Wednesday, June 24, 2015

आंखन देखी: म्यांमार की खुली सीमा,घुसना आसान


राजीव कुमार,म्यांमार के अंदर से






म्यांमार फिलहाल सुर्खियों में है।मणिपुर के चंदेल में आतंकियों ने भारतीय सेना के 18 जवानों को मारा था। भारतीय सेना ने बदले की कार्रवाई में म्यांमार में घुसकर आतंकियों पर हमला किया।भाजपा नीत केंद्र सरकार प्रचार में आगे है।सेना भी सरकार को देखकर वैसे कदम अपना रही है।इस पर कुछ कहने के बजाए हम अरुणाचल प्रदेश से सटे म्यांमार के अंदर तक बेरोकटोक बिना कोई पासपोर्ट-वीजा लिए जाने के अनुभव को पाठकों के साथ साझा करेंगे।इससे हमारी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुलती है।साथ ही म्यांमार में आसानी से आ-जा सकने की बात भी उजागर होती है।
मैंने स्टीलवेल रोड देखने के लिए म्यांमार के पांगसू पास का दौरा किया।गुवाहाटी से 579 किमी का सफर कर हम असम के मार्घेरिटा,लिडू होते हुए अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग जिले के जयरामपुर पहुंचे।यहां तक सड़क चौड़ी और बेहद खूबसूरत है।जयरामपुर में इनर लाइन परमिट चेक करा लेने के बाद हम नामपोंग होते हुए पांगसू पास के लिए रवाना हुए।सड़क संकरी।हरे भरे पहाड़ों के बीच से गाड़ी नीचे ऊपर उतरते हुए आगे बढ़ती है।बरसात के दिन होने के कारण पहाड़ से उतरी लाल मिट्टी से सड़क पूरी तरह कीचड़ में तब्दील हो गई है।छोटी गाड़ियों से इन इलाकों में जाना आसान नहीं।कहीं जगहों पर गाड़ी कीचड़ में फंसने के कारण धक्के मारने के लिए उतर कर कपड़े खराब करवाने पड़े।जयरामपुर से पांगसू पोस्ट तक असम रायफल्स के दो गेट हैं।इन पर कोई जवान हमें नहीं दिखा।
पांगसू पोस्ट में असम रायफल्स के कैंप के बाहर हमें अपने नामों को वहां रखे एक रजिस्टार में लिखा।वहां बताया गया कि रास्ता बेहद खराब है,छोटी गाडियों में म्यांमार सीमा तक जाना संभव नहीं होगा।हमारी गाड़ी वहीं छोड़कर हम पैदल आठ किमी पहाड़ी रास्ते पर चले।पांगसू पोस्ट से हम वहां सड़क के कार्यों में लगे एक डंपर पर सवार होकर म्यांमार की सीमा में जाकर उतर गए।पर हमारी कोई तलाशी नहीं हुई।म्यांमार सीमा के पास भी कोई सुरक्षा नजर नहीं आई।हमने सीमा को दर्शाते चिह्नों पर खड़े होकर फोटो खिंचवाए।शिलालेख है जहां एक तरफ भारत और दूसरी तरफ म्यांमार लिखा हुआ है।यह समुद्र तट से 3,727 फीट की ऊंचाई पर है।पाटकाई पहाड़ी के शिखर पर स्थित है पांगसू पास।हमें एक भी जवान गश्त लगाता हुआ यहां दिखाई नहीं पड़ा।
हम पैदल चलते हुए म्यांमार के पांगसू पास के बाहर दाखिल हुए।यह ऐतिहासिक स्टीलवेल रोड़ है।वहां बांस लगी एक गेट है।पर कोई तैनात नहीं।दूर-दूर तक कोई हलचल नहीं देखी।सब आराम फरमा रहे हैं।पता चला कि म्यांमार की सीमा के अंदर सेना है।बुलाने पर आए।लेकिन उनके पास न कोई हथियार दिखा और न ही हमें रोकने के कोई विरोध।वे आम जनता की तरह लग रहे थे।कोई ड्रेस नहीं पहन रखी थी।हम लोग विख्यात लेक आफ नो रिटर्न और वहां मौजूद बाजार और बुद्ध मंदिर में घूमते रहे।खूबसूरत लेक आफ नो रिटर्न के बारे में कहा जाता है कि यहां जो भी गया वह वापस लौटकर नहीं आया।दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एलाएड सेना के विमान यहां उतरकर नीचे समा गए थे।इस लेक की लंबाई 1.4 किमी है जबकि चौड़ाई 0.8 किमी है।
अपने को सेना का कमाडेंट बताने वाले मायतून ने हमसे एक-दो बार फोटो न लेने का अनुरोध किया।लेकिन हम कुछ फोटो ले चुके थे।उसने हमसे दुर्व्यवहार नहीं किया।ज्यादा अंदर जाने की बात पर उसने कहा कि मैंने अपने कैप्टेन को बुला भेजा है।वह आएगा तो आप और आगे जाने की बात कर सकते हैं।लेकिन अंग्रेजी व अन्य कोई भी भारतीय भाषा समझ न पाने के कारण उनका कैप्टन बाजार से एक नागामीज बोलनेवाली महिला को लेकर आया।उसने बताया कि हमारे पास अधिकृत कागज नहीं है,इसलिए ज्यादा अंदर नहीं जा सकते।हमें वापस लौट आने का अनुरोध कैप्टेन ने किया।बतातें चले कि अरुणाचल के पांगसू पास में हर साल 20 जनवरी से 22 जनवरी तक विंटर फेस्टिवल आयोजित होता है।इस दौरान म्यांमार वाले पांगसू पास से लोगों का आना-जाना खोल दिया जाता है।
हम म्यांमार के जिस इलाके में थे वह सीमाई गांव का इलाका है।भारतीय गांवों की तरह ही वहां के दृश्य नजर आए।चापाकल पर महिलाएं नहाती दिखी।पर इससे साफ होता है कि म्यांमार में घुसना और वहां के जंगलों में डेरा जमाकर रहना आतंकियों के लिए आसान है।इसलिए पूर्वोत्तर के ज्यादातर आतंकी यहां डेरा जमाए रहते हैं।प्रशिक्षण चलता है।अब शायद स्थितियां बदले।
स्टीलवेल रोड भारत में 61 किमी,म्यांमार में 1033 और चीन में 632 किमी पड़ती है।भारत के 61किमी में 30 किमी असम में और अरुणाचल प्रदेश में 31 किमी है।असम में पड़नेवाली स्टीलवेल सड़क की स्थिति बेहद अच्छी है।पर भारत की सीमा से म्यांमार के पांगसू पास तक सड़क का निर्माण दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुआ ही नहीं है।इसलिए गांव की टूटी-फूटी कच्ची सड़क जैसे हालात हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एलायड फोर्स के जाने के लिए असम के लिडू से चीन के कुनमिंग तक स्टीलवेल रोड का निर्माण हुआ था।अब इसे लुक ईस्ट पालिसी के तहत फिर खोले जाने की मांग उठ रही है।इससे दक्षिण एशिया के साथ पूर्वोत्तर का व्यापार वाणिज्य का मार्ग खुल जाएगा।पूर्वोत्तर के राज्यों का विकास होगा।पर इसके पहले यहां आतंकियों का सफाया जरुरी है।दुर्गम इलाके के कारण लोगों की आवाजाही कम होने के चलते इन इलाकों में आतंकियों का जमावड़ा है।सर्वविदित है कि अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग में नगा आतंकी संगठन एनएससीएन का दबदबा है।
मुझे डर सता रहा था कि पासपोर्ट -वीजा न होने के कारण कहीं विदेश की धरती पर जाने के कारण गिरफ्तार कर न लिया जाऊं।साथ ही पहाड़ से आतंकी हमला न हो जाए।पर कई घंटे म्यांमार में गुजारकर हम बिना कोई परेशानी के लौट आए।

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