Saturday, June 14, 2008

राजनीति में वंशवाद को बढ़ा रहे हैं संगमा

राजीव कुमार
दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है।लेकिन बात जब अपनी आती है तो व्यक्ति खुद इन सब को भूल देता है।इस तरह के ही शख्स हैं पूर्ण ए संगमा।संगमा ने लोकसभा का अध्यक्ष रहते हुए देशभर में अपनी एक छाप छोड़ी थी।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के कारण उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने का विरोध करते हुए संगमा ने कांग्रेस तक छोड़ दी।तब लोगों के मन में उनके प्रति और आदर का भाव आया।लगा कि संगमा आदर्श और नीति की राजनीति करते हैं।लेकिन इस साल उनका असली चेहरा सबके सामने आ गया।अपने साथ ही परिवार के तीन अन्य लोगों को उन्होंने राजनीति में उतार दिया।इस तरह वंशवाद की राजनीति को ही संगमा ने आगे बढ़ाया।
मेघालय में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान संगमा ने सांसद रहते हुए विधायक पद के लिए चुनाव लड़ा।अपने दो बेटों कनराड और जेम्स को भी विधायक पद के लिए उतारा।दोनों बेटों के साथ ही संगमा चुनाव जीत गए।विधायक पद पर विजयी होने के बाद उन्होंने तुरा संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया।नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) के किसी को उतारने के बजाए उन्होंने इस रिक्त सीट पर अपनी बेटी अगाथा को उतारा।अगाथा भारी मतों से जीती।संगमा नौ बार इस सीट से सांसद चुने गए हैं।इसमें कोई शक नहीं कि इस सीट पर उनकी पकड़ है।पर उच्च शिक्षित अगाथा दिल्ली के एक फार्म में कानूनी सलाहकार की नौकरी कर रही थी।लेकिन पिता ने तुरा सीट को अपनी जागिर बनाए रखने के लिए उसे भी राजनीति में खींच लिया।
संगमा की पत्नी सरोजेनी इसके खिलाफ है।वह इसके विरोध में थी।संगमा के परिवार में अब दो सदस्य ही राजनीति में आने बाकी हैं।इनमें एक उनकी पत्नी और दूसरी बड़ी बेटी क्रिस्टी।राजनीति में वंशवाद बढाए जाने की बात पर संगमा को गुस्सा आता है।वे गुस्से में सफाई देते हैं कि मैंने वंशवाद के शासन को प्रोत्साहन नहीं दिया है।मेरे बेटे और बेटियां विदेश में पढे लिखे हैं।अब हमारी जिम्मेवारी बनती है कि हम राज्य की बेहतरी के लिए अपना योगदान दें।हमें राजनीति में पढ़े लिखे लोगों की जरुरत है।
राजनीति में पढ़े लिखे अच्छे लोगों को आना चाहिए इससे हम भी दो राय नहीं रखते।लेकिन मेघालय में और पढ़े-लिखे लोग नहीं थे, इस बात को भी तो नहीं स्वीकारा जा सकता।संगमा अन्य को मौका देते तो उनका कद और बड़ा होता।फिलहाल मेघालय में डोनकूपर राय के नेतृत्व में जो सरकार चल रही है उसमें संगमा ही छ्दम मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे हैं।वैसे वे मेघालय योजना बोर्ड के चैयरमैन हैं।अपने दोनों बेटों को भी उन्होंने सरकार में महत्वपूर्ण पद दिलवाए हैं।बड़े बेटे कनराड के पास वित्त,पर्यटन,बिजली और कई अन्य महत्वपूर्ण विभाग हैं जबकि जेम्स गृह विभाग का संसदीय सचिव है।कुल मिलाकर मेघालय की राजनीति पर अपनी पूरी पकड़ संगमा रखना चाहते हैं।विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने कहा भी था कि दूसरे हमें छोड़कर जा सकते हैं लेकिन परिवार के सदस्य तो कम से कम धोखा नहीं देंगे।

मेघालय में सरकारें अस्थिर रही है।इसी डर के चलते संगमा अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में खींच लाए।वे किसी भी तरह राज्य की राजनीति अपने हाथ से खिसकने नहीं देना चाहते हैं।तुरा लोकसभा सीट के उपचुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियों ने इसे मु्द्दा बनाया।लेकिन उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी।वंशवाद के आरोप के बाद भारी मतों से जीतनेवाली अगाथा ने कहा कि जीत मैरिट के आधार पर हुई है।संगमा का इस पर कहना था कि मेरा प्रयास बच्चों को समान अवसर देने का है।जनता ने जो जनादेश दिया है उससे लगता है कि वे इन बात को तवज्जो नहीं देती है।यदि वंशवाद को मैं बढ़ाता तो मैं इन्हें आसानी से राज्यसभा में भेज सकता था।लेकिन मैंने इसके बजाए उन्हें सीधे चुनाव के जरिए जीतकर आने को कहा।चुनाव तो हर कोई व्यक्ति लड़ सकता है।
माना कि जनता ने संगमा और उनके परिवार के तीन सदस्यों को जनादेश दिया है,पर क्या नीति और आदर्शों की बात करनेवाले नेता से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने क्षुद्र हितों से ऊपर उठेंगे।संगमा को तो चाहिए था कि वे पार्टी के नए-नए युवक-युवतियों को प्रशिक्षित कर आगे लाते।तभी राजनीति के स्तर को ऊपर उठाया जा सकेगा।लेकिन संकीर्ण राजनीति में रहकर वंशवाद को बढ़ावा देनेवाले नेता से और क्या उम्मीद की जा सकती है।अब उन्होंने सोनिया के विदेशी मूल का होने का मुद्दा उठाने का नैतिक अधिकार खो दिया है।कारण उन्होंने राजनीति में वंशवाद को सबसे ज्यादा बढ़ाया है।जैन धर्मगुरु आचार्य तुलसी ने नारा दिया था-निज पर शासन,फिर अनुशासन।यही बात संगमा से कही जा सकती है।किसी पर कुछ लागू करने के पहले खुद उस पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए।तब कहीं जाकर दूसरों को नीति शिक्षा देनी चाहिए।
(लेखक गुवाहाटी स्थित वरिष्ठ पत्रकार व पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)

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