगभग चालीस आंतकी संगठन सक्रिय हैं।लेकिन गृह मंत्रालय के अनुसार मुख्य आंतकी संगठनों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी,यूनाईटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट,पीपुल्स रिवल्यूशनरी पार्टी आफ कांगलेईपाक,कांगलेईपाक कम्युनिष्ट पार्टी,कांगलेई याओल कानबा लूप,मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट और रिवल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट शामिल हैं।प्रीपाक के अनेक आंतकी राज्य के बाहर पिछले दिनों गिरफतार हुए हैं।इन सब की भरपाई के लिए संगठन अब बच्चों की भर्ती में लग गया है।
पूर्वोत्तर में बच्चों की आंतकी संगठनों में भर्ती पहली बार दिख रही है। पर असम में प्रतिबंधित आंतकवादी संगठन उल्फा दवारा तोडफ़ोड़ की गतिविधियों में बच्चों का इस्तेमाल किए जाने की बात पुलिस कहती रही है।इसके एवज में इन्हें चंद पैसे दे दिए जाते हैं।आंतकवादियों के लिए अब यह आसान तरीका हो गया है।कारण सुरक्षा बल भी बच्चों पर ज्यादा संदेह नहीं करते हैं।पर बच्चों के भविष्य के लिए यह बहुत बड़ा खतरा है।चंद पैसों के लालच में वे यह काम अंजाम दे दें लेकिन आनेवाले समय में इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा।मणिपुर के शिक्षक पी शरत का कहना है कि आंतकी बच्चों को डरा-धमकाकर अपने संगठन में भर्ती कर रहे हैं।यह बच्चे जब बड़े होंगे तो कदापि सामान्य जीवन जी नहीं पाएंगे।

देश का भविष्य बच्चे हैं।इस तरह इनके बचपन को कुचला गया तो आनेवाला समय हमें माफ नहीं करेगा।सरकार को चाहिए कि जो आंतकी इस तरह के कार्य कर रहे हैं उन्हें सखती के साथ कुचला जाए।ज्यादा देर की गई तो समय हाथ से निकल जाएगा।समय रहते कड़ाई की आवश्यकता है।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Tuesday, June 24, 2008

असम:सात साल बाद आंतकियों के खिलाफ जागी सरकार

राजीव कुमार
असम की कांग्रेस-बीपीएफ गठबंधन सरकार अचानक प्रतिबंधित संगठन उल्फा के खिलाफ आक्रामक हो गई है।सिर्फ उल्फा ही नहीं,अन्य वार्ता में आने को इच्छुक आंतकी संगठनों के खिलाफ भी कठोर हुई है।लेकिन राज्य में पिछले सात सालों से सत्ता पर काबिज रहनेवाली मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नेतृत्ववाली सरकार को पहले इतना कठोर होते हुए कभी नहीं देखा गया था।
अब तक उसे उल्फा के इशारों पर ही चलते देखा गया था।पर अब वह उल्फा के लिए सतही स्तर पर कार्य करनेवाले लोगों के खिलाफ शिकंजा कस रही है।केंद्र के साथ वार्ता के लिए उल्फा द्वारा गठित नागिरक समिति पीपुल्स कंसलटेटिव ग्रुप(पीसीजी)के सदस्य लाचित बरदलै को चार महीने पहले गिरफ्तार किया जा चुका है।उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है।अब पीसीजी के दूसरे सदस्य हिरण्य सैकिया को गिरफ्तार किया गया है।अब तक राज्य सरकार और उल्फा के बीच सैकिया एक महत्वपूर्ण कड़ी के रुप में कार्य करते आए थे।
जब उल्फा ने 33वें राष्ट्रीय खेलों के बहिष्कार का एलान किया तो सैकिया ने ही मध्यस्थ कर मामला सुलझाया और खेल शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित हुए।बाद में भारत-पाक एक दिवसीय मैच में भी दिक्कत न होने के लिए उल्फा से अखबारों में विज्ञापन देकर अपील की गई।यह भी सैकिया के सुझाव पर किया गया।खुद सैकिया ने बाद में इन सब का खुलासा किया है।सैकिया ने सरकार और उल्फा के बीच की वार्ता में भी अहम किरदार होने की बात कही है।संगठन के सेना प्रमुख परेश बरुवा के साथ होनेवाली बातों को मुख्यमंत्री तरुण गोगोई,स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्वशर्मा और पुलिस के आला अधिकारी तक पहुंचाने की बात का खुलासा सैकिया पहले कर चुका है।सैकिया के इस तरह के बयानों के बाद विपक्ष ने सरकार को घेरा।पर तब सरकार चुप रही।अब इसके काफी समय बाद सरकार ने सैकिया को गिरफ्तार किया है।
सवाल उठता है कि सरकार अब तक सौहार्दपूर्ण संबंध सैकिया से रखकर क्यों सोई हुई थी?विपक्ष के हमले से गिरती साख और केंद्र के दबाव के चलते गोगोई को यह कदम उठाना पड़ा है,यह कहें तो भी गलत नहीं होगा।एक संवाददाता सम्मेलन में गोगोई ने घोषणा की कि अब किसी आंतकी संगठन से तभी संघर्षविराम कर बातचीत की जाएगी जब वह हथियार डाल देगा,उसके सदस्य वार्ता पूरी होने तक निर्धारित शिविरों में रहेंगे और संविधान के दायरे में ही बातचीत की इच्छा जताएंगे।साथ ही बातचीत संगठन के शीर्ष नेताओं से सीधे होगी।जो संगठन इन बातों को नहीं स्वीकारेंगे उनसे न तो संघर्षविराम होगा और न भी अभियान में कोई ढील दी जाएगी।राज्य में आंतकवादी विरोधी अभियान संयुक्त कमान की कार्रवाई के तहत चल रहा है।इसके चेयरमैन खुद मुख्यमंत्री तरुण गोगोई हैं।गोगोई ने स्वंय कहा है कि पिछली संयुक्त कमान की बैठक में यह निर्णय लिया गया है।उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि यह निर्णय केंद्र के कहने पर लिया गया है।
अब तक केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संयुक्त प्रगतिशील सरकार राज्य की कांग्रेस-बीपीएफ सरकार के कामकाज पर धृतराष्ट्र की भूमिका में थी।पर अब राज्य के कांग्रेस मंत्रियों पर लग रहे आरोपों के बाद उसने इधर अपनी नजर दी है।इसके बाद गोगोई नेतृत्ववाली सरकार कठोर हुई है।आंतकवादी संगठन डिमा हालम दाउगा के जूवेल गुट ने उत्तर कछार जिले में कहर बरपाकर दो राष्ट्रीय परियोजनाओं का कार्य बुरी तरह प्रभावित किया।अचानक संगठन ने संघर्षविराम की इच्छा जताई तो सरकार ने इसका सकारत्मक जवाब देने के बजाए अभियान तेज करने का फैसला किया।डिमापुर के एक होटल में इसके प्रचार सचिव को गिरफ्तार किया गया।इन सबसे एक बात साफ हो गयी कि राजनीतिक इच्छशक्ति हो तो आंतकवादियों से मुकाबला करना मुश्किल नहीं है।
पर गोगोई सरकार आंतकवादियों से मधुर संबंध बनाए रखने के लिए अब तक कोई कार्रवाई करने से बचती रही है।इसका फायदा इन्हें विभिन्न चुनाव में मिलता रहा है।लेकिन इन संबंधों के चलते विपक्ष ने कांग्रेस पर हमला तेज किया तो उसकी स्थिति खराब होने लगी।राज्य के पूर्व शिक्षामंत्री रिपुन बोरा एक हत्या के मामले में लग रहे आरोपों से बचने के लिए सीबीआई को घूस देते रंगे हाथों दिल्ली में गिरफ्तार हुए।इसके बाद राज्य के अन्य मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार,हत्या और आंतकवादियों से संबंध होने के आरोप लगने लगे हैं।विपक्षी पार्टियां राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्वशर्मा का संबंध उल्फा से होने का आरोप लगा रही है।इस आरोप पर डा.शर्मा को मंत्री पद से हटाए जाने की मांग उठ रही है।प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष इसकी शिकायत की गई है।इन सबके चलते केंद्र ने राज्य सरकार को कठोर होने का निर्देश दिया है।केंद्र के निर्देश के बाद गोगोई के पास सख्त होने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचा था।इसलिए आंतकी संगठनों के खिलाफ सरकार कठोर हुई है।
सरकार के कठोर होने के कारण आंतकवादियों के आत्मसमर्पण की संख्या में इजाफा हुआ है।उल्फा की शक्तिशाली 28वीं बटालियन की ए व सी कंपनी ने एकतरफा संघर्षविराम का एलान कर बातचीत की इच्छा जताई है।तेजपुर स्थित चतुर्थ कोर के जीओसी ले.ज.बी एस जसवाल ने इस लेखक से बातचीत में कहा कि हमने वार्ता के लिए उपयुक्त माहौल बनाया है।कारण भारी संख्या में आंतकियों ने आत्मसमर्पण किया है।अब सरकार की बारी है कि वह कैसे वार्ता करती है।जसवाल का कहना था कि आंतकियों को सतह पर रहकर जो मदद कर रहे हैं उन्हें कमजोर कर दिया गया तो हमें अभियान में और ज्यादा सफलता मिलेगी।
सात साल बाद सरकार के कड़े रुख से जहां आंतकियों के हौसले पस्त होंगे वहीं लोगों में आशा की किरण जगी है।पर कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार कब तक इस तरह का कड़ा रुख रखती है यह भी देखनेवाली बात होगी।कारण सामने लोकसभा चुनाव है।उल्फा ने कांग्रेसियों को निशाना बनाना शुरु कर दिया तो अपनी हार की आशंका में वह अपने इस अभियान में ढीली भी पड़ सकती है।पर यह ढिलाई राज्य व देश के हित में नहीं होगी।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Saturday, June 14, 2008

राजनीति में वंशवाद को बढ़ा रहे हैं संगमा

राजीव कुमार
दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है।लेकिन बात जब अपनी आती है तो व्यक्ति खुद इन सब को भूल देता है।इस तरह के ही शख्स हैं पूर्ण ए संगमा।संगमा ने लोकसभा का अध्यक्ष रहते हुए देशभर में अपनी एक छाप छोड़ी थी।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के कारण उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने का विरोध करते हुए संगमा ने कांग्रेस तक छोड़ दी।तब लोगों के मन में उनके प्रति और आदर का भाव आया।लगा कि संगमा आदर्श और नीति की राजनीति करते हैं।लेकिन इस साल उनका असली चेहरा सबके सामने आ गया।अपने साथ ही परिवार के तीन अन्य लोगों को उन्होंने राजनीति में उतार दिया।इस तरह वंशवाद की राजनीति को ही संगमा ने आगे बढ़ाया।
मेघालय में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान संगमा ने सांसद रहते हुए विधायक पद के लिए चुनाव लड़ा।अपने दो बेटों कनराड और जेम्स को भी विधायक पद के लिए उतारा।दोनों बेटों के साथ ही संगमा चुनाव जीत गए।विधायक पद पर विजयी होने के बाद उन्होंने तुरा संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया।नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) के किसी को उतारने के बजाए उन्होंने इस रिक्त सीट पर अपनी बेटी अगाथा को उतारा।अगाथा भारी मतों से जीती।संगमा नौ बार इस सीट से सांसद चुने गए हैं।इसमें कोई शक नहीं कि इस सीट पर उनकी पकड़ है।पर उच्च शिक्षित अगाथा दिल्ली के एक फार्म में कानूनी सलाहकार की नौकरी कर रही थी।लेकिन पिता ने तुरा सीट को अपनी जागिर बनाए रखने के लिए उसे भी राजनीति में खींच लिया।
संगमा की पत्नी सरोजेनी इसके खिलाफ है।वह इसके विरोध में थी।संगमा के परिवार में अब दो सदस्य ही राजनीति में आने बाकी हैं।इनमें एक उनकी पत्नी और दूसरी बड़ी बेटी क्रिस्टी।राजनीति में वंशवाद बढाए जाने की बात पर संगमा को गुस्सा आता है।वे गुस्से में सफाई देते हैं कि मैंने वंशवाद के शासन को प्रोत्साहन नहीं दिया है।मेरे बेटे और बेटियां विदेश में पढे लिखे हैं।अब हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम राज्य की बेहतरी के लिए अपना योगदान दें।हमें राजनीति में पढ़े लिखे लोगों की जरुरत है।
राजनीति में पढ़े लिखे अच्छे लोगों को आना चाहिए इससे हम भी दो राय नहीं रखते।लेकिन मेघालय में और पढ़े-लिखे लोग नहीं थे, इस बात को भी तो नहीं स्वीकारा जा सकता।संगमा अन्य को मौका देते तो उनका कद और बड़ा होता।फिलहाल मेघालय में डोनकूपर राय के नेतृत्व में जो सरकार चल रही है उसमें संगमा ही छ्दम मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे हैं।वैसे वे मेघालय योजना बोर्ड के चैयरमैन हैं।अपने दोनों बेटों को भी उन्होंने सरकार में महत्वपूर्ण पद दिलवाए हैं।बड़े बेटे कनराड के पास वित्त,पर्यटन,बिजली और कई अन्य महत्वपूर्ण विभाग हैं जबकि जेम्स गृह विभाग का संसदीय सचिव है।कुल मिलाकर मेघालय की राजनीति पर अपनी पूरी पकड़ संगमा रखना चाहते हैं।विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कहा भी था कि दूसरे हमें छोड़कर जा सकते हैं लेकिन परिवार के सदस्य तो कम से कम धोखा नहीं देंगे।

मेघालय में सरकारें अस्थिर रही है।इसी डर के चलते संगमा अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में खींच लाए।वे किसी भी तरह राज्य की राजनीति अपने हाथ से खिसकने नहीं देना चाहते हैं।तुरा लोकसभा सीट के उपचुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियों ने इसे मु्द्दा बनाया।लेकिन उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी।वंशवाद के आरोप के बाद भारी मतों से जीतनेवाली अगाथा ने कहा कि जीत मैरिट के आधार पर हुई है।संगमा का इस पर कहना था कि मेरा प्रयास बच्चों को समान अवसर देने का है।जनता ने जो जनादेश दिया है उससे लगता है कि वे इन बात को तवज्जो नहीं देती है।यदि वंशवाद को मैं बढ़ाता तो मैं इन्हें आसानी से राज्यसभा में भेज सकता था।लेकिन मैंने इसके बजाए उन्हें सीधे चुनाव के जरिए जीतकर आने को कहा।चुनाव तो हर कोई व्यक्ति लड़ सकता है।
माना कि जनता ने संगमा और उनके परिवार के तीन सदस्यों को जनादेश दिया है,पर क्या नीति और आदर्शों की बात करनेवाले नेता से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने क्षुद्र हितों से ऊपर उठेंगे।संगमा को तो चाहिए था कि वे पार्टी के नए-नए युवक-युवतियों को प्रशिक्षित कर आगे लाते।तभी राजनीति के स्तर को ऊपर उठाया जा सकेगा।लेकिन संकीर्ण राजनीति में रहकर वंशवाद को बढ़ावा देनेवाले नेता से और क्या उम्मीद की जा सकती है।अब उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल का होने का मुद्दा उठाने का नैतिक अधिकार खो दिया है।कारण उन्होंने राजनीति में वंशवाद को सबसे ज्यादा बढ़ाया है।जैन धर्मगुरु आचार्य तुलसी ने नारा दिया था-निज पर शासन,फिर अनुशासन।यही बात संगमा से कही जा सकती है।किसी पर कुछ लागू करने के पहले खुद उस पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए।तब कहीं जाकर दूसरों को नीति शिक्षा देनी चाहिए।
(लेखक गुवाहाटी स्थित वरिष्ठ पत्रकार व पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Wednesday, May 28, 2008

ढिलाई का फायदा उठा रहे हैं बांग्लादेशी

राजीव कुमार
जयपुर में हुए बम धमाकों के बाद बांग्लादेशियों को लेकर फिर एक बार देश में बहस छिड़ गई है।लेकिन इस पर सबसे पहले असम में ही चिंता जताई गई थी।बांग्लादेशियों को खदेड़ने के लिए राज्य में छह सालों तक आंदोलन चला।1979 में शुरु हुए असम आंदोलन में विदेशी खदेड़ो ही नारा था।तभी इस समस्या को गंभीरता से लिया जाता तो देश में आज के हालात पैदा नहीं होते।
शुरुआत में असम आंदोलन को मुस्लिम खदेड़ो आंदोलन ही समझा गया।कांग्रेस अपने वोट बैंक के चलते राज्य में एक भी बांग्लादेशी न रहने की बात कहती रही।असम विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय हितेश्वर सैकिया ने 1991 में राज्य में तीस लाख बांग्लादेशी रहने की बात कही।लेकिन जब मुस्लिम नेताओं ने गद्दी से उतारने की धमकी दी तो सैकिया पलट गए।उन्होंने दूसरे दिन ही कहा कि राज्य में एक भी बांग्लादेशी नहीं है।इससे कांग्रेस की दुविधा साफ झलक गई।
असम आंदोलन करनेवाले नेताओं के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का 1985 में समझौता हुआ।इस असम समझौते के अनुसार असम-बांग्लादेश सीमा पर कंटीली बाड़ लगाने की बात कही गई।1988 में इसका कार्य शुरु हुआ।लेकिन बीस सालों बाद भी आज तक यह पूरा नहीं हुआ।इससे इस दौरान आई सरकारें मामले के प्रति कितनी गंभीर थी,यह साफ होता है।केंद्र में इस दौरान भाजपा नीत राजग गठबंधन को भी सत्ता मिली और राज्य में असम आंदोलन करनेवाले नेता भी दो बार सत्ता में आए।पर सीमा आज भी पूरी तरह सील नहीं हुई।इसके कारण पूर्वोत्तर के आंतकवादी भी बांग्लादेश में शरण लेकर वहां से यहां होनेवाली गतिविधियों को संचालित करते हैं।
लगातार हो रहे विस्फोटों के बाद अब कांग्रेस यह कहने लगी है कि इनमें बाहरी देश का हाथ है।लेकिन 1979 में जब असम में विदेशी खदेड़ो आंदोलन शुरु हुआ तभी कांग्रेस मुद्दे को गंभीरता से लेती तो आज यह कहने की जरुरत ही नहीं पड़ती।पर उस वक्त उसे वोटों की राजनीति का ख्याल आया।राज्य में रह रहे मुस्लमानों को परेशानी से बचाने के नाम पर विवादित आईएमडीटी एक्ट 1983 में लागू किया गया।देश के किसी राज्य में यह कानून लागू नहीं था।अन्य राज्यों में विदेशी कानून लागू था और है।आईएमडीटी एक्ट लागू होने के बाद राज्य में घुसपैठ कर आए लोगों को खदेड़ना मुश्किल हो गया।
आईएमडीटी एक्ट में प्रावधान था कि शिकायत करनेवाले व्यक्ति को ही यह प्रमाणित करना पड़ेगा कि वह जिस पर आरोप लगा रहा है वह बांग्लादेशी है।इसके चलते शिकायत को कोई आगे नहीं आना चाहता था।इस दिक्कत के चलते राज्य में आईएमडीटी एक्ट को रद्द करने की मांग उठती रही।लेकिन कांग्रेस और भाजपा किसी ने भी इसे खारिज करने के लिए कुछ नहीं किया।आखिर थक हारकर असम आंदोलन करनेवाले छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ(आसू) ने अपने पूर्व अध्यक्ष तथा अगप सांसद सर्वानंद सोनोवाल से सुप्रीम कोर्ट में इसे खारिज कराने के लिए आवेदन किया।लंबी कानूनी लड़ाई से ही आईएमडीटी एक्ट रद्द हुआ।अब देश के अन्य राज्यों की तरह ही असम में विदेशी कानून लागू है।
विदेशी कानून के लागू होने के बाद भी विदेशियों की शिनाख्त में तेजी नहीं आई है।इस कानून के तहत मामलों के निपटान के लिए राज्य में 32 न्यायाधिकरण है।पर पूरी प्रक्रिया इतनी धीमी और ढुलमुल है कि मामले के दौरान ही संदिग्ध लोग अपना ठिकाना बदल लेते हैं।पर जब तक मामला चले संदिग्ध लोगों को ट्रांजिट कैंपों में कड़ी निगरानी के साथ रखा जाना चाहिए।केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने जयपुर बम धमाकों के बाद राजस्थान सरकार को इस तरह का ही सुझाव दिया था।इसके साथ ही भारत के साथ लगी बांग्लादेश की 4,096.7 किमी सीमा को पूरी तरह सील किए जाने की जरुरत है।अन्यथा बांग्लादेशी इधर से प्रवेश कर देश के अन्य राज्यों में जाते रहेंगे।
खुली बांग्लादेश सीमा से प्रवेश करने के बाद यह लोग यहां कुछ समय बिताकर फर्जी कागजात तैयार करवा लेते हैं।इसके बाद यहां से रोजगार की तलाश में देश के अन्य राज्यों में जाते हैं।जब इन पर संदेह किया जाता है तो ये सीमा से लगे असम,त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल का निवासी होने का प्रमाण पत्र दिखा देते हैं।घुसपैठ के जरिए असम और बांग्लादेश के एक हिस्से को वृहतर बांग्लादेश में शामिल करने के षड़यंत्र की बात भी बीच-बीच में सामने आती रहती है।इस षड़यंत्र की बात खुद बांग्लादेश के बुद्धिजीवी कहते हैं।गृहमंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार असम के 36 विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल इलाके में तब्दील हो चुके हैं।
बांग्लादेश के माइनोरिटी ह्यूमन राइटस आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अजय राज का कहना है कि बांग्लादेश में भारत विरोधी प्रचार काफी है।असम में मुस्लिमों की प्रताड़ना,हत्या और यहां से खदेड़े जाने की बात कही जाती है।उनका कहना है कि बांग्लादेश छोटा देश है।पर इसकी जनसंख्या काफी है।इसलिए वह अपने लोगों की भारत में हो रही घुसपैठ से खुश है ताकि इनके बेहतर भविष्य के लिए इन्हें रोजगार मिल जाए ।बांग्लादेश के पत्रकार व लेखक शहरियार कबीर का कहना है कि बांगालादेश में सक्रिय जेहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी की मदद से असम और पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों को लेकर वृहतर बांगालादेश का सपना भी कुछ लोग देख रहे हैं।
इस सबके चलते स्थिति गंभीर है।देरी से माहौल और बिगड़ेगा।केंद्र को तुरंत भारत-बांग्लादेश सीमा को पूरी तरह सील कर देना चाहिए।संदिग्ध लोगों को पकड़कर उन पर विदेशी न्यायाधिकरणों में मामले चलाने चाहिए और जब तक मामलों का निपटान न हो जाए इन्हें निर्धारित कैंपों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रखा जाना चाहिए।विदेशी प्रमाणित होने के बाद इन्हें वापस इनके देश भेज देना चाहिए।अन्यथा घुसपैठ होती रहेगी।इससे देश की जनसांख्यिकीय स्थिति बिगड़ेगी और देश की सुरक्षा के सामने गंभीर संकट उत्पन्न होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

Sunday, May 18, 2008

अपने-अपने फायदे के लिए है आंतकवाद

राजीव कुमार
आंतकवाद से लड़ने में केंद्र की संप्रग और असम की कांग्रेस-बीपीएफ सरकार गंभीर नहीं।राज्य सरकार के अनुसार ही राज्य में नौ आंतकी संगठन फिलहाल सक्रिय है तथा कई आंतकी संगठन सरकार के साथ संघर्षविराम में है।संघर्षविराम में रहनेवाले संगठनों के साथ सरकार ने अब तक जहां बातचीत आगे नहीं बढ़ाई है वहीं संघर्षविराम में आने को इच्छुक आंतकी संगठनों को सरकार कोई सकारत्मक जवाब नहीं देती है।इससे राज्य में आंतकी समस्या खत्म होने के बजाए जटिल हो रही है।
असम के उत्तर कछार जिले में डिमा हालम दाउगा(डीएचडी)का जूवेल गुट सक्रिय है।डीएचडी का नूनिसा गुट सरकार के साथ संघर्षविराम में है।डीएचडी के जूवेल गुट ने25मार्च को सरकार को सूचित किया कि वे संघर्षविराम को इच्छुक हैं।लेकिन 45दिनों तक सरकार ने इसका कुछ जवाब नहीं दिया।10मई को डीएचडी के जूवेल गुट ने दावा किया कि सेना ने उसके 12सदस्यों को मार गिराया है।11मई को ही संगठन ने बदले की कार्रवाई करते हुए 12लोगो को मौत के घाट उतार दिया।12मई को और दो श्रमिकों की हत्या की गई।15मई को और 11लोगों की हत्या की गई।इनमें रेलगाड़ी का ड्राइवर भी शामिल है।
पूर्वोत्तर सीमा रेलवे ने रेल पर हमले के बाद लमडिंग-बदरपुर सेक्शन में पड़नेवाले 27 स्टेशनों को बंद कर अपने कर्मचारियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है।आंतकी संगठनों की हिंसा और धमकी के बाद दो राष्ट्रीय परियोजनाओं का काम बंद कर दिया गया है।फिर भी केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संप्रग और असम में कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार खामोश है।देश के दूसरे हिस्से में इस तरह होता तो अब तक हड़कंप मच जाता।कारण रेल सेवा बंद होने के कारण त्रिपुरा,मिजोरम,मणिपुर और बराकघाटी के इलाकों में अत्यावश्कीय सामग्रियों का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
सरकार की आंतकवाद से लड़ने की कोई स्पष्ट नीति नहीं है।यदि होती तो समस्या कभी विकराल नहीं होती।निर्दोष लोगों का बेवजह खून नहीं बहता।उत्तर कछार स्वशासी परिषद पर फिलहाल स्वशासी राज्य मांग समिति(एएसडीसी)और भाजपा का कब्जा है।परिषद के मुख्य कार्यकारी सदस्य डी होजाई ने खुलासा किया है कि 25मार्च को खुद उन्होंने मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को डीएचडी के जूवेल गुट के संघर्षविराम की इच्छा का पत्र सौंपा था और 27 मई को दिल्ली में एसआईबी के निदेशक को भी यह पत्र दिया था।लेकिन कुछ नहीं किया गया।होजाई आरोप लगाते है कि परिषद को भंग कर कांग्रेस खुद वहां की सत्ता हथियाना चाहती है।इसलिए डीएचडी जूवेल गुट के संघर्षविराम के पत्र को कोई तवज्जो नहीं दिया गया।
सिर्फ डीएचडी जूवेल गुट ही नहीं,राज्य के अन्य आंतकी संगठनों के साथ बातचीत में भी केंद्र और राज्य सरकार का रवैया ढुलमुल है।प्रतिबंधित संगठन उल्फा ने बातचीत के लिए पीपुल्स कंसलटेटिव ग्रुप(पीसीजी) का गठन कर दिया था।केंद्र के साथ पीसीजी की तीन दौर की बातचीत भी हुई।अंतिम दौर की बातचीत में तय हुआ कि सरकार उल्फा के केंद्रीय परिषद के नेताओं को वार्ता के बारे में निर्णय लेने के लिए जेल से रिहा कर देगी।लेकिन बाद में मुख्यमंत्री बदल गए।कहा गया कि उल्फा चेयरमैन अरविंद राजखोवा और सेना प्रमुख परेश बरुवा खुद बातचीत के लिए आने का पत्र देंगे तभी जेल में बंद नेताओं को रिहा किया जाएगा।तब पीसीजी के साथ तीन दौर की बातचीत करने की आवश्यकता ही नहीं थी।बेकार में समय बर्बाद करने के साथ ही अन्य बातचीत में आने को इच्छुक आंतकी संगठन को इससे गलत संदेश ही दिया गया।
असम में कांग्रेस बोड़ो पीपुल्स फ्रंट(बीपीएफ) के साथ गठबंधन कर सरकार चला रही है।बीपीएफ का गठन आंतकी संगठन बोड़ो लिबरेशन टाइगर्स के सरकार के साथ हुए समझौते के बाद हुआ है।इनकी मदद से सरकार चलाने के कारण कांग्रेस ने अन्य बोड़ो आंतकी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोड़ोलैंड(एनडीएफबी) के साथ बातचीत में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।एनडीएफबी संघर्षविराम कर बैठा रहा और सरकार कहती रही कि उसने अब तक मांग पत्र नहीं सौंपा है इसलिए वार्ता नहीं हो सकती।अब उसने मांगपत्र सौंप दिया है।कब वार्ता होगी इसी से सरकार की मंशा स्पष्ट हो जाएगी।
केंद्र और राज्य सरकार तय कर ले कि आंतकवाद की समस्या का हल करना है तो वह यह चुटकी में कर सकती है।पर वह अपनी राजनीति के लिए इसे जिंदा रखने में ही अपना फायदा समझती है।राज्य में पिछले साल 33वें राष्ट्रीय खेल के पहले उल्फा ने इनके बहिष्कार का एलान किया।लगने लगा खेल सफलता से होने में दिक्कत आएगी।लेकिन अचानक सरकार के साथ उल्फा का अलिखित गुपचुप समझौता हुआ।कई वरिष्ठ खिलाड़ियों ने अखबारों में अपील की और उल्फा ने बहिष्कार का एलान वापस ले लिया।इस गुपचुप समझौते का भांडा इसलिए फूट गया क्योंकि एक अखबार ने अपील का विज्ञापन सरकार के जनसंपर्क विभाग के आर्डर नबंर के साथ प्रकाशित कर दिया।और तो और उल्फा का ई-मेल बयान अखबारों को मिला तो उसमें पहले की तिथि थी।इससे साफ हो जाता है कि सरकार के साथ पहले समझौता हुआ लेकिन कहने के लिए राज्य के वरिष्ठ खिलाड़ियों की अपील को बहिष्कार वापस लेने का कारण बताया गया।इस तरह खेल शांति से गुजर गए।
अब बारी थी भारत-पाक एक दिवसीय मैच की।उल्फा ने इसके लिए कोई धमकी ही नहीं दी थी।लेकिन फिर भी असम किक्रेट एसोसिएशन के सचिव विकास बरुवा ने अखबारों में विज्ञापन दे उल्फा से खेल के लिए सहयोग की अपील की।एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक है राज्य के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और अध्यक्ष पद पर आसीन है राज्य के मंत्री गौतम राय।बरुवा खुद सरकारी कर्मचारी हैं।जब सरकार के लोग ही प्रतिबंधित संगठन के सामने असहाय हो मदद की भीख मांगे तो आम जनता किसके पास सुरक्षा की गुहार लगाए।आम आदमी इस तरह करे तो उसे तुरंत अंदर कर दिया जाएगा।पर सबकुछ सरकारी होने के कारण कुछ नहीं हुआ।विपक्ष हो-हल्ला मचाते रह गया।
जब प्रतिबंधित संगठन के साथ सरकार का इतना अच्छा तालमेल हो तो उससे वार्ता में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए।यदि अच्छे संबंधों के बावजूद वार्ता नहीं हो रही है तो सरकार की इच्छा के कारण ही नहीं हो रही है।वह पूरे मसले को जिंदा रखना चाहती है।सपा महासचिव अमर सिंह ने राज्य का दौरा करते हुए कहा है गोगोई मंत्रिमंडल में उल्फा से वार्ता के लिए लीविंग लिंक मौजूद है।इसलिए उन्हें मध्यस्थ की जरुरत ही नहीं है।जब चाहें वे वार्ता कर सकते हैं।उनका इशारा कैबिनेट के उस मंत्री की ओर है जिस पर उल्फा के नाम पर धन वसूली के मामले थे।पर अपनी पहुंच के चलते वे अदालत से बरी हो चुके हैं।जब सरकार इतना कुछ कर सकती है तो वह अपनी इसी पहुंच का इस्तेमाल कर आंतकी समस्या का हल भी कर सकती है।इसके लिए सिर्फ राजनीति से ऊपर उठने की जरुरत है।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)
पता-राजीव कुमार,पोस्ट बाक्स-12,दिसपुर-781005

Saturday, April 26, 2008

मणिपुर में राष्ट्रपतिशासन क्यों नहीं ?

राजीव कुमार
देश में मणिपुर एक एसा राज्य है जहां चुनी गई सरकार का नहीं,आंतकियों का शासन है।आंतकी जो चाहे कर सकते हैं।मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह की कांग्रेस सरकार इससे निपटने में अपने को लाचार पा रही है।स्थिति इतनी बेकाबू है कि यहां कभी का राष्ट्रपति शासन लग जाना चाहिए था।पर केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार को कैसे बर्खास्त कर दे।सो, इबोबी मणिपुर में बने हुए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर में देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा आंतकी संगठन हैं।इसके बाद असम और जम्मू कश्मीर का नबंर आता है।मणिपुर में 39,असम में 36 और जम्मू कश्मीर में 32 आंतकी संगठन सक्रिय हैं।राज्य में एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार है।फिर भी आंतकी संगठन सरकार के नाक तले अपहरण,रकम वसूली और हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं।
मार्च में 15 हिंदीभाषी मजदूरों की हत्या कर दी गई।सरकारी अधिकारियों का अपहरण कर आंतकी मोटी रकम वसूल कर रहे हैं।सरकारी अधिकारी अपनी जान बचाने आंतकियों को रकम अदा कर रहे हैं।आंतकियों को वे यह रकम गुवाहाटी और कोलकाता में आकर अदा कर रहे हैं।स्थिति बेकाबू होते देख मुख्यसचिव जरनैल सिंह ने फरमान जारी किया कि बिना अनुमति के सरकारी अधिकारी राज्य के बाहर नहीं जा सकते।इस आदेश के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ।कारण अधिकारी सरकार पर भरोसा करने के बजाए आंतकियों पर भरोसा कर अपने को ज्यादा महफूज समझ रहे हैं।
राज्य के हालात नवबंर 2007 के बाद ज्यादा बदतर हुए।मुख्यमंत्री इबोबी के खिलाफ कांग्रेस विधायकों ने विद्रोह किया।मामला कांग्रेस हाईकमान के पास दिल्ली पहुंचा।कुछ समय तक अराजकता की स्थिति बनी रही।आखिरकार हाईकमान ने इबोबी के ही बने रहने पर मुहर लगा दी।इसके बाद से ही स्थिति ज्यादा खराब हुई।राजधानी इंफाल में छह बजे बाद कर्फ्यू जैसा माहौल बन जाता है।
सरकार को जो कार्य करने चाहिए वह आंतकी अंजाम दे रहे हैं।आंतकियों की अपनी अदालतें चलती है।आंतकी भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ कर ले जाते हैं।सजा के तौर हत्या या फिर पैर में गोलियां दाग देते हैं।मणिपुर में हिंदी फिल्मों को दिखाने पर पहले ही पाबंदी लगी हुई है।इसी साल जर्दे पर पाबंदी लगाई गई।लेकिन इसे लागू होता न देख मीठापती पान की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया।आंतकियों का मानना है कि इनके सेवन से राज्य के लोग बीमार हो रहे हैं।आदेश का पालन न करनेवालों को सजा सुनाई गई।

आंतकी सिर्फ यहां तक ही सीमित नहीं है।रीजनल इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेज के निदेशक को नर्सों की नियुक्ति को लेकर धमकाते हैं।निदेशक का तो यहां तक कहना है कि स्वास्थयकर्मियों से रकम वसूली जाती है।दवा विक्रेताओं से भी रकम मांगी गई तो इन्होंने दुकानें बंद कर दी।लोगों को भारी संकट का सामना करना पड़ा।बाद में सरकार ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया तो दवा दुकानें खुली।ट्रांसपोर्टरों से भी आंतकियों ने रकम की मांग की।इसके चलते वे हड़ताल पर चले गए।ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि बीस आंतकी संगठन रकम की मांग करते हैं।रकम न देने पर वाहनों को जला देने की धमकी देते हैं।आटोरिक्शावालों से भी तीन सौ से एक हजार रुपए तक की मांग की जाती है।
तंग आकर ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी तो मणिपुर के मोरे और म्यांमार के नामफालंग में होनेवाला सीमा व्यापार प्रभावित हुआ।स्थिति की गंभीरता को देखते हुए म्यांमार स्थित भारत के राजदूत भास्कर कुमार मित्रा मणिपुर में समीक्षा के लिए आए।आंतकियों का हौसला इतना बढ़ा हुआ है कि वे विधानसभा पर हमला करने के अलावा विधायक पर भी हमला करते हैं।इन सब के बाद भी केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संप्रग सरकार मूक दर्शक बनी हुई है।
मणिपुर में पहले महिलाओं की नृशंस हत्याएं नहीं होती थी।लेकिन मार्च में पांच महिलाओं को नृशंसता के साथ मार दिया गया।स्थिति भयावह देखते हुए थौबाल जिले के ग्रामीणों ने सरकार से हथियार देने की मांग की है ताकि आंतकियों से खुद की रक्षा कर सके।लोगों का सरकार पर भरोसा नहीं रह गया है।समस्या से निपटने में इबोबी सरकार जिस तरह आगे बढ़ रही है उससे भी सुरक्षा बल संतुष्ट नहीं है।राजनेता और आंतकियों में सांठगांठ है।विधायकों के घर से आंतकी पकड़े जाते हैं।अधिकारी सरकार से खुश नहीं।राज्य के 21 आईपीएस अधिकारी राज्य के बाहर डेपुटेशन पर हैं।मणिपुर आने के साथ ही वे वापस राज्य के बाहर लौट जाना चाहते हैं।इबोबी के करीबी सिंचाई मंत्री बिरेन सिंह का कहना है कि हमें स्थित से मुकाबला करने के लिए अनुभवी लोगों की जरुरत है।पर ये राज्य में सेवा देने को ही इच्छुक नहीं।
राज्य में स्थिति विकराल है।कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है।जंगलराज कायम है।शासन सरकार का नहीं आंतकियों का चल रहा है।कांग्रेस की न होकर कोई दूसरी सरकार होती तो अब तक राष्ट्रपति शासन लग जाता।पर केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार पूर्वोत्तर में कांग्रेस के सिमट रहे जनाधार से वैसे ही चिंतित है।मेघालय भी हाथ से खिसक गया।इबोबी मणिपुर में दूसरी बार लगातार कांग्रेस को सत्ता में लाएं हैं।इसलिए भी वह धृतराष्ट्र की भूमिका में है।लेकिन देश की सुरक्षा के लिए यह अच्छी बात नहीं है।स्थिति से निपटने के लिए तुरंत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर कड़ाई से पेश आने की जरुरत है।(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ हैं)

लेखक का पता-राजीव कुमार,पोस्ट बाक्स-12,दिसपुर-781005
मोबाइल-9435049660

त्रिपुरा के मंत्री ने किया शर्मसार

राजीव कुमार
पूर्वोत्तर में आंतकियों और राजनेताओं का संपर्क नई बात नहीं है।लेकिन एक विदेशी आंतकी संगठन के साथ संपर्क होने के आरोप त्रिपुरा के मंत्री पर लगे हैं।उन्हें इस्तीफा देना पड़ा है।देश में यह इस तरह की संभवत पहली घटना है।देश की सुरक्षा के सामने बड़े सवाल खड़े हुए हैं।संविधान के नाम पर शपथ लेनेवाला मंत्री विदेशी आंतकियों के साथ संबंध रखे तो देश की संप्रभुता की रक्षा कौन करेगा ?
त्रिपुरा के खाद्य व आपूर्ति विभाग के मंत्री शाहिद चौधरी पर बांग्लादेश के हरकत-उल-जेहादी-अल-इस्लामी(हूजी) के कार्यकर्त्ता मामून मियां से संपर्क होने का आरोप लगा है।मामून बांग्लादेशी नागरिक है।उसने पासपोर्ट और स्थाई बाशिंदा प्रमाण पत्र मंत्री चौधरी के साथ संपर्क के तहत हासिल किया।इसके लिए उसने अपना नाम बदलकर सुमन मजुमदार कर लिया।पुलिस की माने तो उसने इस तरह भारत विरोधी कार्यों को आगे बढ़ाया।
पश्चिम बंगाल पुलिस अपने यहां दो बांग्लादेशियों को नहीं पकड़ती तो शायद कभी यह राज नहीं खुलता।राज न खुलने पर वह आराम से मंत्री तक की अपनी पहुंच का फायदा उठा भारत विरोधी कार्यों को अंजाम देता रहता।बंगाल पुलिस ने हावड़ा से शमीम अख्तर और आलमगिर को पकड़कर पूछताछ की तो मियां के बारे में जानकारी सामने आई।यह दोनों विस्फोटक और उत्तर बंगाल में स्थित सैनिक शिविरों की जानकारी के साथ पकड़े गए।बंगाल पुलिस 27 मार्च को अगरतला आकर मियां को गिरफ्तार कर ले गई।इसके बाद ही मंत्री और उसके परिवारवालों के साथ मियां का संबंध उजागर हुआ और विपक्ष ने वामपंथी सरकार को घेरा।
विपक्ष के हमले से बचने के लिए मुख्यमंत्री मानिक सरकार ने मंत्री चौधरी से इस्तीफा लेने में देर नहीं की।इस्तीफे के पहले त्रिपुरा पुलिस ने मियां के खिलाफ मामला दायर किया।लेकिन विदेशी आंतकी संगठन के कार्यकर्त्ता के साथ संबंध रखने और मदद करनेवाले व्यक्ति को उम्मीदवार बना और विधायक बनने के बाद मंत्री पद दे खुद राज्य की वामपंथी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है।मुख्यमंत्री माणिक सरकार पर बड़ा सवाल है। उनकी पुलिस को क्या इसकी भनक तक नहीं लगी ?या मामला मंत्री का होने के कारण राजनीतिक दबाव के चलते कुछ नहीं किया गया।बंगाल की पुलिस की कार्रवाई के बाद राज्य सरकार ने पूरे मामले पर सीआईडी जांच की घोषणा की।केंद्र ने भी इसे गंभीरता से लिया है।उसने आईबी से इसकी अंदरुनी जांच कराने का फैसला किया है।

त्रिपुरा की माकपा सरकार यह तो आरोप नहीं लगा सकती कि यह उसके खिलाफ साजिश है।कारण पश्चिम बंगाल पुलिस मियां को गिरफ्तार कर ले गई है,जहां भी वामपंथी सरकार सत्ता में है।मंत्री चौधरी पर आरोप है कि मियां को सुमन मजुमदार के नाम पर फर्जी पासपोर्ट निकालने में मदद की थी।प्रदेश माकपा मंत्री के इस्तीफे के बाद भी उनका बचाव करने में लगी है।उसका कहना है कि चौधरी का हूजी के साथ संबंध नहीं है,जांच निष्पक्ष हो इसलिए मुख्यमंत्री ने चौधरी का इस्तीफा लिया है।
लगातार तीसरी बार विधायक बने चौधरी राज्य की वामपंथी सरकार में अकेले मुस्लिम मंत्री थे।उन्होंने मुख्यमंत्री माणिक सरकार को धनपुर विधानसभा क्षेत्र में जीताने के लिए मुस्लिम मतदाताओं के बीच प्रचार किया था।क्या इन्हीं वजहों से मुख्यमंत्री चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करने से हिचकते रहे?यह देश के साथ बड़ा खिलवाड़ है।कारण सभी जानते हैं कि पूर्वोत्तर के आंतकियों की शरणस्थली बांग्लादेश है।सीमा सुरक्षा बल ने बांग्लादेश रायफल्स को यहां के आंतकियों के 117 शिविर बांग्लादेश में रहने की एक सूची सौंपी है।तब एक मंत्री का हूजी के सदस्य को मदद पहुंचान अक्षम्य अपराध है।
मंत्री के इस्तीफे के साथ ही समस्या खत्म नहीं हो गई है।कारण पुलिस ने अभी तक चौधरी को गिरफ्तार नहीं किया है।गिरफ्तार कर उनसे पूछताछ की जाए तो पूरे मामले में और सनसनीखेज खुलासे हो सकते हैं।त्रिपुरा में विपक्ष के नेता रतनलाल नाथ ने केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल से मुलाकात कर इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है।त्रिपुरा में छह बार वामपंथी सरकार आई है और अब तक तीन माकपा मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा है।लेकिन किसी विदेशी आंतकी के साथ संबंध के चलते नहीं,बल्कि अपने निजी जिंदगी के विवादों के चलते इन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
अब तक पूर्वोत्तर के राजनेताओं के स्थानीय आंतकियों के साथ संबंध होने की बात सामने आती रही है।कई आंतकी तो मुख्यधारा में लौटकर सरकार का हिस्सा बन चुके हैं।असम में तो एक आंतकी आत्मसमर्पण न कर ही मंत्री बन गया।मंत्री बनने के बाद आंतकी रहते हुए जो मामले थे उन्हें अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अदालत से ही बरी हो गया।अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए राजनेता ही आंतकी पैदा कर विकास के नाम पर आनेवाले पैसों को निगल रहे हैं।जब तक यह बंद नहीं होगा तब तक पूर्वोत्तर और देश का भला नहीं होगा।देश की सुरक्षा खतरे में रहेगी।गोपनीय दस्तावेज लीक होकर विदेशियों के हाथों में पहुंच जाएंगे।पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप होगा।वह निष्पक्ष होकर कुछ नहीं कर पाएगी।इस पूरे माहौल को जनता ही बदल सकती है।खुद जागरुक हो अपने मताधिकार का प्रयोग सही ढंग से कर इनके इस खेल को उलट सकती है।

(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)
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Friday, March 21, 2008

मेघालय -संगमा की जीत,सोनिया की हार

राजीव कुमार
मेघालय में दस दिनी डी डी लपांग की कांग्रेस सरकार का गिरना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए एक बड़ा झटका है।कारण एनसीपी के नेता पी ए संगमा ने एकसमय सोनिया के विदेशी मूल को मुद्दा बनाया था और कांग्रेस छोड़ दी थी।आज भी वे सोनिया के खिलाफ हैं यह बात उन्होंने मेघालय में कांग्रेस की सरकार न बनने देकर स्पष्ट कर दिया है।
साठ सदस्यीय मेघालय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को 25 सीटें मिली।वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।एनसीपी को सिर्फ 14 सीटें मिली।फिर भी संगमा किंगमेकर बने।राज्यपाल एस एस सिद्दू ने बड़ी पार्टी के रुप में कांग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता दिया।लपांग ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।राज्यपाल ने लपांग को बहुमत साबित करने के लिए दस दिन का समय दिया।कांग्रेस के पास तीन निर्दलीय थे।इस तरह कांगरेस बहुमत से तीन सीट दूर 28 के आंकड़े पर पहुंच चुकी थी।कांग्रेस को उम्मीद थी कि तीन विधायक जुटाना उसके लिए कोई मुशि्कल नहीं होगी।पर संगमा ने अपनी समझबूझ से कांग्रेस को पटकनी दे दी।
कांग्रेस 19 मार्च की सुबह बहुमत साबित करने के चंद घंटे पहले तक सोचती रही कि तीन विधायक जुट जाएंगे।इसके लिए कांग्रेस के जोड़-तोड़ में माहिर रथी-महारथी कोशिश में लगे रहे।असम के स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा इस काम के महारथी माने जाते हैं।वे लपांग के शपथ लेने और बहुमत साबित करने के पहले शिलांग में डेरा डाले बैठे रहे।लेकिन तीन निर्दलीय विधायकों को कांग्रेस के पाले में कर पाने में विफल रहे।संगमा ने चुनाव नतीजों के आने के साथ ही मेघालय प्रगतिशील गठबंधन(एमपीए) बनाकर बाजी मार ली।इसमें पूर्व की कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल यूनाईटेड डेमोकेर्टिक पार्टी(यूडीपी) और छोटी पार्टियों को गठबंधन में शामिल कर लिया।खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाए संगमा ने यूडीपी के डोनकुपर राय को पहले मुख्यमंत्री बनाया।
संगमा ने सोनिया गांधी को नीचा दिखाने के लिए ही फिलहाल मुख्यमंत्री न बन कांग्रेस को पटकनी दी।यह एक तरह से श्रीमती गांधी के त्याग की तरह है, जब उन्होंने कांग्रेस की केंद में सरकार बनने देने के लिए खुद प्रधानमंत्री पद त्याग दिया।संगमा इसे छिपाते भी नहीं है।वे कहते हैं,प्रदेश कांग्रेस में मेरा कोई दुश्मन नहीं है।पर श्रीमती गांधी के साथ मेरी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है।कांग्रेस ने संगमा के गठबंधन पर पहले टिप्पणी की थी कि गठबंधन नवजात शिशु की मौत मर गया।पर जब बहुमत न होने की बजह से लपांग ने इस्तीफा दिया तो संगमा कांग्रेस पर पलटवार करने से नहीं चुके।उन्होंने कहा कि कांग्रेस नीत गठबंधन का आशानुरुप गर्भपात हो गया है।
संगमा ने भले ही दस दिन की लपांग नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार को बहुमत के अभाव में आगे नहीं चलने दिया हो पर एमपीए गठबंधन को ठीक तरह ले जाने में उन्हें भी अनेक पापड़ बेलने होंगे।कारण गठबंधन में शामिल निर्दलीय और छोटी पार्टियों के विधायक कभी भी नाराज होकर पाला बदल सकते हैं।इसलिए मेघालय में आनेवाले पांच सालों में यह सरकार स्थिर सरकार होगी यह आशा नहीं की जा सकती।दल-बदल कानून के अस्तित्व में आने के पहले 1998 और2003 के बीच राज्य में छह सरकार आई।जबकि इसके बाद के पांच साल में कांग्रेस नीत गठबंधन की सरकार रही लेकिन तीन बार मुख्यमंत्री बदले।मेघालय गठन के बाद पहली सरकार को छोड़ दें तो हर बार राज्य में गठबंधन सरकार बनी है।
दो दशक बाद राज्य की राजनीति में लौटे संगमा ने इस बार खुद को चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री के रुप में पेश किया था।साथ ही अपने दो बेटों को दो सीटों पर चुनाव लड़वाया।वे जीते भी।इसमें से एक को मंत्री भी बना दिया।सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठानेवाले संगमा अब राजनीति में खुद परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।अब आनेवाले समय में वे गठबंधन सरकार चलाकर सफल होते हैं और मेघालय का मतदाता उनके परिवारवाद को मानता है या नहीं,यह देखनेवाली बात होगी।इसी पर उनका राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ हैं)
लेखक का पता-राजीव कुमार,
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