Friday, March 21, 2008

मेघालय -संगमा की जीत,सोनिया की हार

राजीव कुमार
मेघालय में दस दिनी डी डी लपांग की कांग्रेस सरकार का गिरना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए एक बड़ा झटका है।कारण एनसीपी के नेता पी ए संगमा ने एकसमय सोनिया के विदेशी मूल को मुद्दा बनाया था और कांग्रेस छोड़ दी थी।आज भी वे सोनिया के खिलाफ हैं यह बात उन्होंने मेघालय में कांग्रेस की सरकार न बनने देकर स्पष्ट कर दिया है।
साठ सदस्यीय मेघालय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को 25 सीटें मिली।वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।एनसीपी को सिर्फ 14 सीटें मिली।फिर भी संगमा किंगमेकर बने।राज्यपाल एस एस सिद्दू ने बड़ी पार्टी के रुप में कांग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता दिया।लपांग ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।राज्यपाल ने लपांग को बहुमत साबित करने के लिए दस दिन का समय दिया।कांग्रेस के पास तीन निर्दलीय थे।इस तरह कांगरेस बहुमत से तीन सीट दूर 28 के आंकड़े पर पहुंच चुकी थी।कांग्रेस को उम्मीद थी कि तीन विधायक जुटाना उसके लिए कोई मुशि्कल नहीं होगी।पर संगमा ने अपनी समझबूझ से कांग्रेस को पटकनी दे दी।
कांग्रेस 19 मार्च की सुबह बहुमत साबित करने के चंद घंटे पहले तक सोचती रही कि तीन विधायक जुट जाएंगे।इसके लिए कांग्रेस के जोड़-तोड़ में माहिर रथी-महारथी कोशिश में लगे रहे।असम के स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा इस काम के महारथी माने जाते हैं।वे लपांग के शपथ लेने और बहुमत साबित करने के पहले शिलांग में डेरा डाले बैठे रहे।लेकिन तीन निर्दलीय विधायकों को कांग्रेस के पाले में कर पाने में विफल रहे।संगमा ने चुनाव नतीजों के आने के साथ ही मेघालय प्रगतिशील गठबंधन(एमपीए) बनाकर बाजी मार ली।इसमें पूर्व की कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल यूनाईटेड डेमोकेर्टिक पार्टी(यूडीपी) और छोटी पार्टियों को गठबंधन में शामिल कर लिया।खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाए संगमा ने यूडीपी के डोनकुपर राय को पहले मुख्यमंत्री बनाया।
संगमा ने सोनिया गांधी को नीचा दिखाने के लिए ही फिलहाल मुख्यमंत्री न बन कांग्रेस को पटकनी दी।यह एक तरह से श्रीमती गांधी के त्याग की तरह है, जब उन्होंने कांग्रेस की केंद में सरकार बनने देने के लिए खुद प्रधानमंत्री पद त्याग दिया।संगमा इसे छिपाते भी नहीं है।वे कहते हैं,प्रदेश कांग्रेस में मेरा कोई दुश्मन नहीं है।पर श्रीमती गांधी के साथ मेरी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है।कांग्रेस ने संगमा के गठबंधन पर पहले टिप्पणी की थी कि गठबंधन नवजात शिशु की मौत मर गया।पर जब बहुमत न होने की बजह से लपांग ने इस्तीफा दिया तो संगमा कांग्रेस पर पलटवार करने से नहीं चुके।उन्होंने कहा कि कांग्रेस नीत गठबंधन का आशानुरुप गर्भपात हो गया है।
संगमा ने भले ही दस दिन की लपांग नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार को बहुमत के अभाव में आगे नहीं चलने दिया हो पर एमपीए गठबंधन को ठीक तरह ले जाने में उन्हें भी अनेक पापड़ बेलने होंगे।कारण गठबंधन में शामिल निर्दलीय और छोटी पार्टियों के विधायक कभी भी नाराज होकर पाला बदल सकते हैं।इसलिए मेघालय में आनेवाले पांच सालों में यह सरकार स्थिर सरकार होगी यह आशा नहीं की जा सकती।दल-बदल कानून के अस्तित्व में आने के पहले 1998 और2003 के बीच राज्य में छह सरकार आई।जबकि इसके बाद के पांच साल में कांग्रेस नीत गठबंधन की सरकार रही लेकिन तीन बार मुख्यमंत्री बदले।मेघालय गठन के बाद पहली सरकार को छोड़ दें तो हर बार राज्य में गठबंधन सरकार बनी है।
दो दशक बाद राज्य की राजनीति में लौटे संगमा ने इस बार खुद को चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री के रुप में पेश किया था।साथ ही अपने दो बेटों को दो सीटों पर चुनाव लड़वाया।वे जीते भी।इसमें से एक को मंत्री भी बना दिया।सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठानेवाले संगमा अब राजनीति में खुद परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।अब आनेवाले समय में वे गठबंधन सरकार चलाकर सफल होते हैं और मेघालय का मतदाता उनके परिवारवाद को मानता है या नहीं,यह देखनेवाली बात होगी।इसी पर उनका राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के विशेषज्ञ हैं)
लेखक का पता-राजीव कुमार,
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