Wednesday, November 2, 2016
सुविधावादी राजनेता हैं हिमंत
आरएसएस की गुड बुक के लिए बन रहे हैं कट्टर हिंदू
राजीव कुमार
असम की भाजपानीत सरकार में मंत्री डा.हिमंत विश्व शर्मा आरएसएस की गुड बुक में शामिल होकर मुख्यमंत्री तक की कुर्सी हासिल करने की दौड़ में हैं।इसलिए वे अंट-शंट बोले जा रहे हैं।अपनी दूसरी किताब के विमोचन पर उन्होंने कह दिया कि भाजपा धर्म के आधार पर राजनीति करती है।यह बुरी बात नहीं है।देश का बंटवारा भी धर्म के आधार पर हुआ था।
डा.शर्मा यह नहीं थमते।वे कहते हैं कि राज्य के 33 जिलों में से 11 जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं।2021 की जनगणना में और कुछ जिलों में हम अल्पसंख्यक हो जाएंगे।हमें यह देखना है कि एक लाख लोग हमारे शत्रु हैं या 55 लाख लोग शत्रु हैं।एक लाख वे उन लोगों को बता रहे हैं जो बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं जबकि 55 लाख मुस्लमान बता रहे हैं।एक व्यक्ति संविधान की शपथ लेकर मंत्री बन इस तरह की बात कहें तो उसे मंत्री पद पर रहने का अधिकार नहीं है।
हिमंत सुविधावादी राजनेता रहे हैं।नीति व आदर्श नाम की कोई चीज उनमें दिखाई नहीं देती।वे शुरु में अखिल असम छात्र संघ(आसू)में थे।आसू ने छह साल तक असम आंदोलन किया था।आसू ने राज्य से विदेशी लोगों को खदेड़ने के लिए आंदोलन किया था।1985 में केंद्र के साथ असम समझौता हुआ।इस समझौते में स्पष्ट उल्लेख है कि 25 मार्च 1971 के बाद आए विदेशियों को राज्य से जाना होगा।अचानक हिमंत कांग्रेस में आए।2001 में तरुण गोगोई के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो वे मंत्री बने।गोगोई के तीनों कार्यकाल में वे मंत्री रहे।चौदह साल गोगोई के साथ मंत्री रहने के बाद अचानक उनमें मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जागी।वे विक्षुब्ध गतिविधियां करने लगे।कांग्रेस हाईकमान ने झुकने से इनकार कर दिया तो हिमंत ने भाजपा का दामन थाम लिया।भाजपा तब केंद्र में आ चुकी थी।राज्य में उसके पास कद्दावर नेताओं को अभाव था।सो,भाजपा ने हिमंत को सिर आंखों पर बैठाया।
कांग्रेस में रहते हुए वे भाजपा पर जमकर प्रहार करते थे।लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान तो उन्होंने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि गुजरात में पानी की पाइपों से मुसलमानों का खून बहता है।लेकिन अब वे अपने को भाजपा का सबसे हितैषी जाहिर करने में लगे हैं।चतुर हिमंत यह भलीभांति जानते हैं कि आरएसएस को खुश कर दिया तो भाजपा में उन्हें बड़ा पद पाने से कोई रोक नहीं सकता।इसलिए वे अब कट्टर हिंदू बनने का ढोंग कर इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं।इस कार्य में उनके गाड फादर बने हैं राम माधव।राम माधव की पृष्ठभूमि आरएसएस की रही है और वहीं से उनकी एंट्री भाजपा में हुई है।
राम माधव ने हिमंत को जिस अंदाज में आगे बढ़ाया है,उसी अंदाज में भाजपा के पुराने कर्मी आहत हुए है।राज्य में लखीमपुर संसदीय सीट और बैठालांग्सू विधानसभा सीट का चुनाव होना है।यहां भी उम्मीदवारों के चयन में हिमंत की चली है।उत्तर लखीमपुर संसदीय सीट से सर्वानंद सोनोवाल सांसद थे।लेकिन माजुली विधानसभा सीट से जीत हासिल कर मुख्यमंत्री बनने से उन्होंने लखीमपुर सीट छोड़ दी।सोनोवाल को अपने पसंद का उम्मीदवार लखीमपुर संसदीय सीट पर देना था,लेकिन हिमंत ने अपने लाबी के विधायक प्रदान बरुवा को टिकट दिलाने में कामायाबी हासिल की। वही बैठालांग्सू से भाजपा उम्मीदवार बने डा.मानसिंह रंग्पी भी हिमंत गुट के हैं।कांग्रेस में रहते हुए भी उन्होंने अपने लोगों को टिकट देकर जिताया और वे विधायक हरदम उनके साथ रहे।
पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता तरुण गोगोई को भी यह अंत में समझ में आया।मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भी यही भूल करने जा रहे हैं।भाजपा में भी वे ये खेल,खेल रहे हैं।इसके लिए वे अपने करीबी माने जानेवाले विधानसभा अध्यक्ष तथा सरभोग के भाजपा विधायक रंजीत दास को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने में भी जल्द ही सफल हो जाएंगे।इससे वे अपनी पकड़ मजबूत करेंगे।पर जिस दिन उन्हें लगेगा कि वे मुख्यमंत्री बनने में इस पार्टी में कामयाब नहीं होंगे उसी दिन अपने इन समर्थित विधायकों व सांसदों के साथ वे दूसरी पार्टी का रुख कर लेंगे।यही उनका अब तक का स्वभाव दिखा है।
हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के पक्ष में भाजपा इसलिए है क्योंकि वे इनके वोट बैंक हैं।असम में बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देकर बसा दिया गया तो भाजपा की राज्य में पकड़ मजबूत होगी।इसलिए वे इसके सबसे बड़े पैरोकार बने हैं।लेकिन एक समय था जब भाजपा व आरएसएस असम आंदोलन के प्रबल समर्थक थे।अब विदेशियों को ये हिंदू-मुस्लिम में विभाजित कर क्यों देख रहे हैं।कारण अपनी रोटी सेंकनी है।असम में वैसे भी जमीन का अभाव है।रोजगार के सीमित साधन हैं।ऐसे में बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देकर बसाने से समस्या जटिल होगी।हिमंत इससे समझकर भी नासमझी कर रहे हैं।क्योंकि उन्हें तो अपनी दुकान चलानी है।वह कैसे भी चले।
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