राजीव कुमार
असम की कांग्रेस-बीपीएफ गठबंधन सरकार अचानक प्रतिबंधित संगठन उल्फा के खिलाफ आक्रामक हो गई है।सिर्फ उल्फा ही नहीं,अन्य वार्ता में आने को इच्छुक आंतकी संगठनों के खिलाफ भी कठोर हुई है।लेकिन राज्य में पिछले सात सालों से सत्ता पर काबिज रहनेवाली मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नेतृत्ववाली सरकार को पहले इतना कठोर होते हुए कभी नहीं देखा गया था।
अब तक उसे उल्फा के इशारों पर ही चलते देखा गया था।पर अब वह उल्फा के लिए सतही स्तर पर कार्य करनेवाले लोगों के खिलाफ शिकंजा कस रही है।केंद्र के साथ वार्ता के लिए उल्फा द्वारा गठित नागिरक समिति पीपुल्स कंसलटेटिव ग्रुप(पीसीजी)के सदस्य लाचित बरदलै को चार महीने पहले गिरफ्तार किया जा चुका है।उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया है।अब पीसीजी के दूसरे सदस्य हिरण्य सैकिया को गिरफ्तार किया गया है।अब तक राज्य सरकार और उल्फा के बीच सैकिया एक महत्वपूर्ण कड़ी के रुप में कार्य करते आए थे।
जब उल्फा ने 33वें राष्ट्रीय खेलों के बहिष्कार का एलान किया तो सैकिया ने ही मध्यस्थ कर मामला सुलझाया और खेल शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित हुए।बाद में भारत-पाक एक दिवसीय मैच में भी दिक्कत न होने के लिए उल्फा से अखबारों में विज्ञापन देकर अपील की गई।यह भी सैकिया के सुझाव पर किया गया।खुद सैकिया ने बाद में इन सब का खुलासा किया है।सैकिया ने सरकार और उल्फा के बीच की वार्ता में भी अहम किरदार होने की बात कही है।संगठन के सेना प्रमुख परेश बरुवा के साथ होनेवाली बातों को मुख्यमंत्री तरुण गोगोई,स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्वशर्मा और पुलिस के आला अधिकारी तक पहुंचाने की बात का खुलासा सैकिया पहले कर चुका है।सैकिया के इस तरह के बयानों के बाद विपक्ष ने सरकार को घेरा।पर तब सरकार चुप रही।अब इसके काफी समय बाद सरकार ने सैकिया को गिरफ्तार किया है।
सवाल उठता है कि सरकार अब तक सौहार्दपूर्ण संबंध सैकिया से रखकर क्यों सोई हुई थी?विपक्ष के हमले से गिरती साख और केंद्र के दबाव के चलते गोगोई को यह कदम उठाना पड़ा है,यह कहें तो भी गलत नहीं होगा।एक संवाददाता सम्मेलन में गोगोई ने घोषणा की कि अब किसी आंतकी संगठन से तभी संघर्षविराम कर बातचीत की जाएगी जब वह हथियार डाल देगा,उसके सदस्य वार्ता पूरी होने तक निर्धारित शिविरों में रहेंगे और संविधान के दायरे में ही बातचीत की इच्छा जताएंगे।साथ ही बातचीत संगठन के शीर्ष नेताओं से सीधे होगी।जो संगठन इन बातों को नहीं स्वीकारेंगे उनसे न तो संघर्षविराम होगा और न भी अभियान में कोई ढील दी जाएगी।राज्य में आंतकवादी विरोधी अभियान संयुक्त कमान की कार्रवाई के तहत चल रहा है।इसके चेयरमैन खुद मुख्यमंत्री तरुण गोगोई हैं।गोगोई ने स्वंय कहा है कि पिछली संयुक्त कमान की बैठक में यह निर्णय लिया गया है।उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि यह निर्णय केंद्र के कहने पर लिया गया है।
अब तक केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संयुक्त प्रगतिशील सरकार राज्य की कांग्रेस-बीपीएफ सरकार के कामकाज पर धृतराष्ट्र की भूमिका में थी।पर अब राज्य के कांग्रेस मंत्रियों पर लग रहे आरोपों के बाद उसने इधर अपनी नजर दी है।इसके बाद गोगोई नेतृत्ववाली सरकार कठोर हुई है।आंतकवादी संगठन डिमा हालम दाउगा के जूवेल गुट ने उत्तर कछार जिले में कहर बरपाकर दो राष्ट्रीय परियोजनाओं का कार्य बुरी तरह प्रभावित किया।अचानक संगठन ने संघर्षविराम की इच्छा जताई तो सरकार ने इसका सकारत्मक जवाब देने के बजाए अभियान तेज करने का फैसला किया।डिमापुर के एक होटल में इसके प्रचार सचिव को गिरफ्तार किया गया।इन सबसे एक बात साफ हो गयी कि राजनीतिक इच्छशक्ति हो तो आंतकवादियों से मुकाबला करना मुश्किल नहीं है।
पर गोगोई सरकार आंतकवादियों से मधुर संबंध बनाए रखने के लिए अब तक कोई कार्रवाई करने से बचती रही है।इसका फायदा इन्हें विभिन्न चुनाव में मिलता रहा है।लेकिन इन संबंधों के चलते विपक्ष ने कांग्रेस पर हमला तेज किया तो उसकी स्थिति खराब होने लगी।राज्य के पूर्व शिक्षामंत्री रिपुन बोरा एक हत्या के मामले में लग रहे आरोपों से बचने के लिए सीबीआई को घूस देते रंगे हाथों दिल्ली में गिरफ्तार हुए।इसके बाद राज्य के अन्य मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार,हत्या और आंतकवादियों से संबंध होने के आरोप लगने लगे हैं।विपक्षी पार्टियां राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डा.हिमंत विश्वशर्मा का संबंध उल्फा से होने का आरोप लगा रही है।इस आरोप पर डा.शर्मा को मंत्री पद से हटाए जाने की मांग उठ रही है।प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष इसकी शिकायत की गई है।इन सबके चलते केंद्र ने राज्य सरकार को कठोर होने का निर्देश दिया है।केंद्र के निर्देश के बाद गोगोई के पास सख्त होने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचा था।इसलिए आंतकी संगठनों के खिलाफ सरकार कठोर हुई है।
सरकार के कठोर होने के कारण आंतकवादियों के आत्मसमर्पण की संख्या में इजाफा हुआ है।उल्फा की शक्तिशाली 28वीं बटालियन की ए व सी कंपनी ने एकतरफा संघर्षविराम का एलान कर बातचीत की इच्छा जताई है।तेजपुर स्थित चतुर्थ कोर के जीओसी ले.ज.बी एस जसवाल ने इस लेखक से बातचीत में कहा कि हमने वार्ता के लिए उपयुक्त माहौल बनाया है।कारण भारी संख्या में आंतकियों ने आत्मसमर्पण किया है।अब सरकार की बारी है कि वह कैसे वार्ता करती है।जसवाल का कहना था कि आंतकियों को सतह पर रहकर जो मदद कर रहे हैं उन्हें कमजोर कर दिया गया तो हमें अभियान में और ज्यादा सफलता मिलेगी।
सात साल बाद सरकार के कड़े रुख से जहां आंतकियों के हौसले पस्त होंगे वहीं लोगों में आशा की किरण जगी है।पर कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार कब तक इस तरह का कड़ा रुख रखती है यह भी देखनेवाली बात होगी।कारण सामने लोकसभा चुनाव है।उल्फा ने कांग्रेसियों को निशाना बनाना शुरु कर दिया तो अपनी हार की आशंका में वह अपने इस अभियान में ढीली भी पड़ सकती है।पर यह ढिलाई राज्य व देश के हित में नहीं होगी।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)
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