Sunday, August 26, 2012

असम हिंसाःवजह लोभ व भ्रष्टाचार

राजीव कुमार

लोभ व भ्रष्टाचार जब तक रहेंगे देश में विशेषकर असम में शांति नहीं होगी।लोभ है तो भ्रष्टाचार होगा।भ्रष्टाचार होगा तो संपूर्ण विकास का फायदा लोगों तक नहीं पहुंचेगा।इसलिए देश में लोगों के मन से लोभ पूरी तरह खत्म करना होगा।यह खत्म होने के बाद भ्रष्टाचार नहीं होगा।भ्रष्टाचार नहीं होगा तो गलत कार्य नहीं होंगे।सबको बराबर अपना हक मिलेगा।
असम में चल रही हिंसा की गहराई से पड़ताल करने के बाद मुझे यही लगता है।राजनेता इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं।कोई इनके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ को वजह मानता है तो कोई इलाके में मौजूद अवैध हथियारों को इनकी वजह बता रहा है।लेकिन इन सबके पीछे लोभ व भ्रष्टाचार ही प्रमुख है।
आइये सीधे मुद्दों की तरफ आते हैं।पहला,भारत-बांग्लादेश सीमा से घुसपैठ होती है।चंद पैसों के एवज में देश में विदेशी घुस आते हैं।घुसने के बाद यहां फैले भ्रष्टाचार की वजह से ये लोग राशन कार्ड हासिल करते हैं,मतदाता सूची में नाम दर्ज कराते हैं और भारतीय दिखने के लिए जरुरी सारे कागजात हासिल कर लेते हैं।एक भारतीय ही चंद रुपयों के लिए इन्हें यह मुहैया कराता है।उसे देश की चिंता नहीं है।उसे तो सिर्फ अपनी चिंता है।उसे लोभ है।इसलिए वह भ्रष्टाचार के जरिए गलत को भी सही करता है।
दूसरा,केंद्र असम को विकास के लिए राशि मुहैया कराता है।लेकिन इसमें भ्रष्टाचार होता है।राजनेता वोट खरीदने के लिए अपना खर्च निकालने और अधिकारी धनवान बनने विकास की रकम का अधिकांश गटक जाते हैं।विकास सही नहीं होता।कुछ के पाकेटों तक सीमित रहता है।इससे समाज में भेद नजर आते हैं।कोई गरीब है तो गरीब ही रह जाता है और कोई आंखों के सामने लखपति से अरबपति बनता है।जब वंचित लोग इसे देखते हैं तो उन्हें गुस्सा आता है।उन्हें रोजगार नहीं मिलता।तब वे बंदूक उठाते हैं और उग्रवाद के रास्ते पर जाते हैं।हिंसा करते हैं।सरकार से बातचीत होती है और समझौता।हिंसा और लूट के बावजूद समझौते में इनके सारे खून माफ हो जाते हैं।फिर ये राजनेता बन जाते हैं।इनका राजनेतावाला धंधा शुरु हो जाता है।इस तरह क्रमवर सिलसिला चलता रहता है।यानी सब अपनी-अपनी दुकान चलाते हैं।तब फिर इस देश का भला कैसे होगा ?
असम के बोड़ोलैंड की हिसा पर अब आते हैं।छह साल के असम आंदोलन के बाद 1985 में असम समझौते हुआ।असम आंदोलन में शिरकत करनेवाले बोड़ो नेताओं को लगा कि असम आंदोलन के बाद असम समझौता कर असमिया युवक सत्ता पा सकते हैं तो हम क्यों नहीं ?क्योंकि बोड़ो नेता अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।इन्होंने तब अलग बोड़ो राज्य की मांग में आंदोलन शुरु कर दिया।हिंसा हुई और बोड़ो स्वशासी परिषद के लिए समझौता हुआ।आंदोलन करनेवाले नेता ही परिषद की सत्ता पर काबिज हुए।लेकिन धांधली के आरोप में परिषद को भंग किया गया तो इन लोगों ने फिर अलग संगठन बनाकर हिंसक आंदोलन किया।फिर केंद्र से समझौता हुआ और केंद्र ने परिषद की झोली में कुछ और डाल दिया।सत्ता आई।भ्रष्टाचार हुआ।एक धड़ा अपने को ठगा महसूस कर हिंसक कार्य जारी रखे हुए है।वह अलग संप्रभु राष्ट्र की मांग करता है ताकि समझौता होने पर इस बार राज्य मिल ही जाए।सभी बोड़ो नेता अलग राज्य की मांग का समर्थन करते हैं।
पर इस अलग बोड़ो राज्य में बाधा यह है कि उस इलाके में बोड़ो आबादी 50 प्रतिशत से कम है।इसलिए इनका मकसद उस इलाके में रह रहे गैर बोड़ो समुदाय को हटाना।इसके लिए अलग-अलग दंगे किए गए।कभी आदिवासियों को निशाना बनाया गया तो कभी मुसलमानों को।इसलिए अलग राज्य न दिए जाने तक यह निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया हो गई है।हिंसा पूरी तरह नहीं थमेगी।कारण विभिन्न गुटों में बंटे राजनेता अपनी-अपनी दुकान चलाने इन्हें उकसाकर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे।
यदि सरकार गंभीर होती और उसे पूरी तरह यह खात्मा करना होता तो पहला काम इलाके में जितने भी अवैध हथियार हैं उन्हें जब्त करना था।विभिन्न पक्ष इसकी मांग कर रहे हैं।लेकिन ऐसा अब तक नहीं किया गया है।क्यों ? यदि ऐसा किया गया तो समस्या खत्म होगी।समस्या खत्म होने पर इनकी दुकान नहीं चलेगी।सो,खून इनके लिए साधारण निर्दोष लोगों का बहता रहेगा।इससे इनको कोई फर्क नहीं पड़ता।

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