Thursday, June 4, 2015

हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता: देश नहीं,वोट बैंक प्राथमिकता


राजीव कुमार

भाजपा पहले से ही बांग्लादेश से आए हिंदुओं के शरण के पक्ष में रही है।लेकिन अब इस समुदाय के वोट से भाजपा को कई सीटें हथियाते देख कांग्रेस भी इन्हें शरण दिए जाने का पक्ष लेने लगी है।इससे साफ होता है कि इन सबके लिए देश प्राथमिकता नहीं,अपनी राजनीति की दुकान चलाना प्राथमिकता है।
देश में ऐसे ही जनसंख्या विस्फोट हो चुका है।लोगों को काम पाने और दो जून की रोटी का जुगाड़ करने मारा-मारी करनी पड़ रही है।जमीन का संकट उत्पन्न हो गया है।इन सब की फ्रिक हमारे राजनेताओं को नहीं है।देश में और लोगों को लाकर ये समस्या बढ़ाना चाहते हैं ताकि अपनी रोटी मजे से सेक सकें।
भाजपा का तर्क है कि बांग्लादेश में अत्याचार का सामना कर भारत आए हिंदू लोगों को शरण के साथ नागरिकता प्रदान की जानी चाहिए।इस पूरे मसले को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की बात भाजपा कहती है।तब फिर संदिग्ध बांग्लादेशियों के खिलाफ विदेशी न्यायाधिकरण में मामला चलाने और उनकी शिनाख्त के लिए इतना तामझाम कर खर्च करने की जरुरत ही नहीं है।न्यायाधिकरण में मामला लड़ने के लिए पैसे खर्च कर बांग्लादेशी करार दिए गए अनेक व्यक्ति आज भी डिटेंशन कैंपों में रहने को मजबूर हैं।फिर उन्हें यह पीड़ा क्यों दी गई।
असम में बांग्लादेश से आए अनेक हिंदू और मुस्लिम परिवार रहते हैं।विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी करार दिए गए फरार लोगों की जो सूची असम पुलिस की सीमा शाखा ने हाल ही में प्रकाशित की है उसमें बंगाली हिंदू और मुसलमानों लोगों की भरमार है।असम की बराक घाटी और कई विधानसभा सीटों के नतीजों में इनकी अहम भूमिका होती है।पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने बांग्लादेश में सताए गए और असम आए लोगों को भारत में शरण देने का मुद्दा उठाया था।इसके चलते कांग्रेस को बराक घाटी की 14 में से 13 सीटें मिली थी।गोगोई सताए गए सिर्फ हिंदू लोगों की बात नहीं कर रहे थे।लेकिन अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अंजन दत्त ने बांग्लादेश में सताए जाने के चलते आए हिंदू लोगों को शरण दिए जाने की बात कह दी है।यानी कांग्रेस व भाजपा एक ही नाव पर सवार हो गए हैं।
असम में विदेशी खदेड़ने के लिए छह साल तक आंदोलन हुआ था।सरकार के साथ असम समझौता हुआ।इसमें स्पष्ट लिखा है कि 25 मार्च 1971 के बाद जो भी आया है,उसे जाना होगा।सभी को यह मान्य है।अब इसके आधार पर ही राष्ट्रीय नागरिक पंजी(एनआरसी) के अद्यतन का कार्य किया जाएगा।यदि अभी तक के सताए बांग्लादेशियों को लेना है तो फिर असम समझौते को कुचला जाएगा।एनआरसी का तामझाम करने की जरुरत ही नहीं है।देश के राजनेताओं का दोगलापन साफ झलकता है।
सवाल उठता है कि यदि बांग्लादेश से आए हिंदू को लेने के लिए मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहते हैं तो म्यांमार से आए रोहंगिया और बांग्लादेश के चकमा लोगों के प्रति आपका भेदभाव क्यों?क्या हिंदू बंगाली आपके वोट बैंक हैं इसलिए ? भाजपा के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरे विश्व में डंका बजने की बात प्रचारित हो रही है।बांग्लादेश पड़ोसी देश है।भारत के साथ फिलहाल अच्छे संबंध हैं।प्रधानमंत्री वहां जा रहे हैं।तब बांग्लादेश में हिंदुओँ को सताने का मसला क्यों नहीं उठाया जाता।अंतरराष्ट्रीय किसी मंच पर बांग्लादेश में हिंदुओं के सताने का मसला फिलहाल उठते नहीं दिखा है।ऐसे में बांग्लादेश के लोगों को देश में आने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।यह सरासर गलत है ।यदि ऐसा किया जाता है तो सीमा सील करने के लिए अरबों रुपए खर्च करने की जरुरत ही नहीं है।न ही विदेशी न्यायाधिकरणों की जरुरत है और न ही किसी को डिटेशन कैंप में रखने की और न ही अखबारों में विज्ञापन देकर फरार हुए बांग्लादेशियों के नामों को प्रकाशित करने की।न ही मतदाता सूची में किसी के नाम के आगे डी यानी डाउटफुल लगाने की।


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