Sunday, May 18, 2008

अपने-अपने फायदे के लिए है आंतकवाद

राजीव कुमार
आंतकवाद से लड़ने में केंद्र की संप्रग और असम की कांग्रेस-बीपीएफ सरकार गंभीर नहीं।राज्य सरकार के अनुसार ही राज्य में नौ आंतकी संगठन फिलहाल सक्रिय है तथा कई आंतकी संगठन सरकार के साथ संघर्षविराम में है।संघर्षविराम में रहनेवाले संगठनों के साथ सरकार ने अब तक जहां बातचीत आगे नहीं बढ़ाई है वहीं संघर्षविराम में आने को इच्छुक आंतकी संगठनों को सरकार कोई सकारत्मक जवाब नहीं देती है।इससे राज्य में आंतकी समस्या खत्म होने के बजाए जटिल हो रही है।
असम के उत्तर कछार जिले में डिमा हालम दाउगा(डीएचडी)का जूवेल गुट सक्रिय है।डीएचडी का नूनिसा गुट सरकार के साथ संघर्षविराम में है।डीएचडी के जूवेल गुट ने25मार्च को सरकार को सूचित किया कि वे संघर्षविराम को इच्छुक हैं।लेकिन 45दिनों तक सरकार ने इसका कुछ जवाब नहीं दिया।10मई को डीएचडी के जूवेल गुट ने दावा किया कि सेना ने उसके 12सदस्यों को मार गिराया है।11मई को ही संगठन ने बदले की कार्रवाई करते हुए 12लोगो को मौत के घाट उतार दिया।12मई को और दो श्रमिकों की हत्या की गई।15मई को और 11लोगों की हत्या की गई।इनमें रेलगाड़ी का ड्राइवर भी शामिल है।
पूर्वोत्तर सीमा रेलवे ने रेल पर हमले के बाद लमडिंग-बदरपुर सेक्शन में पड़नेवाले 27 स्टेशनों को बंद कर अपने कर्मचारियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया है।आंतकी संगठनों की हिंसा और धमकी के बाद दो राष्ट्रीय परियोजनाओं का काम बंद कर दिया गया है।फिर भी केंद्र की कांग्रेस नेतृत्ववाली संप्रग और असम में कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार खामोश है।देश के दूसरे हिस्से में इस तरह होता तो अब तक हड़कंप मच जाता।कारण रेल सेवा बंद होने के कारण त्रिपुरा,मिजोरम,मणिपुर और बराकघाटी के इलाकों में अत्यावश्कीय सामग्रियों का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
सरकार की आंतकवाद से लड़ने की कोई स्पष्ट नीति नहीं है।यदि होती तो समस्या कभी विकराल नहीं होती।निर्दोष लोगों का बेवजह खून नहीं बहता।उत्तर कछार स्वशासी परिषद पर फिलहाल स्वशासी राज्य मांग समिति(एएसडीसी)और भाजपा का कब्जा है।परिषद के मुख्य कार्यकारी सदस्य डी होजाई ने खुलासा किया है कि 25मार्च को खुद उन्होंने मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को डीएचडी के जूवेल गुट के संघर्षविराम की इच्छा का पत्र सौंपा था और 27 मई को दिल्ली में एसआईबी के निदेशक को भी यह पत्र दिया था।लेकिन कुछ नहीं किया गया।होजाई आरोप लगाते है कि परिषद को भंग कर कांग्रेस खुद वहां की सत्ता हथियाना चाहती है।इसलिए डीएचडी जूवेल गुट के संघर्षविराम के पत्र को कोई तवज्जो नहीं दिया गया।
सिर्फ डीएचडी जूवेल गुट ही नहीं,राज्य के अन्य आंतकी संगठनों के साथ बातचीत में भी केंद्र और राज्य सरकार का रवैया ढुलमुल है।प्रतिबंधित संगठन उल्फा ने बातचीत के लिए पीपुल्स कंसलटेटिव ग्रुप(पीसीजी) का गठन कर दिया था।केंद्र के साथ पीसीजी की तीन दौर की बातचीत भी हुई।अंतिम दौर की बातचीत में तय हुआ कि सरकार उल्फा के केंद्रीय परिषद के नेताओं को वार्ता के बारे में निर्णय लेने के लिए जेल से रिहा कर देगी।लेकिन बाद में मुख्यमंत्री बदल गए।कहा गया कि उल्फा चेयरमैन अरविंद राजखोवा और सेना प्रमुख परेश बरुवा खुद बातचीत के लिए आने का पत्र देंगे तभी जेल में बंद नेताओं को रिहा किया जाएगा।तब पीसीजी के साथ तीन दौर की बातचीत करने की आवश्यकता ही नहीं थी।बेकार में समय बर्बाद करने के साथ ही अन्य बातचीत में आने को इच्छुक आंतकी संगठन को इससे गलत संदेश ही दिया गया।
असम में कांग्रेस बोड़ो पीपुल्स फ्रंट(बीपीएफ) के साथ गठबंधन कर सरकार चला रही है।बीपीएफ का गठन आंतकी संगठन बोड़ो लिबरेशन टाइगर्स के सरकार के साथ हुए समझौते के बाद हुआ है।इनकी मदद से सरकार चलाने के कारण कांग्रेस ने अन्य बोड़ो आंतकी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोड़ोलैंड(एनडीएफबी) के साथ बातचीत में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।एनडीएफबी संघर्षविराम कर बैठा रहा और सरकार कहती रही कि उसने अब तक मांग पत्र नहीं सौंपा है इसलिए वार्ता नहीं हो सकती।अब उसने मांगपत्र सौंप दिया है।कब वार्ता होगी इसी से सरकार की मंशा स्पष्ट हो जाएगी।
केंद्र और राज्य सरकार तय कर ले कि आंतकवाद की समस्या का हल करना है तो वह यह चुटकी में कर सकती है।पर वह अपनी राजनीति के लिए इसे जिंदा रखने में ही अपना फायदा समझती है।राज्य में पिछले साल 33वें राष्ट्रीय खेल के पहले उल्फा ने इनके बहिष्कार का एलान किया।लगने लगा खेल सफलता से होने में दिक्कत आएगी।लेकिन अचानक सरकार के साथ उल्फा का अलिखित गुपचुप समझौता हुआ।कई वरिष्ठ खिलाड़ियों ने अखबारों में अपील की और उल्फा ने बहिष्कार का एलान वापस ले लिया।इस गुपचुप समझौते का भांडा इसलिए फूट गया क्योंकि एक अखबार ने अपील का विज्ञापन सरकार के जनसंपर्क विभाग के आर्डर नबंर के साथ प्रकाशित कर दिया।और तो और उल्फा का ई-मेल बयान अखबारों को मिला तो उसमें पहले की तिथि थी।इससे साफ हो जाता है कि सरकार के साथ पहले समझौता हुआ लेकिन कहने के लिए राज्य के वरिष्ठ खिलाड़ियों की अपील को बहिष्कार वापस लेने का कारण बताया गया।इस तरह खेल शांति से गुजर गए।
अब बारी थी भारत-पाक एक दिवसीय मैच की।उल्फा ने इसके लिए कोई धमकी ही नहीं दी थी।लेकिन फिर भी असम किक्रेट एसोसिएशन के सचिव विकास बरुवा ने अखबारों में विज्ञापन दे उल्फा से खेल के लिए सहयोग की अपील की।एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक है राज्य के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और अध्यक्ष पद पर आसीन है राज्य के मंत्री गौतम राय।बरुवा खुद सरकारी कर्मचारी हैं।जब सरकार के लोग ही प्रतिबंधित संगठन के सामने असहाय हो मदद की भीख मांगे तो आम जनता किसके पास सुरक्षा की गुहार लगाए।आम आदमी इस तरह करे तो उसे तुरंत अंदर कर दिया जाएगा।पर सबकुछ सरकारी होने के कारण कुछ नहीं हुआ।विपक्ष हो-हल्ला मचाते रह गया।
जब प्रतिबंधित संगठन के साथ सरकार का इतना अच्छा तालमेल हो तो उससे वार्ता में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए।यदि अच्छे संबंधों के बावजूद वार्ता नहीं हो रही है तो सरकार की इच्छा के कारण ही नहीं हो रही है।वह पूरे मसले को जिंदा रखना चाहती है।सपा महासचिव अमर सिंह ने राज्य का दौरा करते हुए कहा है गोगोई मंत्रिमंडल में उल्फा से वार्ता के लिए लीविंग लिंक मौजूद है।इसलिए उन्हें मध्यस्थ की जरुरत ही नहीं है।जब चाहें वे वार्ता कर सकते हैं।उनका इशारा कैबिनेट के उस मंत्री की ओर है जिस पर उल्फा के नाम पर धन वसूली के मामले थे।पर अपनी पहुंच के चलते वे अदालत से बरी हो चुके हैं।जब सरकार इतना कुछ कर सकती है तो वह अपनी इसी पहुंच का इस्तेमाल कर आंतकी समस्या का हल भी कर सकती है।इसके लिए सिर्फ राजनीति से ऊपर उठने की जरुरत है।
(लेखक गुवाहाटी स्थित पूर्वोत्तर मामलों के जानकार हैं)
पता-राजीव कुमार,पोस्ट बाक्स-12,दिसपुर-781005

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