Sunday, September 29, 2019

असम में चाय की प्याली में उठा तूफान



राजीब कुमार सिंघी

असम में चाय की प्याली में तूफान उठा है।दुर्गापूजा आते ही चाय बागानों में श्रमिकों के बोनस का मुद्दा उठने लगता है।चाय बागान प्रबंधन मंदी की मार का रोना रोते हैं तो साल भर से बोनस की राह जोते चाय बागान श्रमिकों का खून खोला हुआ रहता है।ऐसे में चाय बागान में न चाहनेवाली घटनाएं घटती है और बेकसूर लोग मारे जाते हैं।
हाल ही में टियोक चाय बागान के डाक्टर देबेन दत्त की हत्या गुस्साए चाय श्रमिकों ने कर दी।वजह थी कि जब घायल श्रमिक को इलाज के लिए बागान के अस्पताल लाया गया तो डाक्टर नहीं था।श्रमिकों का कहना है कि उन्होंने बागान की एंबुलेंस को भी बुलाया।लेकिन वह नहीं आई।अस्पताल पहुंचे तो डाक्टर नहीं।इसलिए घायल श्रमिक सोमरा मांझी मारा गया।गुस्साए श्रमिकों ने डाक्टर देबेन दत्त की पीट-पीटकर हत्या कर दी।श्रमिकों ने कहा कि डा.दत्त काफी उम्रदराज थे इसलिए हमने कोई युवा डाक्टर नियुकत् करने की मांग प्रबंधन से कई बार की थी।लेकिन प्रबंधन ने हमारी एक नहीं सुनी।
इस घटना से साफ होता है कि श्रमिकों का गुस्सा डाक्टर को लेकर था।वह सोमरा मांझी के मौत के साथ ही फूट पड़ा।चाय बागान के श्रमिक दबे-कुचले लोग हैं।उनकी जिंदगी नरक से भी ज्यादा दुखदायी है।बागानों की लाइन में जाने से यह बात पता चलती है।चाय बागानों के अस्वस्थ्यकर माहौल में काम करते-करते यह समय से पहले रोगग्रस्त हो जाते हैं।न शुद्ध पेयजल मिल पाता है।लाइनों में नाले वगैरह का इंतजाम नहीं होता।गंदगी में जीवन जीते-जीते ये आंत्रशोथ व अन्य गंभीर बीमारी के शिकार हो जाते हैं।बागान में थका देनेवाले परिश्रम के बाद इससे हलका होने के लिए ये देशी शराब का सेवन करते हैं,जो क्वालिटी में सही नहीं होती।ये इनके लिए जानलेवा साबित होती है।पीने के बाद घर का माहौल भी ठीक नहीं रहता।मारपीट।बच्चे ये देखते हुए बड़े होते हैं।आर्थिक तंगी से परेशान वे राज्य के अन्य स्थानों में रोजगार की तलाश में जाते हैं।जहां भी उन्हें अधिकांश समय नारकीय जीवन जीना होता है।
राजनीतिक पार्टियां इनसे वोट लेने के लिए इन्हें विभिन्न वादों से आकर्षित करती है।लोभ देती है।पर वोट मिलने के बाद ये भुला देती है।आज भी इनके जीवनयापन का मानदंड उन्नत न होना इसी बात को दर्शाता है।असम में सत्तारुढ़ भाजपा नेतृत्ववाली सरकार ने वादा किया था कि वह इनकी दैनिक मजदूरी 351 रुपए कराएगी।लेकिन आज भी इन्हे रोज 167 रुपए की मजूदरी मिलती है।यह तो ब्रहमपुत्र घाटी के बागान में है,लेकिन बराकघाटी के बागानों में यह 150 रुपए है।इन्हें हर रोज 24 किलो हरी पत्तियां तोड़नी होती है।इससे कम होने पर मजदूरी में कटौती कर दी जाती है।
शोषण का यह दर्द जब फूटता है तो परिणाम भयावह होते हैं।असम के बागानों में चाय श्रमिकों द्वारा नृशंस हत्या के अनेक मामले हैं।वर्ष 2012 में तिनसुकिया जिले के बरदुमसा चाय बाग़ान के मालिक मृदुल कुमार भट्टाचार्य और उनकी पत्नी को चाय मजदूरों ने उनके ही बंगले में जिंदा जला दिया था।इसके अलावा इस साल मई महीने में डिब्रूगढ़ जिले के डिकम चाय बाग़ान में मजदूरों की भीड़ ने डाक्टर प्रवीण ठाकुर को भी पीटा ।वे बाल-बाल बचे।अंधविश्वास भी है।डायन हत्या जैसी घटनाएं होती है।जब तक इनमें जागरुकता लाकर इनके जीवन को बेहतर नहीं किया जाएगा तब तक इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती रहेंगी।
असम में बड़े चाय बागानों की संख्या 765 के आसपास है जबकि लघु चाय उत्पादकों की संख्या एक लाख के आस-पास पहुंच चुकी है।इनमें लगभग हर रोज सात लाख स्थाई श्रमिक काम करते हैं।अस्थाई श्रमिक और बाल मजदूरों की संख्या अलग से है।जब बोनस देने का समय आता है तो चाय बागानों के प्रबंधन नुकसान का रोना शुरु करते हैं।लेकिन चाय की गुणवत्ता बढ़ाने और इसकी बिक्री को बढ़ाने के लिए कोई कोशिश नहीं करते।जब तक इन्हें सारी सहूलियतें सरकार से मिलती रहे तब तक इन्हें दिक्कत नहीं।जैसे ही सरकार ने मजदूरों को दिए जानेवाले रियायत दर के राशन को बंद कर दिया तो इन्हें समस्या आने लगी।मजदूरों के लिए सहूलियतें देने को कहा तो दिक्कत आने लगी।कई बड़ी कंपनियां जो पहले मुनाफा कमाती थी अब सरकार के कदमों से बागान बेचना शुरु कर चुकी है।कई वहां दूसरे उद्योग लगाना शुरु कर चुकी है।इन्हें जहां ज्यादा फायदा नजर आता है वहीं का रुख कर लेते हैं।इससे अब चाय उद्योग के सामने संकट आ गया है।
चाय उद्योग के लोग चाहते हैं कि श्रमिकों को सारी सुविधाएं सरकार दें और वे सिर्फ चाय का उत्पादन करे और उससे मुनाफा कमाएं।यही इस उद्योग के संकट का कारण बन रहा है।चाय उद्योग गंभीरता से चाय को अलग-अलग तरीके से बेचे और उसमें नयापन ला तो निश्चित तौर पर उसके लिए भला है।तब संकट के बादल छटेंगे और वह श्रमिकों को बेहतर दे पाएगा।जब बेहतर दिन थे तब भी श्रमिकों के उत्थान के लिए इन्होंने कुछ नहीं किया।नहीं तो आज की स्थिति पैदा नहीं होती। असम देश के कुल चाय उत्पादन के पचास फीसदी का उत्पादन करता है
असम में ऐसी भी चाय का उत्पादन होता है जिसकी प्रति किग्रा कीमत 75 हजार रुपए तक है।गुवाहाटी चाय नीलाम केंद्र में अक्सर इतने दामों पर चाय नीलाम होने की खबरें मीडिया में आती हैं।इसका अर्थ है कि बेहतर चीज की कीमत हमेशा मिलती ही है। डिकोम चाय बागान की गोल्डन बटरफ्लाई चाय प्रति किग्रा 75 हजार रुपए में बिकी ।यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में चाय की बिक्री का एक रिकार्ड है।गोल्डन टी टिप्स चाय भी 70,501 रुपए प्रति किग्रा में बिकी थी।डिब्रुगढ़ के मनोहरी चाय बागान की मनोहरी गोल्ड टी एक किग्रा चाय पचास हजार रुपए प्रति किलोग्राम में बिकी है। गुवाहाटी नीलाम केंद्र के सचिव दिनेश बियानी ने बताया चाय प्रेमी बेहतर चाय के लिए कुछ भी कीमत अदा कर सकते हैं। इस तरह की चाय की देश ही नहीं विदेशों में भी काफी मांग है।जब चाय की इतनी मांग है तो फिर चाय उद्योग रो क्यों रहा है।निश्चित तौर पर वह कोशिश नहीं कर रहा है।उसका मकसद सिर्फ कमान है।नहीं तो यह हाल क्यों।यह सोचने की बात है।
जो श्रमिक अपने हाड़-मांस से चाय के पौधों को अपने बच्चों की तरह बड़ा कर उनकी पत्तियों को तोड़कर देश-दुनिया को चाय की चुस्कियों से तरोताजा करने में अपना योगदान करते हैं उनका जीवन कब तक हम इस तरह जीन को छोड़ते रहेंगे।यह अब सोचने का वक्त आ गया है,नहीं तो श्रमिकों का गुस्सा कभी ओर विकराल रुप धारणा कर सकता है।

एनआरसीःउन्नीस लाख लोगों को विदेशी कहना सही नहीं

राजीब कुमार सिंघी

असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी(एनआरसी) की अंतिम सूची शनिवार को प्रकाशित की गई।इसमें कुल आवेदनकर्तातओं से लगभग 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हुए हैं।इन 19 लाख को विदेशी कहना सही नहीं होगा।खुद गृह मंत्रालय ने कहा है कि जिनके नाम नहीं होंगे वे विदेशी नहीं होंगे।सही है।विदेशी न्यायाधिकरण ही किसी को विदेशी करार दे सकता है।जिनके नाम नहीं होंगे वे विदेशी न्यायाधिकरण में 120 दिनों में अपील कर सकेंगे।इसके लिए अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरण बनाए गए हैं।इसके बाद ही बाकी की तस्वीर साफ होगी।
उन्नीस लाख लोगों में से अनेक देश के अन्य राज्यों के लोग हैं।असम के भी लोग हैं।लेकिन कागजातों को दे नहीं पाने के चलते उन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया है।अनेक के नामों में गड़बड़ है।किसी कागजात में नाम कुछ है तो किसी में कुछ।इसलिए 19 लाख लोग विदेशी नहीं हो सकते।जो विदेशी होगा वह तो पकड़े जाने के डर से इन सब झमले में पड़ेगा ही नहीं।वह तो देश के किसी अन्य हिस्से में चला जाएगा,जहां फिलहाल एनआरसी की प्रक्रिया नहीं है।ऐसे में असम में एनआरसी का अद्यतन करना एक निरर्थक प्रयास है।जब तक पूरे देश में एनआरसी नहीं होगी तब तक यह निरर्थक ही होगी।
असम में विदेशियों को खदेड़ने के लिए छह साल का असम आंदोलन चला।1985 में असम समझौता हुआ।लेकिन 34 साल बाद भी इस समस्या का हल नहीं निकला।एनआरसी सुप्रीम कोर्ट के देखरेख में हुई।फिर भी असम आंदोलन करनेवाला अखिल असम छात्र संघ(आसू),भाजपा,सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी के लिए आवेदन करनेवाला असम पब्लिक वर्क्स(एपीडब्ल्यू) एनआरसी की अंतिम सूची से संतुष्ट नहीं हैं।सबको लगता है कि जितने नाम छूटे हैं वह संख्या कम है।जब दूसरे प्रारुप में 40 लाख लोगों के नाम नहीं आए तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इन्हें बांग्लादेशी करार दिया था।लेकिन वास्तव में सभी बांग्लादेशी नहीं थे।इसमें से आधे अंतिम सूची में जगह बनाने में सफल हो गए।लेकिन तब भी राजनीति हो रही थी और अंतिम सूची आने के बाद भी राजनीति ही हो रही है।
एनआरसी की सूची को गलत बतानेवाले पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत हितेश्वर सैकिया,तत्कालील केंद्रीय गृह मंत्री दिवंगत इंद्रजीत गुप्त के दिए गए बयानों का जिक्र कर कहते हैं यह संख्या कम है।असम विधानसभा में दिवंगत सैकिया ने एलान किया था कि राज्य में 30 लाख बांग्लादेशी हैं।यह बयान आज से लगभग तीस साल पहले आया था।पर हंगामा मचने के बाद उन्होंने बयान वापस ले लिया था।वहीं केंद्रीय गृहमंत्री दिवंगत इंद्रजीत गुप्त ने कहा था कि पचास लाख बांग्लादेशी हैं।असम के पूर्व राज्यपाल एस के सिन्हा ने भी अपनी एक रिपोर्ट में राज्य में 60 लाख बांग्लादेशी रहने की बात कही थी।अब विरोध करनेवाले संगठनों का कहना है कि इतने साल बाद ये बांग्लादेशी बढ़ने के बजाए कैसे कम गए।लेकिन कोई भी बांग्लादेशियों का आंकड़ा पुख्ता कैसे दे सकता है।यह पता कैसे चलेगा।जब तक शिनाख्त नहीं होगी तो आंकड़ा कैसे आएगा।चर में रहनेवाले बांग्लाभाषी मुसलमानों को बिना कोई आधार के बांग्लादेशी कह देना राजनीति के सिवाय और कुछ नहीं है।एनआरसी में जिसके कागजात सही नहीं थे चाहे वह भारतीय ही क्यों न हो,नाम नहीं आए।
राष्ट्रीय नागरिक पंजी के राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला ने कहा है कि एनआरसी के अद्यतन में सर्वोत्तम वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया है।हाजेला ने यह बात सचेतन नागरिक मंच के आरोपों का जवाब देने के लिए लिखे पत्र में कही है।मंच भाजपा समर्थित संगठन है।इसने ही राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर पुनःसत्यापन की मांग की थी।केंद्र और राज्य सरकार ने भी मंच के ज्ञापन के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पुनःसत्यापन का अनुरोध किया था जिसे अदालत ने ठुकरा दिया था।सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी का मामला प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई देख रहे हैं।वे काफी सख्त हैं।निश्चय ही उन्होंने हाजेला द्वारा दिए गए तथ्यों को देखकर ही कोई फैसला किया है।
हाजेला ने आगे कहा कि एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए आवेदनकर्ताओँ ने जो कागजात दिए हैं उनका सत्यापन वैज्ञानिक तरीके से किया गया है। अत्याधुनिक सूचना प्रौद्योगिक का इस्तेमाल न करने से छह करोड़ कागजातों का सत्यापन करना आसान नहीं था।मंच ने एनआरसी में काफी विदेशियों के नाम शामिल होने की बात कही,लेकिन आपत्तियां दर्ज कराने के लिए जो कानूनी प्रावधान थे,उनका इस्तेमाल मंच ने नहीं किया।एनआरसी कार्यालय के पास ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है जिससे पता चलता हो कि मंच ने एनआरसी के प्रारुप में गलत नाम शामिल होने को लेकर आपत्ति दर्ज की हो।आरोप लगानेवाले तथ्यों को सही ढंग से नहीं रख रहे हैं।बिना तथ्य ही सीधे आरोप लगाए जा रहे हैं।
मंच अपने ज्ञापन में कोई विशेष आरोप देने में सफल नहीं हुआ।मंच ने सिर्फ मोरिगांव के एक स्कूल शिक्षक खाइरुल इस्लाम का जिक्र किया जो एनआरसी के हाथ से लिखनेवाले प्रारुप में कुछ समय के लिए था।इसके कुछ दिनों बाद हाथ से प्रारुप लिखने की पूरी प्रक्रिया को ही बंद कर दी गई। मंच ने अपने ज्ञापन में कुछ एनआरसी के एप्लीकेशन रिसीप्ट (एआरएन) नंबरों का उल्लेख किया ,पर वास्तव में उस तरह के कोई एआरएन नंबर है ही नहीं।मंच ने नंबर के तौर पर पांच अंक के एआरएन नंबर लिखे हैं जबकि एआरएन नंबर 21 अंकों के होते हैं।मंच ने अपने ज्ञापन में स्वदेशी लोगों के नाम एनआरसी के प्रारुप में न रहने की बात कही है।इस पर भी वह कोई उदाहरण पेश नहीं कर पाया है। राष्ट्रपति को सौंपे गए ज्ञापन में 25 लाख लोगों के हस्ताक्षर रहने की बात कही है।पर वास्तव में ज्ञापन में 1.7 लाख लोगों के ही हस्ताक्षर थे।
मालूम हो कि राज्य एनआरसी समन्वयक के कार्यालय की स्थापना 2013 में की गई थी।पर सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में एनआरसी के अद्यतन का कार्य सही अर्थों में फरवरी 2015 में लीगेसी डाटा के प्रकाशन के साथ ही हुआ।उसी साल मार्च से अगस्त तक नागरिकों से आवेदन मांगे गए।3.29 करोड़ लोगों ने एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए आवेदन किया।उसी साल सितंबर में फील्ड वैरिफिकेशन शुरु हुआ।इसके बाद फैमिली ट्री वैरिफिकेशन किया गया।फैमिली ट्री वैरिफिकेशन पूरी प्रक्रिया में गेम चेंजर का काम कर गया।इस प्रक्रिया के दौरान ही ज्यादातर अनियमितताएं पकड़ में आई।पहला प्रारुप 31 दिसंबर 2017 की मध्यरात्रि को प्रकाशित किया गया।अंतिम प्रारुप 30 जून 2018 को 40 लाख आवेदनकर्ताओं के नाम के बिना प्रकाशित हुआ।पिछले साल 25 सितबंर को ही दावों और आपत्तियों को स्वीकारने की प्रक्रिया शुरु हुई।मजे की बात है कि एनआरसी के अंतिम प्रारुप में नाम न रहनेवाले 40 लाख लोगों में से चार लाख ने फिर से दावा ही नहीं किया जबकि दो लाख शिकायतें दर्ज हुई।बाद में एनआरसी के प्रारुपों में नाम रहनेवाले 1.02 लाख लोगों के नाम हटाए गए।वैरिफिकेशन के दौरान यह बात सामने आई कि इनके नाम एनआरसी सूची में शामिल होने के योग्य नहीं थे।
अब एनआरसी की अंतिम सूची के साथ ही फिर आलोचनाएं शुरु हो गई है।विदेशी-विदेशी का खेल शुरु हो गया है।राजनीति शुरु हो गई है।जैसे यह अंतहीन प्रक्रिया है।पर पूरे देश में एनआरसी करने से ही सारी समस्याएं खत्म होंगी और सही अर्थों में पता चलेगा कि भारत में कितने लोग भारतीय नागरिक न होकर विदेशी हैं।तब तक इस तरह का खेल चलता रहेगा और कुछ संगठन और पार्टियां अपनी-अपनी रोटी सेंकती रहेंगी।
असम में हर काम का विरोध करने का जैसे एक रिवाज है।बिना कोई ठोस आधार के सिर्फ भावनाओं में बहते रहते हैं और आंदोलन की फैक्ट्रियां चलाते रहते हैं।इससे राज्य को ही नुकसान हो रहा है।चालीस साल से विदेशियों को खदेड़ने के आंदोलन के बाद एनआरसी आई तो भी समस्या खत्म नही हुई।होगी भी नहीं।क्योंकि इन सब को अपनी-अपनी दुकान चलानी है।पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का एक बयान बेहद याद आता है।असम में मतदाता परिचय पत्र देने का आसू विरोध कर रहा था।उसका कहना था कि विदेशियों के हाथों में मतदाता परिचय पत्र होगा और वे भारतीय हो जाएंगे।जब एनआरसी होगी तभी मतदाता परिचय पत्र दिया जाए।यदि मुख्यमंत्री गोगोई आसू की इस मांग को मान लेते तो राज्य के लोगों के पास अब भी मतदाता परिचय पत्र नहीं होता।लेकिन गोगोई ने चतुराई की।लोगों से मतदाता सूची में फोटो लगाने की बात कहकर फोटो लिए और अचानक सबको मतदाता परिचय पत्र दे दिया गया।आसू का विरोध फुस्स हो गया।एनआरसी का विरोध भी कुछ ऐसा होनेवाला है।

Sunday, December 25, 2016

शासनतंत्र को पटरी पर लाने के लिए करना पड़ रहा है संघर्ष

असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल से वरिष्ठ पत्रकार राजीव कुमार की विशेष बातचीत



छह महीने सरकार चलाने के बाद आप संतुष्ट हैं? आप ने जैसा सोचा था, वैसे सरकार चल रही है या कोई समस्या है?
- शासन तंत्र में अराजकता आ गयी थी। नीति-नियमों का उल्लंघन कर कई काम किये गये। दिसपुर, जिला स्तर, प्रखंड स्तर, पंचायत स्तर में घोर अनियमितताएं हुईं। अब इन्हें फिर से पटरी पर लाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आम जनता सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार बढ़ने से कष्ट झेल रही थी। गरीब लोगों की सरकारी कार्यालयों में कोई पूछ नहीं थी। कुछेक बिचौलिए पूरी शासन व्यवस्था को ही निगल चुके थे। इसके चलते शासन व्यवस्था के प्रति लोगों का मोहभंग हो गया था। यह विश्वास वापस लौटा लाने के लिए हम पिछले कुछ दिनों से काफी संघर्ष कर रहे हैं। कष्ट करना पड़ रहा है। आने वाले दिनों में और अधिक कष्ट करना पड़ेगा, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार की जितनी योजनाएं हैं, वे शहर, गांव, चाय बागान, चर इलाकों के लिए हैं। इन योजनाओं से पहाड़ी, मैदानी और सभी जगहों पर रहने वाले लोग लाभान्वित हों, इसके लिए शासन-व्यवस्था से भ्रष्टाचार को दूर करना होगा। सभी स्तर पर, मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर जमीनी स्तर तक भ्रष्टाचार खत्म करना होगा और सभी को कार्यक्षम बनाना होगा। कार्यदक्षता बढ़ानी होगी। अधिकारी, कर्मचारी, मंत्री, विधायक, सांसद, पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधि, नगर समिति, नगरनिगम के चुने हुए प्रतिनिधियों समेत सभी की कार्यदक्षता बढ़ानी होगी, तभी जनता लाभान्वित होगी। इसी उद्देश्य को आगे रख हम पिछले छह महीनों से संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिए हमें बार-बार समीक्षा बैठकें करनी पड़ रही हैं। सभी स्तर के अधिकारियों-कर्मचारियों व विभागीय मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श करना पड़ रहा है। हमने राज्य के बौद्धिक तबके से भी सुझाव लिये हैं। अब तक सरकार की ओर से उठाये गये कदमों में जनता शामिल हुई है और जनता के सहयोग से हम कुछ कार्यों में सफलता पाने में कामयाब हुए हैं। अतिक्रमण हटाया जाना इनमें शामिल है। काजीरंगा से लेकर मोरीगांव, दरंग, सिपाझार, श्रीश्री शंकरदेव के जन्मस्थान बटद्रवा में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया। इन अतिक्रमण विरोधी अभियानों में जनता का सहयोग मिलने से इनमें सफलता हाथ लगी। इसके अलावा चुनाव के दौरान हमने जो वायदे किये थे, उनको भी लागू कर रहे हैं। इनमें भारत-बांग्लादेश सीमा को सील करना, एनआरसी का अद्यतन शामिल है। जनता का सहयोग इनमें मिल रहा है। हम इन कामों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था-सर्व आनंद यानि सर्वानंद। आप जब पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे तब असम की जनता मोदीजी के कहे अनुसार आनंदित होगी? क्या आप उस दिशा में बढ़ रहे हैं?
- समाज के सभी स्तरों के लोगोंको विश्वास में लेकर बराक-ब्रह्मपुत्र और पहाड़-समतल के वृहत असमिया समाज के बीच समन्वय की धारा मजबूत करने और एक जनगोष्ठी को दूसरी जनगोष्ठी द्वारा विश्वास में लेकर आगे बढ़ने के माहौल को बनाना है। इसलिए जाति, गोष्ठी, भाषा, धर्म से ऊपर उठ कर सभी को साथ लेकर ऐसे ही असम के निर्माण के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं। जिस असम में हम परिवर्तन लाने की बात सोच रहे हैं, यह तभी संभव होगा, जब हमारे बीच समन्वय होगा। समन्वय के साथ ही हम कठोर परिश्रम करेंगे। परिवर्तन का माहौल बनाना होगा। परिवर्तन का अर्थ है मन का परिवर्तन, संकीर्णता के परिवर्तन से। इसलिए लोगों के मन में जितनी मलिनता है, जितने भी संदेह, शंका, भय हैं, इन्हें दूर कर लोग खुले मन से असम में रह सके। असम की मिट्टी में, पूरे प्राकृतिक परिवेश में, भौगोलिक वातावरण में, वन संसाधन और संभावना का विकास कर असम के विकास के लिए अपने को लगा सकने वाला परिवर्तन। इसलिए मैं सोचता हूं कि इस बारे में निश्चित रूप से जनता ने सकारात्मक फैसला लिया है और हम सब सच्चाई और निष्ठा से काम करते रहे तो हमें जनता का समर्थन मिलता रहेगा।
आईएमडीटी एक्ट खारिज होने के बाद आप असम के जातीय नायक बने। भाजपा से मुख्यमंत्री बनने के बाद आपको विपक्ष खलनायक बता रहा है। लेकिन आप इन पर समय जाया करने के बजाय अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। इतना धैर्य कैसे संभव है?
- मैंने कभी अपने को जातीय नायक नहीं समझा है। सोचना भी नहीं चाहिए। मैं जातीय नायक तब बनूंगा, जब मैं सर्वोच्च त्याग करुंगा। जीवन का सर्वोच्च त्याग देश के लिए, समाज के लिए, जाति के लिए करुंगा। सर्वोच्च त्याग तो मैंने नहीं किया है। इसलिए मैं समाज के लिए, सभी श्रेणी के लोगों के लिए, जाति के लिए अंतर्मन से साथ काम करने का प्रयास कर रहा हूं। जातीय नायक वे हैं, जो अपने जीवन में देश के हित, समाज हित, लोगों के हितों के लिए घोर विपत्तियां सहते हुए महान बलिदान देते हैं। वास्तव में वीर शहीद ही जातीय नायक होते हैं। इन जातीय नायकोें का आदर्श हम अपनाएंगे। जीवन के रास्ते में हम भविष्य के समाज को गढ़ने के लिए प्रयास करते रहेंगे। इसलिए मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। मैंने कभी यह भावना मन में नहीं पाली। मैं यह नहीं हूं, यह मैं जानता हूं, क्योंकि एक जातीय नायक होने के लिए समस्त जनता के हृदय में जगह बनानी होगी। सभी लोगों का भरोसा जीतना होगा। मेरे गुरु ने मुझे यह सीख दी है। मुझे असम की जनता का प्यार मिला है और यही मेरी शक्ति का आधार है। इसलिए मैं जनता के प्रति अपनी श्रद्धाभक्ति रखकर सदैव काम करने के लिए इच्छुक हूं। किसी भी श्रेणी की जनता हमारे नेतृत्व से शंकित न हो या वे असुरक्षा के माहौल में न रहें, इसके लिए ही मैं प्रयास करता रहूंगा। सभी को काम करने के लिए सुरक्षित वातावरण, खुले मन से काम करने का वातावरण बनाना ही हमारा प्रधान लक्ष्य है।
आपके कई मंत्री, विधायक सांप्रदायिक टिप्पणी कर स्थितियां जटिल बनाते हैं, लेकिन आपको नुकसान हो सकता है, यह जानते हुए भी आप हार्डलाइन नहीं अपनाते। आगे भी आप ऐसे रह सकेंगे?
- हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने हमें जो नीति सौंपी है, जिस नीति के आधार पर समाज और देश को गढ़ने को कहा है, उसी को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं। यह है सबका साथ, सबका विकास। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि समाज के सबसे दरिद्र को तुम गले लगाना, शक्तिशाली करना, आर्थिक रूप से मजबूत करना, इज्जत देना और इन्हें सम्मान के साथ जीने का माहौल बना देना। इसलिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आदर्श, महात्मा गांधी के आदर्श और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें जो नीति शिक्षा दी है, उसके आधार पर हमें असम की 3 करोड़ 20 लाख लोगों की आस्था लेकर आगे बढ़ना होगा। भारत में रहने वाले लोगों के प्रति श्रद्धाभाव रखकर हमें कार्य करना पड़ेगा। भारतवर्ष को शक्तिशाली करने के लिए असम को शक्तिशाली बनाना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आपके बीच बहुत समानता है। वे भी अकेले रहते हैं और आप भी। देर रात तक कार्य करना उनका भी शगल है। मोदीजी देश के लिए और आप असम के लिए कार्य कर रहे हैं। आपके परिवार के किसी व्यक्ति को भी राजनीति या आपके साथ सक्रिय रूप में देखा नहीं जाता। इसके चलते ही राज्य में आप कार्य कर पा रहे हैं?
- मेरे माता-पिता ने मुझे जो नीति शिक्षा दी है, वे आज इस दुनिया में नहीं हैं, इहलोक से विदा ले चुके हैं, लेकिन जिंदा रहने के दौरान उन्होंने मुझे जो नीति शिक्षा दी, उसके आधार पर मुझे कार्य करने की ऊर्जा मिली है। उन्होेंने मूल्यबोध की बात समझायी थी। लोगों के प्रति श्रद्धाभक्ति रख कार्य करना चाहिए। यही जीवन में मूल्यवान शिक्षा थी। इस शिक्षा से शिक्षित एक नागरिक के रूप में मैं अपना दायित्व निर्वहन करने में लगा हुआ हूं। इसके अलावा मेरे गुरुओं ने जो महान सीख दी है, जो मानवीय शिक्षा प्रदान की है, उसके आधार पर ही आने वाले दिनों में हम असम को मानवीय चिंतन व आदर्शों के आधार पर आगे ले जाएंगे।
आप अकेले रहते हैं। युवा हैं। असम के मुख्यमंत्री हैं। अब इसका दुख होता है? आने वाले समय में क्या हम बदलाव देखेंगे?
- मैं तो अकेला नहीं। इतनी जनता मेरे साथ है। असम की जनता ने मुझे जिम्मेवारी सौंपी है। जनता ने जो जिम्मेवारी सौंपी है, वहीं मेरा मनोबल है। जनता सभी समय मेरे पर नजर रखती है। इसलिए मैं कभी अपने को अकेला महसूस नहीं करता। लोगों की दृष्टि है मुझ पर। मैंने मुख्यमंत्री के रूप में क्या काम किया, कहां किस तरह का आचरण किया, इस पर भी जनता नजर रख रही है। जनता मुझे देख रही हैं, यह बात में सदैव महसूस करता हूं। इसलिए मैं कभी अकेलापन महसूस ही नहीं करता। सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने का मैंने संकल्प लिया है। लोग अपने तरह से सोच सकते हैं। उन्हें मैं रोक तो नहीं सकता।
आप में कभी उच्चाकांक्षा रही थी कि आपको मुख्यमंत्री बनना है या नहीं थी? आप में लॉबी पॉलिटिक्स नजर नहीं आ रही है।
- ये चीजें नियति है। इन चीजों के लिए अति उत्साहित होकर फायदा नहीं। सिर्फ निष्ठा के साथ कार्य करते रहना होगा। सफलता और विफलता समय के हाथ है। समय है भगवान। इसलिए सबकुछ जनता के हाथ में है। जनता जो फैसला करेगी उसी आधार पर हमें आगे बढ़ना है। अति उत्साहित होकर कोई फायदा नहीं होगा।
उत्तर लखीमपुर से प्रदान बरुवा को टिकट मिलना, रंजीत दास का प्रदेशाध्यक्ष बनना साबित करता है कि आप अपने कार्य के प्रति ज्यादा ध्यान देते हैं न कि लॉबी पॉलिटिक्स की ओर।
- नहीं, ये फैसले हमारे सामूहिक फैसले हैं। रंजीत दास के अध्यक्ष नियुक्त होने के बारे में हम सभी की एक राय थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ ही पार्टी के विभिन्न पदों पर रहने वाले नेताओं के साथ हमने कई बार इस पर चर्चा की। हम सभी एक परिवार हैं। बाहर लोगों की धारणा अलग हो सकती है, पर वैसी बात नहीं है। भाजपा में इस तरह की संस्कृति नहीं है। हमारे भाजपा में जो भी फैसले होते हैं, वे सर्वसम्मति से लिये जाते हैं। किसी को अंधेरे में रखा नहीं जाता। मेरे प्रदेशाध्यक्ष बनने का हो या फिर रंजीत दास का। सभी के विचार लिये गये हैं। मैंने भी अपना विचार दिया है। मैंने कहा कि रंजीत दास के अध्यक्ष बनने पर भाजपा की जमीनी स्तर पर स्थिति और अधिक बेहतर होगी।
आप में आध्यात्मिक चेतना का विकास कब से हुआ? आप अपने भाषणों में राजनीतिक हमला अधिक करने के बजाय सकारात्मक और लोगों को प्रोत्साहित करने की बातें करते हैं।
- पूरा मामला ही माता-पिता से जुड़ा है। साधारणतया माता-पिता बचपन में जो शिक्षा देते हैं, उसी के आधार पर व्यक्ति का जीवन निर्मित होता है। आधार माता-पिता से आता है। बाद में गुरु ने आध्यात्मिकता से अवगत कराया। कृष्णगुरु का सान्निध्य मिलने के बाद उन्होंने मुझे बहुत ज्ञान और सुझाव दिया। इसके चलते मुझे आगे बढ़ने में मदद मिल रही है। इनसे मुझे संकीर्णता से हटकर समाज और देश के लिए चिंतन करने का मनोबल मिला।
सरकारी खर्च बढ़ने की आशंका के चलते ही मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर रहे हैं क्या?
- मंत्रिमंडल का विस्तार नये साल में हो जाएगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आपने जेहाद छेड़ा था। पर अब विपक्ष आरोप लगा रहा है कि आपकी पार्टी के लोगों का नाम आने से ही जांच ठंडे बस्ते में चली गयी है?
- ऐसी बात नहीं है। खुले मन से हमारे जांच करने वाले अधिकारियों को जांच का अधिकार दिया गया। इनमें भी कोई भी राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है।
भाजपा के पास सरकार चलाने के लिए बहुमत है। इसमें गठबंधन के सहयोगियों से और अधिक दबाव आपको झेलना पड़ता है?
- नहीं, नहीं। कोई दबाव नहीं है। सभी का सहयोग मिल रहा है। हर कोई समर्थन दे रहा है। सब समझते भी हैं।
आरोप है कि सरकार आरएसएस चला रहा है?
- आरएसएस कभी भी हमारे काम-काज में हस्तक्षेप नहीं करता। वह तो हमें आदर्श, मूल्यबोध के आधार पर समाज को शक्तिशाली करने के सुझाव ही देता है।
आपने अगप इसलिए छोड़ी क्योंकि पार्टी आईएमडीटी एक्ट के रद्द होने का विरोध करने वालों के साथ हाथ मिलाना चाहती थी। यदि भाजपा में भी ऐसी स्थिति (हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के मसले पर) आयी तो आप वैसा ही रुख करेंगे?
- हम जो वायदे करके आये थे, उन्हें छिपा कर रखने की बात नहीं है। भाजपा ने चुनाव पूर्व जो चुनावी घोषणा पत्र लिखित रूप में असम की जनता के बीच वितरित किया था, उसमें साफ शब्दों में लिखा था कि हम आने वाले दिनों में क्या-क्या काम करेंगे। ये नयी बात नहीं है। जो सवाल आपने पूछा है, वह नये सिरे से नहीं आया है। चुनाव के पूर्व जनता ने इसे देखा था और उसके आधार पर ही भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया था। पार्टी, संगठन सभी जानते हैं। यहां तक कि विपक्षी भी जानते हैं। हमने जो चुनावी घोषणापत्र प्रकाशित किया था, उसका अध्ययन विपक्ष ने भी किया है। सिर्फ अध्ययन ही नहीं, टीवी चैनलों पर चर्चा हुई है। इसके बाद ही असम की जनता ने हमें जनमत दिया है। इसलिए यह नया सवाल नहीं है। सत्ता में आकर लाया गया विषय नहीं है। सारे मामलों में जनता को भरोसे में लेकर ही पूरे असम की जनता के लिए प्रकाशित किया गया था। अब पूरा मामला संसद में चला गया है। संसद में ही इस पर फैसला होगा।
हार्डलाईन या सॉफ्टलाईन की बात नहीं है। हमने जो वादे किये थे, उन्हें मुझे पूरा करना ही होगा। इसमें बार-बार बदलाव की बात नहीं आ सकती। यह पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान असम की जनता के समक्ष किया गया घोषित वादा है।
आपको सबसे अधिक क्या चीज बुरी और अच्छी लगती है?
- मैं दूसरों पर चर्चा करने को बेहद बुरा मानता हूं। परनिंदा मेरे लिए बहुत बुरी चीज है। किसी दूसरे के बारे में कोई प्रशंसा करता है तो मुझे खुशी होती है। मैं तब अपने को ऊर्जावान मानता हूं। किसी के पीठ पीछे चर्चा करना या बुराई करना मुझे बेहद बुरा लगता है।
आप को भोजन में क्या पसंद है?
- मैं शाकाहारी खाना पसंद करता हूं। उबला हुआ हो और उसमें मिर्च न हो।
सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
- सबसे बड़ी चुनौती मेरे सामने परीक्षा में उत्तीर्ण होने की है। आने वाले पांच सालों में मैं ईमानदारी और निष्ठा के साथ कार्य पूरा कर सकूं। यही मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मेरी परीक्षा शुरू ही हुई है। असम की जनता मेरे काम-काज पर कड़ी नजर रखे हुए है। जनता की परीक्षा में मैं उत्तीर्ण हो सकूं, तभी मैं अपने को सफल मानूंगा। अपने मन में आनंद की अनुभूति कर सकूंगा।
आपने अपने कार्यालय में महिलाओं को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया है। महिला समाज के प्रति आपके मन में बहुत इज्जत है।
- विश्व में एक आंदोलन हो रहा है। लैंगिक समानता का। आज की तारीख में पुरुष-महिलाएं समानांतर रूप से कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। तभी समाज आगे बढ़ पाएगा। आप यदि एक श्रेणी की अवहेलना करेंगे तो समाज आगे नहीं बढ़ सकता और तब मानवता प्रतिष्ठित नहीं हो सकती।
राष्ट्रीय नागरिक पंजी के अद्यतन को बंद करने का आरोप लग रहा है।
- बंद नहीं हुआ है। काम चल रहा है। यह गलत प्रचार चलाया जा रहा है। इतना बड़ा काम है। स्वाधीनता के बाद भारत में असम में ही यह कार्य पहले हो रहा है। संवैधानिक रूप से वैध भारतीय नागरिकोें के नामों का एक संवैधानिक दस्तावेज तैयार होगा। यह कार्य केरल, कश्मीर कहीं नहीं हुआ है। इसलिए इस तरह का एक राष्ट्रीय कार्य निष्ठा के साथ करने के लिए प्रत्येक दस्तावेज को बार-बार देखना होगा, ताकि गलती न रह जाए, क्योंकि यह ऐतिहासिक दस्तावेज होगा। इसलिए इस तरह के एक बड़े काम को काफी जतन के साथ करना होगा। सनकी होकर या आवेग के साथ करने की यह चीज नहीं है। किसी भी वैध भारतीय नागरिक का नाम छूट न जाए, यह हमें अच्छी तरह से जांच-पड़ताल करनी होगी।
हिंदीभाषी असम के अंदरुनी क्षेत्र में रहते हैं। उनकी सुरक्षा को लेकर सरकार क्या कर रही है?
- सिर्फ हिंदीभाषी नहीं, हमारा उद्देश्य किसी के साथ भेद-भाव न करने का है। सबका साथ सबका विकास नीति के आधार पर हमें सभी समुदायों को आगे ले जाना है। सबकी सुरक्षा करना हमारी जिम्मेवारी है।
आप मुख्यमंत्री होकर भी बाजार में स्वयं खरीददारी करने और खाना बनाने में भी रुचि रखते हैं?
- बाजार करना और खाना बनाना मुझे अच्छा लगता है। मैं जब केंद्रीय मंत्री था तो गुवाहाटी के श्रीनगर बाजार में प्रायः जाता था। मुझे सब्जियों की पहचान हैं। पहले लाही और गोभी की खेती कर साप्ताहिक बाजार में बिक्री करने जाता था। पहले तीन किलोमीटर पत्थर की सड़क पर पैदल चलकर दिनजान के साप्ताहिक बाजार में सब्जी दस पैसे-पंद्रह पैसे में बेचता था। तब से मेरे में बाजार के प्रति स्पष्ट धारणा है। बाजार खुद जाने पर मैं सब्जियों का चयन खुद कर सकता हूं कि कौन-सी फ्रेश है और कौन-सी पुरानी है। कुछ लोग बाजार जाने से इन चीजों पर ध्यान नहीं देते। ग्राहकों में जागरूकता होनी जरुरी है। मैं जैविक खेती को यहां स्थापित करना चाहता हूं। तब लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और माहौल प्रदूषण मुक्त होगा।

Wednesday, November 2, 2016

सुविधावादी राजनेता हैं हिमंत


आरएसएस की गुड बुक के लिए बन रहे हैं कट्टर हिंदू

राजीव कुमार

असम की भाजपानीत सरकार में मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा आरएसएस की गुड बुक में शामिल होकर मुख्यमंत्री तक की कुर्सी हासिल करने की दौड़ में हैं।इसलिए वे अंट-शंट बोले जा रहे हैं।अपनी दूसरी किताब के विमोचन पर उन्होंने कह दिया कि भाजपा धर्म के आधार पर राजनीति करती है।यह बुरी बात नहीं है।देश का बंटवारा भी धर्म के आधार पर हुआ था।
डा.शर्मा यह नहीं थमते।वे कहते हैं कि राज्य के 33 जिलों में से 11 जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं।2021 की जनगणना में और कुछ जिलों में हम अल्पसंख्यक हो जाएंगे।हमें यह देखना है कि एक लाख लोग हमारे शत्रु हैं या 55 लाख लोग शत्रु हैं।एक लाख वे उन लोगों को बता रहे हैं जो बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं जबकि 55 लाख मुस्लमान बता रहे हैं।एक व्यक्ति संविधान की शपथ लेकर मंत्री बन इस तरह की बात कहें तो उसे मंत्री पद पर रहने का अधिकार नहीं है।
हिमंत सुविधावादी राजनेता रहे हैं।नीति व आदर्श नाम की कोई चीज उनमें दिखाई नहीं देती।वे शुरु में अखिल असम छात्र संघ(आसू)में थे।आसू ने छह साल तक असम आंदोलन किया था।आसू ने राज्य से विदेशी लोगों को खदेड़ने के लिए आंदोलन किया था।1985 में केंद्र के साथ असम समझौता हुआ।इस समझौते में स्पष्ट उल्लेख है कि 25 मार्च 1971 के बाद आए विदेशियों को राज्य से जाना होगा।अचानक हिमंत कांग्रेस में आए।2001 में तरुण गोगोई के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो वे मंत्री बने।गोगोई के तीनों कार्यकाल में वे मंत्री रहे।चौदह साल गोगोई के साथ मंत्री रहने के बाद अचानक उनमें मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जागी।वे विक्षुब्ध गतिविधियां करने लगे।कांग्रेस हाईकमान ने झुकने से इनकार कर दिया तो हिमंत ने भाजपा का दामन थाम लिया।भाजपा तब केंद्र में आ चुकी थी।राज्य में उसके पास कद्दावर नेताओं को अभाव था।सो,भाजपा ने हिमंत को सिर आंखों पर बैठाया।
कांग्रेस में रहते हुए वे भाजपा पर जमकर प्रहार करते थे।लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान तो उन्होंने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि गुजरात में पानी की पाइपों से मुसलमानों का खून बहता है।लेकिन अब वे अपने को भाजपा का सबसे हितैषी जाहिर करने में लगे हैं।चतुर हिमंत यह भलीभांति जानते हैं कि आरएसएस को खुश कर दिया तो भाजपा में उन्हें बड़ा पद पाने से कोई रोक नहीं सकता।इसलिए वे अब कट्टर हिंदू बनने का ढोंग कर इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं।इस कार्य में उनके गाड फादर बने हैं राम माधव।राम माधव की पृष्ठभूमि आरएसएस की रही है और वहीं से उनकी एंट्री भाजपा में हुई है।
राम माधव ने हिमंत को जिस अंदाज में आगे बढ़ाया है,उसी अंदाज में भाजपा के पुराने कर्मी आहत हुए है।राज्य में लखीमपुर संसदीय सीट और बैठालांग्सू विधानसभा सीट का चुनाव होना है।यहां भी उम्मीदवारों के चयन में हिमंत की चली है।उत्तर लखीमपुर संसदीय सीट से सर्वानंद सोनोवाल सांसद थे।लेकिन माजुली विधानसभा सीट से जीत हासिल कर मुख्यमंत्री बनने से उन्होंने लखीमपुर सीट छोड़ दी।सोनोवाल को अपने पसंद का उम्मीदवार लखीमपुर संसदीय सीट पर देना था,लेकिन हिमंत ने अपने लाबी के विधायक प्रदान बरुवा को टिकट दिलाने में कामायाबी हासिल की। वही बैठालांग्सू से भाजपा उम्मीदवार बने डा.मानसिंह रंग्पी भी हिमंत गुट के हैं।कांग्रेस में रहते हुए भी उन्होंने अपने लोगों को टिकट देकर जिताया और वे विधायक हरदम उनके साथ रहे।
पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता तरुण गोगोई को भी यह अंत में समझ में आया।मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भी यही भूल करने जा रहे हैं।भाजपा में भी वे ये खेल,खेल रहे हैं।इसके लिए वे अपने करीबी माने जानेवाले विधानसभा अध्यक्ष तथा सरभोग के भाजपा विधायक रंजीत दास को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने में भी जल्द ही सफल हो जाएंगे।इससे वे अपनी पकड़ मजबूत करेंगे।पर जिस दिन उन्हें लगेगा कि वे मुख्यमंत्री बनने में इस पार्टी में कामयाब नहीं होंगे उसी दिन अपने इन समर्थित विधायकों व सांसदों के साथ वे दूसरी पार्टी का रुख कर लेंगे।यही उनका अब तक का स्वभाव दिखा है।
हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के पक्ष में भाजपा इसलिए है क्योंकि वे इनके वोट बैंक हैं।असम में बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देकर बसा दिया गया तो भाजपा की राज्य में पकड़ मजबूत होगी।इसलिए वे इसके सबसे बड़े पैरोकार बने हैं।लेकिन एक समय था जब भाजपा व आरएसएस असम आंदोलन के प्रबल समर्थक थे।अब विदेशियों को ये हिंदू-मुस्लिम में विभाजित कर क्यों देख रहे हैं।कारण अपनी रोटी सेंकनी है।असम में वैसे भी जमीन का अभाव है।रोजगार के सीमित साधन हैं।ऐसे में बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देकर बसाने से समस्या जटिल होगी।हिमंत इससे समझकर भी नासमझी कर रहे हैं।क्योंकि उन्हें तो अपनी दुकान चलानी है।वह कैसे भी चले।

Friday, March 4, 2016

असमः बिहार के नतीजे दोहराएगी भाजपा


राजीव कुमार
असम में दो चरणों में 4 और 11 अप्रेल को विधानसभा चुनाव होंगे।चुनाव तिथियों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं।अब तक गठबंधन न करने का दम भरनेवाली क्षेत्रीय पार्टी असम गण परिषद(अगप)ने भाजपा के साथ ना-ना करते गठबंधन कर ही लिया।भाजपा जिस तरह विभिन्न पार्टियों से गठबंधन कर रही है उससे लगता है कि उसकी खुद की हालत पतली है।पहले वह खुद 84 प्लस सीट जीतने का दम भरती थी।
असम आंदोलन से जन्मी तथा दो बार सरकार बना चुकी अगप की हालत भी राज्य में अच्छी नहीं।राज्य की 126 सीटों में से भाजपा ने 24 सीटें अगप को दी है।राज्य में भाजपा के पांच विधायक हैं वहीं अगप के 2011 के विधानसभा चुनाव में 10 विधायक चुनकर आए थे।अलगापुर के अगप विधायक सहीदुल आलम चौधरी की मौत के बाद वहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने कब्जा जमाया तो अगप के विधायकों की संख्या घटकर 9 हो गई।बाद में अगप के चतिया विधानसभा के विधायक पद्म हजारिका और ढकुवाखाना के विधायक नव कुमार दलै भाजपा में शामिल हो गए।इस तरह अगप के विधायकों की संख्या घटकर सात हो गई।फिर भी अगप के विधायक भाजपा से ज्यादा हैं।लेकिन गठबंधन में भाजपा ने सीटें सिर्फ 24 दी है।इससे अगप की खराब स्थिति स्पष्ट होती है।
कभी भाजपा लोकसभा चुनाव में बिग ब्रदर की और विधानसभा में अगप के बिग ब्रदर होने की बात कहती थी,लेकिन इस बार केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गठबंधन का ऐलान करते हुए कहा कि अगप कनिष्ठ सहयोगी होगी।केंद्र में भाजपा नीत राजग की सरकार आने के बाद उसकी नीतियों की अगप खिलाफत करती रही है।लेकिन अब उसी के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरेगी।दोनों के गठबंधन को लेकर दोनों पार्टियों के तृणमूल कर्मी गुस्से में हैं।वैसे भी भाजपा ने जब से कांग्रेस के हिमंत विश्व शर्मा को लिया है,उसके दिन उलटे शुरू हो गए हैं।शर्मा की छवि बेदाग नहीं।जब वे कांग्रेस में थे तो यही भाजपा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाती थी।इसलिए कांग्रेस को भाजपा पर हमला करने का मौका मिल गया है।
लोकसभा चुनाव के दौरान हिमंत ने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा था कि गुजरात के पानी की पाइपों में खून बहता है।इस पर एक भाजपा नेता ने मामला भी किया।लेकिन हिमंत के भाजपा में शामिल होते ही यह मामला उठा लिया।हिमंत की राजनीति पार्टी के बजाए अपने को शक्तिशाली करने की होती है ताकि वे मुख्यमंत्री बन सकें।कांग्रेस में भी उन्होंने यह कोशिश की,लेकिन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की बेदाग और लोकप्रिय छवि के कारण कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें हटाना मंजूर नहीं किया।
उधर सारदा घोटाले में फंसते ही हिमंत ने भाजपा का दामन थाम लिया।हिमंत ने भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव से संबंध मधुर बनाए और इस तरह अपनी पहुंच अमित शाह तक बना ली। अब भाजपा ने हिमंत को अपने आंखों का तारा बना लिया।अब वे चुनाव परिचालना कमेटी के संयोजक हैं।उन्हीं की कही बातों के अनुसार भाजपा के दिल्ली के शीर्ष नेता चलते हैं,जिन्हें जमीनी सच्चाई पता नहीं।यदि भाजपा कांग्रेस के लोगों को न ले अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्वानंद सोनोवाल को लेकर अकेले दम पर चुनाव लड़ती तो बेहतर स्थिति में आती।हो सकता था कि वह सरकार नहीं बना पाती लेकिन राज्य में उसकी स्थिति बेहतर होती।क्योंकि सर्वानंद सोनोवाल एक बेदाग चेहरा है।लेकिन हिमंत के इशारों पर चलते हुए भाजपा की जड़ें ही कमजोर होगी।बोड़ो पीपुल्स फ्रंट के साथ समझौता बीटीएडी में भाजपा को खत्म कर देगा।भाजपा ने अगप के साथ गठबंधन कर कांग्रेस के हाथ में चुनाव प्रचार के लिए एक बड़ा हथियार सौंप दिया है।यह है गुप्त हत्या का।
जब राज्य में अगप की सरकार थी और केंद्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो राज्य में गुप्त हत्याएं हुई थी।पिछले तीन बार से लगातार कांग्रेस इसे एक बड़ा मुद्दा बनाती आई है।इस बार भी बनाएगी।जनता उस समय को याद कर कांप उठती है।वहीं कांग्रेस की स्थिति इस बार भी बेहतर हो गई है।हिमंत के पार्टी में रहने के दौरान विक्षुब्ध गतिविधियों का दौर था।उनके जाते ही यह थमा।कांग्रेस ने अपनी योजनाओं से लाभार्थियों की संख्या बहुत बनाई है।विकास के भी अनेक कार्य हुए हैं।अशांत असम आज नई ऊंचाइयों को छू रहा है।इसलिए जनता में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के प्रति आस्था और विश्वास का भाव दिख रहा है।लोग में उनकी छवि एक बेदाग व ऊर्जावान मुख्यमंत्री की है।इन सबके चलते वे चौथी बार बहुमत ले आएं तो भी हैरत की कोई बात नहीं होगी।
बिहार में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के हावी रहने और स्थानीय नेतृत्व को तवज्जो न देने के चलते हार हुई।इसके बाद उसने सीख के तौर पर असम में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम का एलान किया,लेकिन सर्वानंद की चलती न के बराबर है।पार्टी के शीर्ष नेता कांग्रेस से आए हिमंत के इशारे पर ज्यादा कदम उठा रहे हैं,जो कि बिहार के नतीजों को ही भाजपा के लिए दोहराएंगे।
(लेखक पूर्वोत्तर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
मोबाइल-9435049660

Wednesday, June 24, 2015

आंखन देखी: म्यांमार की खुली सीमा,घुसना आसान


राजीव कुमार,म्यांमार के अंदर से






म्यांमार फिलहाल सुर्खियों में है।मणिपुर के चंदेल में आतंकियों ने भारतीय सेना के 18 जवानों को मारा था। भारतीय सेना ने बदले की कार्रवाई में म्यांमार में घुसकर आतंकियों पर हमला किया।भाजपा नीत केंद्र सरकार प्रचार में आगे है।सेना भी सरकार को देखकर वैसे कदम अपना रही है।इस पर कुछ कहने के बजाए हम अरुणाचल प्रदेश से सटे म्यांमार के अंदर तक बेरोकटोक बिना कोई पासपोर्ट-वीजा लिए जाने के अनुभव को पाठकों के साथ साझा करेंगे।इससे हमारी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुलती है।साथ ही म्यांमार में आसानी से आ-जा सकने की बात भी उजागर होती है।
मैंने स्टीलवेल रोड देखने के लिए म्यांमार के पांगसू पास का दौरा किया।गुवाहाटी से 579 किमी का सफर कर हम असम के मार्घेरिटा,लिडू होते हुए अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले के जयरामपुर पहुंचे।यहां तक सड़क चौड़ी और बेहद खूबसूरत है।जयरामपुर में इनर लाइन परमिट चेक करा लेने के बाद हम नामपोंग होते हुए पांगसू पास के लिए रवाना हुए।सड़क संकरी।हरे भरे पहाड़ों के बीच से गाड़ी नीचे ऊपर उतरते हुए आगे बढ़ती है।बरसात के दिन होने के कारण पहाड़ से उतरी लाल मिट्टी से सड़क पूरी तरह कीचड़ में तब्दील हो गई है।छोटी गाड़ियों से इन इलाकों में जाना आसान नहीं।कहीं जगहों पर गाड़ी कीचड़ में फंसने के कारण धक्के मारने के लिए उतर कर कपड़े खराब करवाने पड़े।जयरामपुर से पांगसू पोस्ट तक असम रायफल्स के दो गेट हैं।इन पर कोई जवान हमें नहीं दिखा।
पांगसू पोस्ट में असम रायफल्स के कैंप के बाहर हमें अपने नामों को वहां रखे एक रजिस्टार में लिखा।वहां बताया गया कि रास्ता बेहद खराब है,छोटी गाडियों में म्यांमार सीमा तक जाना संभव नहीं होगा।हमारी गाड़ी वहीं छोड़कर हम पैदल आठ किमी पहाड़ी रास्ते पर चले।पांगसू पोस्ट से हम वहां सड़क के कार्यों में लगे एक डंपर पर सवार होकर म्यांमार की सीमा में जाकर उतर गए।पर हमारी कोई तलाशी नहीं हुई।म्यांमार सीमा के पास भी कोई सुरक्षा नजर नहीं आई।हमने सीमा को दर्शाते चिह्नों पर खड़े होकर फोटो खिंचवाए।शिलालेख है जहां एक तरफ भारत और दूसरी तरफ म्यांमार लिखा हुआ है।यह समुद्र तट से 3,727 फीट की ऊंचाई पर है।पाटकाई पहाड़ी के शिखर पर स्थित है पांगसू पास।हमें एक भी जवान गश्त लगाता हुआ यहां दिखाई नहीं पड़ा।
हम पैदल चलते हुए म्यांमार के पांगसू पास के बाहर दाखिल हुए।यह ऐतिहासिक स्टीलवेल रोड़ है।वहां बांस लगी एक गेट है।पर कोई तैनात नहीं।दूर-दूर तक कोई हलचल नहीं देखी।सब आराम फरमा रहे हैं।पता चला कि म्यांमार की सीमा के अंदर सेना है।बुलाने पर आए।लेकिन उनके पास न कोई हथियार दिखा और न ही हमें रोकने के कोई विरोध।वे आम जनता की तरह लग रहे थे।कोई ड्रेस नहीं पहन रखी थी।हम लोग विख्यात लेक आफ नो रिटर्न और वहां मौजूद बाजार और बुद्ध मंदिर में घूमते रहे।खूबसूरत लेक आफ नो रिटर्न के बारे में कहा जाता है कि यहां जो भी गया वह वापस लौटकर नहीं आया।दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एलाएड सेना के विमान यहां उतरकर नीचे समा गए थे।इस लेक की लंबाई 1.4 किमी है जबकि चौड़ाई 0.8 किमी है।
अपने को सेना का कमाडेंट बताने वाले मायतून ने हमसे एक-दो बार फोटो न लेने का अनुरोध किया।लेकिन हम कुछ फोटो ले चुके थे।उसने हमसे दुर्व्यवहार नहीं किया।ज्यादा अंदर जाने की बात पर उसने कहा कि मैंने अपने कैप्टेन को बुला भेजा है।वह आएगा तो आप और आगे जाने की बात कर सकते हैं।लेकिन अंग्रेजी व अन्य कोई भी भारतीय भाषा समझ न पाने के कारण उनका कैप्टन बाजार से एक नागामीज बोलनेवाली महिला को लेकर आया।उसने बताया कि हमारे पास अधिकृत कागज नहीं है,इसलिए ज्यादा अंदर नहीं जा सकते।हमें वापस लौट आने का अनुरोध कैप्टेन ने किया।बतातें चले कि अरुणाचल के पांगसू पास में हर साल 20 जनवरी से 22 जनवरी तक विंटर फेस्टिवल आयोजित होता है।इस दौरान म्यांमार वाले पांगसू पास से लोगों का आना-जाना खोल दिया जाता है।
हम म्यांमार के जिस इलाके में थे वह सीमाई गांव का इलाका है।भारतीय गांवों की तरह ही वहां के दृश्य नजर आए।चापाकल पर महिलाएं नहाती दिखी।पर इससे साफ होता है कि म्यांमार में घुसना और वहां के जंगलों में डेरा जमाकर रहना आतंकियों के लिए आसान है।इसलिए पूर्वोत्तर के ज्यादातर आतंकी यहां डेरा जमाए रहते हैं।प्रशिक्षण चलता है।अब शायद स्थितियां बदले।
स्टीलवेल रोड भारत में 61 किमी,म्यांमार में 1033 और चीन में 632 किमी पड़ती है।भारत के 61किमी में 30 किमी असम में और अरुणाचल प्रदेश में 31 किमी है।असम में पड़नेवाली स्टीलवेल सड़क की स्थिति बेहद अच्छी है।पर भारत की सीमा से म्यांमार के पांगसू पास तक सड़क का निर्माण दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुआ ही नहीं है।इसलिए गांव की टूटी-फूटी कच्ची सड़क जैसे हालात हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एलायड फोर्स के जाने के लिए असम के लिडू से चीन के कुनमिंग तक स्टीलवेल रोड का निर्माण हुआ था।अब इसे लुक ईस्ट पालिसी के तहत फिर खोले जाने की मांग उठ रही है।इससे दक्षिण एशिया के साथ पूर्वोत्तर का व्यापार वाणिज्य का मार्ग खुल जाएगा।पूर्वोत्तर के राज्यों का विकास होगा।पर इसके पहले यहां आतंकियों का सफाया जरुरी है।दुर्गम इलाके के कारण लोगों की आवाजाही कम होने के चलते इन इलाकों में आतंकियों का जमावड़ा है।सर्वविदित है कि अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग में नगा आतंकी संगठन एनएससीएन का दबदबा है।
मुझे डर सता रहा था कि पासपोर्ट -वीजा न होने के कारण कहीं विदेश की धरती पर जाने के कारण गिरफ्तार कर न लिया जाऊं।साथ ही पहाड़ से आतंकी हमला न हो जाए।पर कई घंटे म्यांमार में गुजारकर हम बिना कोई परेशानी के लौट आए।