Tuesday, May 11, 2010

खत्म हो रही है राष्ट्रीयता की भावना

राजीव कुमार

देश के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना में कमी आई है।वे काफी संकुचित सोचने लगे हैं।यही वजह है कि अलगाववाद पनपता है और हिंसक गतिविधियां होती है।उन्हें सिर्फ अपने आस-पास की चिंता है,न कि पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर के रखने की।
नगा आतंकी संगठन एनएससीएन(आईएम) के महासचिव टी मुइवा ने अपने मणिपुर के जन्मस्थान का दौरा करने की बात केंद्र से कही।केंद्र ने इस पर हरी झंडी दिखा दी।लेकिन मणिपुर की सरकार को इस पर आपत्ति है।उनका मानना है कि मुइवा के दौरे से राज्य में हिंसा होगी।स्थानीय लोगों और सरकार को लगता है कि मुइवा के दौरे से मणिपुर के विखंडित होने का खतरा है।इसलिए मणिपुर सरकार ने मुइवा के घुसने पर रोक लगा दी।माओ में मुइवा का काफिला रुक गया।यह मुइवा के मणिपुर में घुसने का प्रवेश द्वार था।स्थिति को विकट देखते हुए केंद्र सरकार ने मुइवा को यात्रा स्थगित करने का अनुरोध किया।किंतु इस बीच माओ में सुरक्षा बलों के हाथों दो एनएससीएन समर्थक मारे गए।मुइवा को मणिपुर में न घुसने देने और दो समर्थकों के मारे जाने के विरोध में एनएससीएन समर्थकों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 39 अवरुद्ध कर दिया।इसके चलते मणिपुर में अत्यवश्कीय सामग्री का संकट पैदा हो गया।मणिपुर के नौ नगा विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।इससे साफ हो गया कि हम संकीर्ण विचारधारा के हो गए हैं।

केंद्र जहां नगा समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत है,वहीं वह इससे उत्पन्न होनेवाली स्थितियों को लेकर चिंतित नहीं।जब एनएससीएन के साथ संघर्षविराम का दायरा मणिपुर तक किया गया था तब मणिपुर जल उठा था।इसलिए इस बार मुइवा को उनके जन्मस्थल जाने की अनुमति देने के पहले केंद्र को सोचना चाहिए था।
एनएससीएन वृहत्तर नगालैंड की मांग कर रहा है।इसमें असम,अरुणाचल और मणिपुर के इलाके भी शामिल हैं।ऐसे में मुइवा अपने समर्थकों के हुजूम के साथ अपने जन्मस्थल जाएंगे तो मणिपुर के लोगों का शंकित होना स्वाभाविक है।मणिपुर के लोग शंका में हिंसा करेंगे तो प्रदेश सरकार का भी शंकित होना लाजिमी है।पहले के आधार पर मणिपुर के मुख्यमंत्री ओ इबोबी ने एलान किया कि वे मुइवा को राज्य में नहीं घुसने नहीं देंगे।दिल्ली की नींद तब टूटी और उसने इबोबी को दिल्ली बुलाया।पर वहां भी इबोबी अपनी पार्टी की सरकार की बात भी मानने को तैयार नहीं हुए।अब भी गतिरोध बना हुआ है।
इस गतिरोध के कारण मणिपुर के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।राज्य में पेट्रोल,डीजल,आक्सीजन और जीवन रक्षक दवाइयों का संकट पैदा हो गया है।नगालैंड के पुलिस महानिदेशक ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक से कहा है कि जब तक स्थिति में सुधार नहीं हो जाता तब तक मणिपुर के वाहनों को नगालैंड से न गुजरने दिया जाए।मणिपुर सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की ताकि सुरक्षा के बीच वाहन मणिपुर आ सकें।बात यही नहीं खत्म हो जाती।नगालैंड की कैबिनेट ने इबोबी सरकार की मुइवा को मणिपुर में घुसने से रोकने के कारण निंदा की तो मणिपुर कहां पीछे रहता।मणिपुर सरकार ने भी कहा कि नगालैंड सरकार उसके आंतरिक कामकाज में हस्तक्षेप कर रही है।
यह कड़वाहट इस स्तर तक पहुंच गई है जैसे यह एक देश का मसला न होकर दूसरे देश के साथ विवाद का मसला हो।राजनेताओं के अपनी रोटी सेंकने के चक्कर में देश को इस तरह टुकड़ों में बांट दिया कि अब लोग इनसे ऊपर नहीं उठ पाते हैं।एक लड़का एक जिले से दूसरे में सरकारी नौकरी पाता है तो बवाल मचता है।मुंबई में उत्तर भारत के लोग काम के लिए पहुंचते हैं तो नवनिर्माण सेना को आपत्ति होती है।वह इनसे मारपीट करती है और चले जाने को कहती है।पूर्वोत्तर में हालत इससे भिन्न नहीं।
देश के लोगों को इस संकीर्णता से निकलने की जरुरत है।यदि नहीं निकले तो एक दिन ऐसा आएगा जब हम अपने देश में बेगाने होंगे।सिर्फ हमें अपने इलाके में सिमट कर रह जाना पड़ेगा।जब हम आधुनिकता की सभी सुविधाएं इस्तेमाल कर रहे हैं तब इस संकीर्ण दायरे में रहना यही साबित करेगा कि हम अब भी सभ्य नहीं हुए हैं।समय तेजी के साथ बदल रहा है।हमें भी इसके साथ-साथ कदम बढ़ाते हुए आगे चलना चाहिए ताकि हम भी प्रगति की राह पर चल सकें।छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ना-झगड़ना अच्छी बात नहीं।
मणिपुर में देश के सबसे ज्यादा आतंकी संगठन है।वहां हिंदी सिनेमा दिखाने पर पाबंदी है।आतंकी समानातंर सरकार चलाते हैं।पड़ोसी नगालैंड में भी हालत कुछ ऐसे ही हैं।वहां एनएससीएन की समानातंर सरकार चलती है।इनसे आम आदमी का भला नहीं होता।चंद नेताओं और आतंकी संगठन के नेता अपना पाकेट भरते हैं।आम आदमी तो अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य है।इसलिए उसे ही इनके खिलाफ कमर कसनी होगी।नहीं तो राजनेता और आतंकी गुटों के नेता इनके खून की होली खेलते रहेंगे।(लेखक पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

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