Friday, December 12, 2008

चुनाव:मिजोरम से है सीखने की जरुरत

मिजोरम देश का एक छोटा राज्य है।लेकिन विधानसभा चुनाव यहां जिस शांति और कम खर्च में होते हैं, उससे देश के अन्य राज्य को शिक्षा लेने की जरुरत है।न बाहुबली नेता और न पैसा का खेल।लोग सही अर्थों में अपने मताधिकार का निडर होकर प्रयोग करते हैं और इससे जो निकलकर आता है वह राज्य की बेहतरी के लिए होता है।यही वजह है कि मतदान का प्रतिशत अस्सी से अधिक रहा और यहां त्रिशंकु सरकार नहीं बनी।पिछले दस सालों से मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ) की सरकार थी।लोगों ने इसे कार्य करने का पर्याप्त मौका दिया।लेकिन यह लोगों की नजर में खरी नहीं उतरी तो इस बार इसका लगभग सफाया कर दिया गया।चालीस में से सिर्फ तीन सीटें ही इसे नसीब हुई।खुद पूर्व मुख्यमंत्री जोरामाथांगा दो सीटों से चुनाव लडक़र हार गए।इससे लोगों के गुस्से का आंकलन किया जा सकता है।मिजोरम में कांग्रेस ने दो तिहाई बहुमत पाया है।यह उसकी भी जीत नहीं है।कारण सामाजिक संगठन मिजोरम पीपुल्स फोरम(एमपीएफ)ने राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए जो दिशा-निर्देश जारी कि ए उससे लोगों को उम्मीदवारों का चयन करने में सहूलियत हुई।यह उसकी जीत है।कांग्रेस ने लोगों के आशा के अनुरुप कार्य नहीं किया तो लोग आगे उसका हाल भी एमएनएफ की तरह करेंगे।मिजोरम में गिरजाघरों को सबसे अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।इसके कारण ही एमपीएफ यह मैजिक करने में कामयाब हुआ।एमपीएफ गिरजाघरों और प्रभावशाली एनजीओं का सामूहिक संगठन है।एमपीएफ की महासचिव लालबियाकमाविया नेंगटे ने कहा कि हमारे काम का अंत नहीं हुआ है।पहली बार हम पूरी तरह से वाचडाग की भूमिका में थे,इसमें कुछ त्रुुटियां हुई हंै।हम मिल-बैठकर इन्हें दूर करेंगे ताकि आनेवाले चुनाव में और अच्छा काम कर सकें।एमपीएफ के दिशा-निर्देशों का ही नतीजा है कि मिजोरम के चुनाव में रुपयों और बाहुबल का खेल नहीं हुआ। फिजूलखर्ची वाले भोज,म्यूजिकल बैंड और जनसभाओं के जरिए पिछले विधानसभा चुनाव तक उम्मीदवार वोट मांगा करते थे।लेकिन इस बार यह सब देखने को नहीं मिला।एमपीएफ के दिशा -निर्देशों ने सुनिश्चत किया कि इस चुनाव में मतदाता कोई झांसे में आकर अपने मतदान का गलत इस्तेमाल न कर दे। एमपीएफ के अध्यक्ष रेवेरेंड वनलालोवा ने कहा कि फोरम का उद्देश्य था कि चुनाव राज्य के शांतिपूर्ण माहौल को खराब न करे और मतदान साफ-सुथरे ढंग से संपन्न हो।आगे गिरजाघर और यंग मिजो एसोसिएशन(वाईएमए)उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग से दिशा-निर्देश जारी करते थे।इसके चलते कुछ चूक रह जाती थी।पर इस बार पूरा दृश्य भिन्न था।इस बार इन्हें सम्मिलित किया गया है।राजनीतिक पार्टियों के साथ बातचीत कर गिरजाघर और गैर सरकारी संगठनों ने इस बार दिशा-निर्देशों को अंतिम रुप दिया।उम्मीदवारों को मतदाता तक पहुंचने देने के लिए एमपीएफ ने हर विधानसभा क्षेत्र के हर वार्ड में एक मंच उपलब्ध कराया ।प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच से छह वार्ड है और हरेक में दो से तीन हजार तक मतदाता होते हैं।इस मंच पर निर्धारित समय पर उम्मीदवार को अपनी बात कहने का मौका दिया गया ।साथ ही वह अपने और अपनी पार्टी पर लगे आरोपों का जवाब भी दे सकता था।मतदाता को भी उम्मीदवार से सवाल पूछने का समय दिया गया।पिछले चुनावों में इस तरह के मंच कुछ ही विधानसभा क्षेत्र में बनाए गए थे।लेकिन इस बार चीजों को और अधिक संगठित रुप में किया गया।एमपीएफ ही ने ही यह फैसला किया कि कौन-सी पार्टी कितनी रैलियां आयोजित करेगी और रैलियां होगी कहां।कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की तीन रैलियां आयोजित करने की बात कही थी,लेकिन उन्हें सिर्फ लूंगलेई और आइजल में रैली करने की अनुमति मिली।मिजोरम में पार्टी के चुनाव प्रचार का कार्य देख रहे कांग्रेस नेता वेद प्रकाश का कहना था कि मिजोरम के चुनाव प्रचार का तरीका देश के अन्य राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए।चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक देवाषीश सेन ने कहा कि देश के अन्य राज्यों में इसका अनुकरण किया जाना चाहिए ताकि अत्याधिक खर्च और गलत तरीकों को रोका जा सके। (लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)