Sunday, September 29, 2019

एनआरसीःउन्नीस लाख लोगों को विदेशी कहना सही नहीं

राजीब कुमार सिंघी

असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी(एनआरसी) की अंतिम सूची शनिवार को प्रकाशित की गई।इसमें कुल आवेदनकर्तातओं से लगभग 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हुए हैं।इन 19 लाख को विदेशी कहना सही नहीं होगा।खुद गृह मंत्रालय ने कहा है कि जिनके नाम नहीं होंगे वे विदेशी नहीं होंगे।सही है।विदेशी न्यायाधिकरण ही किसी को विदेशी करार दे सकता है।जिनके नाम नहीं होंगे वे विदेशी न्यायाधिकरण में 120 दिनों में अपील कर सकेंगे।इसके लिए अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरण बनाए गए हैं।इसके बाद ही बाकी की तस्वीर साफ होगी।
उन्नीस लाख लोगों में से अनेक देश के अन्य राज्यों के लोग हैं।असम के भी लोग हैं।लेकिन कागजातों को दे नहीं पाने के चलते उन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया है।अनेक के नामों में गड़बड़ है।किसी कागजात में नाम कुछ है तो किसी में कुछ।इसलिए 19 लाख लोग विदेशी नहीं हो सकते।जो विदेशी होगा वह तो पकड़े जाने के डर से इन सब झमले में पड़ेगा ही नहीं।वह तो देश के किसी अन्य हिस्से में चला जाएगा,जहां फिलहाल एनआरसी की प्रक्रिया नहीं है।ऐसे में असम में एनआरसी का अद्यतन करना एक निरर्थक प्रयास है।जब तक पूरे देश में एनआरसी नहीं होगी तब तक यह निरर्थक ही होगी।
असम में विदेशियों को खदेड़ने के लिए छह साल का असम आंदोलन चला।1985 में असम समझौता हुआ।लेकिन 34 साल बाद भी इस समस्या का हल नहीं निकला।एनआरसी सुप्रीम कोर्ट के देखरेख में हुई।फिर भी असम आंदोलन करनेवाला अखिल असम छात्र संघ(आसू),भाजपा,सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी के लिए आवेदन करनेवाला असम पब्लिक वर्क्स(एपीडब्ल्यू) एनआरसी की अंतिम सूची से संतुष्ट नहीं हैं।सबको लगता है कि जितने नाम छूटे हैं वह संख्या कम है।जब दूसरे प्रारुप में 40 लाख लोगों के नाम नहीं आए तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इन्हें बांग्लादेशी करार दिया था।लेकिन वास्तव में सभी बांग्लादेशी नहीं थे।इसमें से आधे अंतिम सूची में जगह बनाने में सफल हो गए।लेकिन तब भी राजनीति हो रही थी और अंतिम सूची आने के बाद भी राजनीति ही हो रही है।
एनआरसी की सूची को गलत बतानेवाले पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत हितेश्वर सैकिया,तत्कालील केंद्रीय गृह मंत्री दिवंगत इंद्रजीत गुप्त के दिए गए बयानों का जिक्र कर कहते हैं यह संख्या कम है।असम विधानसभा में दिवंगत सैकिया ने एलान किया था कि राज्य में 30 लाख बांग्लादेशी हैं।यह बयान आज से लगभग तीस साल पहले आया था।पर हंगामा मचने के बाद उन्होंने बयान वापस ले लिया था।वहीं केंद्रीय गृहमंत्री दिवंगत इंद्रजीत गुप्त ने कहा था कि पचास लाख बांग्लादेशी हैं।असम के पूर्व राज्यपाल एस के सिन्हा ने भी अपनी एक रिपोर्ट में राज्य में 60 लाख बांग्लादेशी रहने की बात कही थी।अब विरोध करनेवाले संगठनों का कहना है कि इतने साल बाद ये बांग्लादेशी बढ़ने के बजाए कैसे कम गए।लेकिन कोई भी बांग्लादेशियों का आंकड़ा पुख्ता कैसे दे सकता है।यह पता कैसे चलेगा।जब तक शिनाख्त नहीं होगी तो आंकड़ा कैसे आएगा।चर में रहनेवाले बांग्लाभाषी मुसलमानों को बिना कोई आधार के बांग्लादेशी कह देना राजनीति के सिवाय और कुछ नहीं है।एनआरसी में जिसके कागजात सही नहीं थे चाहे वह भारतीय ही क्यों न हो,नाम नहीं आए।
राष्ट्रीय नागरिक पंजी के राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला ने कहा है कि एनआरसी के अद्यतन में सर्वोत्तम वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया है।हाजेला ने यह बात सचेतन नागरिक मंच के आरोपों का जवाब देने के लिए लिखे पत्र में कही है।मंच भाजपा समर्थित संगठन है।इसने ही राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर पुनःसत्यापन की मांग की थी।केंद्र और राज्य सरकार ने भी मंच के ज्ञापन के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पुनःसत्यापन का अनुरोध किया था जिसे अदालत ने ठुकरा दिया था।सुप्रीम कोर्ट में एनआरसी का मामला प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई देख रहे हैं।वे काफी सख्त हैं।निश्चय ही उन्होंने हाजेला द्वारा दिए गए तथ्यों को देखकर ही कोई फैसला किया है।
हाजेला ने आगे कहा कि एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए आवेदनकर्ताओँ ने जो कागजात दिए हैं उनका सत्यापन वैज्ञानिक तरीके से किया गया है। अत्याधुनिक सूचना प्रौद्योगिक का इस्तेमाल न करने से छह करोड़ कागजातों का सत्यापन करना आसान नहीं था।मंच ने एनआरसी में काफी विदेशियों के नाम शामिल होने की बात कही,लेकिन आपत्तियां दर्ज कराने के लिए जो कानूनी प्रावधान थे,उनका इस्तेमाल मंच ने नहीं किया।एनआरसी कार्यालय के पास ऐसा कोई रिकार्ड नहीं है जिससे पता चलता हो कि मंच ने एनआरसी के प्रारुप में गलत नाम शामिल होने को लेकर आपत्ति दर्ज की हो।आरोप लगानेवाले तथ्यों को सही ढंग से नहीं रख रहे हैं।बिना तथ्य ही सीधे आरोप लगाए जा रहे हैं।
मंच अपने ज्ञापन में कोई विशेष आरोप देने में सफल नहीं हुआ।मंच ने सिर्फ मोरिगांव के एक स्कूल शिक्षक खाइरुल इस्लाम का जिक्र किया जो एनआरसी के हाथ से लिखनेवाले प्रारुप में कुछ समय के लिए था।इसके कुछ दिनों बाद हाथ से प्रारुप लिखने की पूरी प्रक्रिया को ही बंद कर दी गई। मंच ने अपने ज्ञापन में कुछ एनआरसी के एप्लीकेशन रिसीप्ट (एआरएन) नंबरों का उल्लेख किया ,पर वास्तव में उस तरह के कोई एआरएन नंबर है ही नहीं।मंच ने नंबर के तौर पर पांच अंक के एआरएन नंबर लिखे हैं जबकि एआरएन नंबर 21 अंकों के होते हैं।मंच ने अपने ज्ञापन में स्वदेशी लोगों के नाम एनआरसी के प्रारुप में न रहने की बात कही है।इस पर भी वह कोई उदाहरण पेश नहीं कर पाया है। राष्ट्रपति को सौंपे गए ज्ञापन में 25 लाख लोगों के हस्ताक्षर रहने की बात कही है।पर वास्तव में ज्ञापन में 1.7 लाख लोगों के ही हस्ताक्षर थे।
मालूम हो कि राज्य एनआरसी समन्वयक के कार्यालय की स्थापना 2013 में की गई थी।पर सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में एनआरसी के अद्यतन का कार्य सही अर्थों में फरवरी 2015 में लीगेसी डाटा के प्रकाशन के साथ ही हुआ।उसी साल मार्च से अगस्त तक नागरिकों से आवेदन मांगे गए।3.29 करोड़ लोगों ने एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए आवेदन किया।उसी साल सितंबर में फील्ड वैरिफिकेशन शुरु हुआ।इसके बाद फैमिली ट्री वैरिफिकेशन किया गया।फैमिली ट्री वैरिफिकेशन पूरी प्रक्रिया में गेम चेंजर का काम कर गया।इस प्रक्रिया के दौरान ही ज्यादातर अनियमितताएं पकड़ में आई।पहला प्रारुप 31 दिसंबर 2017 की मध्यरात्रि को प्रकाशित किया गया।अंतिम प्रारुप 30 जून 2018 को 40 लाख आवेदनकर्ताओं के नाम के बिना प्रकाशित हुआ।पिछले साल 25 सितबंर को ही दावों और आपत्तियों को स्वीकारने की प्रक्रिया शुरु हुई।मजे की बात है कि एनआरसी के अंतिम प्रारुप में नाम न रहनेवाले 40 लाख लोगों में से चार लाख ने फिर से दावा ही नहीं किया जबकि दो लाख शिकायतें दर्ज हुई।बाद में एनआरसी के प्रारुपों में नाम रहनेवाले 1.02 लाख लोगों के नाम हटाए गए।वैरिफिकेशन के दौरान यह बात सामने आई कि इनके नाम एनआरसी सूची में शामिल होने के योग्य नहीं थे।
अब एनआरसी की अंतिम सूची के साथ ही फिर आलोचनाएं शुरु हो गई है।विदेशी-विदेशी का खेल शुरु हो गया है।राजनीति शुरु हो गई है।जैसे यह अंतहीन प्रक्रिया है।पर पूरे देश में एनआरसी करने से ही सारी समस्याएं खत्म होंगी और सही अर्थों में पता चलेगा कि भारत में कितने लोग भारतीय नागरिक न होकर विदेशी हैं।तब तक इस तरह का खेल चलता रहेगा और कुछ संगठन और पार्टियां अपनी-अपनी रोटी सेंकती रहेंगी।
असम में हर काम का विरोध करने का जैसे एक रिवाज है।बिना कोई ठोस आधार के सिर्फ भावनाओं में बहते रहते हैं और आंदोलन की फैक्ट्रियां चलाते रहते हैं।इससे राज्य को ही नुकसान हो रहा है।चालीस साल से विदेशियों को खदेड़ने के आंदोलन के बाद एनआरसी आई तो भी समस्या खत्म नही हुई।होगी भी नहीं।क्योंकि इन सब को अपनी-अपनी दुकान चलानी है।पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का एक बयान बेहद याद आता है।असम में मतदाता परिचय पत्र देने का आसू विरोध कर रहा था।उसका कहना था कि विदेशियों के हाथों में मतदाता परिचय पत्र होगा और वे भारतीय हो जाएंगे।जब एनआरसी होगी तभी मतदाता परिचय पत्र दिया जाए।यदि मुख्यमंत्री गोगोई आसू की इस मांग को मान लेते तो राज्य के लोगों के पास अब भी मतदाता परिचय पत्र नहीं होता।लेकिन गोगोई ने चतुराई की।लोगों से मतदाता सूची में फोटो लगाने की बात कहकर फोटो लिए और अचानक सबको मतदाता परिचय पत्र दे दिया गया।आसू का विरोध फुस्स हो गया।एनआरसी का विरोध भी कुछ ऐसा होनेवाला है।

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